आम जन की कमजोर स्मरण शक्ति के आसरे चलती है राजनैतिक तोड़फोड़ और अनैतिक नीति
बिहार में नीतीश कुमार के पाला बदलकर महागठबंधन से एनडीए के साथ जाते ही अनैतिकता की सीमा तक जाकर तोड़फोड़ की नीति के सहारे एनडीए के द्वारा महागठबंधन में भगदड़ मचा दिया गया है । नीतीश कुमार के द्वारा विश्वास मत प्राप्ति के लिए जिस तरह से महागठबंधन की विधायकों पर पुलिस तंत्र के सहारे तोड़ा गया यह मीडिया के माध्यम से पूरी दुनिया देख चुकी है। किस तरह चेतन आनंद को तेजस्वी के घर से पुलिस फोर्स के सहारे देर रात उठवा लिया गया, किस तरह एक विधायक को झारखंड से लौटते हुए स्थानीय एस पी के द्वारा नालंदा में हिरासत में ले लिया गया। किस तरह बीमा भारती के बेटे और पति को हिरासत में ले लिया गया और काफी समय तक वह दोनों ट्रेसलेस रहे। सत्ता पक्ष के द्वारा यह सब तब किया गया जब उन्हें यह मालूम है की चुनाव बहुत ही करीब है।
विधानसभा के बजट सत्र के दौरान महागठबंधन के सात विधायकों को तोड़कर एनडीए में शामिल कर लिया गया। इस क्रम में दल बदल विरोधी कानून का भी ध्यान नहीं दिया गया। दल बदल विरोधी कानून का खुल्लम-खुल्ला मजाक उड़ रहा है। इसे जानता भी देख समझ रही है। राजनीतिक दल भी देख समझ रहे हैं। इसके बावजूद विधायकों के द्वारा वोटिंग कर सरकार बचाई जा रही हैं। बाद में विधायकों के उन छोटे टुकड़ों की विधायिकी बचेगी या नहीं बचेगी पर मंथन विचार होता है ।जबकि दल बदल विरोधी कानून के दायरे में आने पर उन विधायकों को वोटिंग का हक ही नहीं होना चाहिए था। राजनीतिक दलों के द्वारा इस तरह का अनैतिक कार्य खुलेआम इसलिए किया जाने लगा है कि वह जानते हैं कि आम जनों की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर होती है। वह कुछ भी कर ले कैसे भी सरकार बचा ले फिर कोई भक्ति या जाति का नारा दे देने से आमजन जाति और धर्म में उलझ कर रह जाएंगे ।
भारतीय जनता के इसी कमजोरी के आसरे राजनीतिक दल अनैतिकता का नंगा नाच करने लगे हैं ।
भारतीय राजनीति में यह बदलाव मोदी काल में बहुत तेजी से आया है। क्योंकि कांग्रेस पार्टी के लंबा शासन काल में मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति और भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गई थी। उससे त्रस्त भारतीय आमजन को जब मोदी काल में सत्ता के द्वारा हिन्दू और दलित विमर्श की बाते और उससे सम्बन्धी नीतियां बनती और उस ओर कार्य होती दिखी तब भारत की उस संस्कृति में डूबे लोग जहां डूबते सूर्य,चूल्हे और चरवाहे की भी पूजा होती है राजनैतिक अनैतिकता और प्रशाशकीय शक्ति से आम से लेकर खास लोगो के सत्ता विरोध को कुचल कर अभिव्यक्ति की आजादी छीने जाने को नजरअंदाज करने लगे।