आधुनिक लघुकथा के भी जनक थे हिंदी के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

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भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की 173वीं जयंती पर विशेष—

आधुनिक लघुकथा के भी जनक थे हिंदी के पितामह भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

डॉ ध्रुव कुमार

आधुनिक हिंदी के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चंद्र भारतीय नवजागरण के अग्रदूत के रूप में देश की गरीबी, पराधीनता, शासकों के अमानवीय शोषण का चित्रण को अपने साहित्य का लक्ष्य बनाया। हिन्दी को राष्ट्र-भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने की दिशा में उन्होंने अपनी प्रतिभा का उपयोग किया। उनके पिता गोपालचंद्र एक अच्छे कवि थे और गिरधरदास उपनाम से कविता लिखा करते थे। उन्हें कविता अपने पिता से विरासत में मिली। वे पांच वर्ष आयु से ही दोहा रचने लगे थे I

उनका जन्म 9 सितंबर 1850 को काशी के एक प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में हुआ था। पांच वर्ष की आयु में माता और दस वर्ष आयु में उन्होंने अपने पिता को खो दिया था I बचपन में ही माता-पिता के सुख से वंचित होने के कारण पढ़ाई से उनका मन उचट गया, लेकिन क्वींस कॉलेज, बनारस में दाखिला लिया और तीन-चार वर्षों तक कॉलेज भी गये पर मन नहीं रमा I स्मरण शक्ति तीव्र थी और ग्रहण क्षमता अद्भुत, इसलिए परीक्षाओं में उत्तीर्ण होते रहे। बनारस में उन दिनों अंग्रेजी पढ़े-लिखे और प्रसिद्ध लेखक – राजा शिवप्रसाद सितारे-हिन्द थे, भारतेन्दु शिष्य भाव से उनके यहाँ जाते। उन्हीं से अंग्रेजी सीखी और स्वाध्याय से संस्कृत, मराठी, बंगला, गुजराती, पंजाबी, उर्दू भाषाएँ सीख लीं।
18 वर्ष की आयु तक आते-आते विद्यासुंदर जैसा सशक्त नाटक लिख दिया और अपनी लेखन को गति देने के लिए कवि-वचन-सुधा नामक साहित्यिक पत्रिका का संपादन शुरू किया। 20 वर्ष की अवस्था में साहित्यिक और सामाजिक जागरण की ओर उन्मुख हो गए। उन्होंने कविता वर्धनी सभा की स्थापना की और उसके जरिए अपने संगी – साथियों को हिंदी के प्रति रुचि जागृत करने के लिए कविता लेखन की दिशा में उन्हें उन्मुख करना शुरू किया। 3 वर्ष बाद उन्होंने पैनी रीडिंग क्लब, तदीय समाज , यंग मैन एसोसिएशन और डिबेटिंग क्लब आदि कई संस्थाओं की स्थापना की। इन सभी संस्थाओं का उद्देश्य नवयुवकों में सांस्कृतिक और राजनीतिक जागृति उत्पन्न करके उन्हें सुयोग नागरिक बना था। भारतेंदु हरिश्चंद्र ने अपने संपर्क में आने वाले युवकों को देश की सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक भाव – धारा से परिचित कराया। उनमें राष्ट्रभाषा हिंदी में विभिन्न विषयों के लेखन की ओर अग्रसर होने की भावना भी उत्पन्न की। उनका दृष्टिकोण एक जागरूक पत्रकार के रूप में सुधारवादी दृष्टिकोण था। अपनी पत्रिका कवि- वचन- सुधा के माध्यम से उन्होंने लेखन की दिशा में अनेक प्रयोग किए। हरिश्चंद्र मैगजीन, हरिश्चंद्र चंद्रिका और बाला – बोधिनी आदि पत्रिकाओं का संपादन और प्रकाशन शुरू किया। इन पत्रिकाओं की भूमिका देश की शिक्षित जनता को राष्ट्रभाषा हिंदी में अपने विचारों के प्रचार करने के खुले मंच के रूप में प्रदान की। वहीं बाला-बोधिनी के माध्यम से उन्होंने महिलाओं को भी इस दिशा में आगे बढ़ाने की सराहनीय भूमिका निभाई।
उनके जीवन का सफर महज 34 वर्ष 4 माह में ही खत्म हो गया। 6 जनवरी, 1885 को उन्होंने अंतिम सांस ली। निधन से पहले उन्होंने हिंदी साहित्य का भंडार ऐसी अमूल्य निधियों से समृद्ध कर दिया, जिस पर आज भी भारतीय साहित्य को गर्व है। उन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं में लगभग 100 पुस्तकों की रचना की I उनके वृहत साहित्यिक योगदान के कारण ही 1857 से 1900 तक के काल को भारतेन्दु युग के नाम से जाना जाता है।
भारतेन्दु हरिश्चंद्र जहां एक उत्कृष्ट कवि, सशक्त व्यंग्य लेखक, सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार और जीवंत गद्य लेखक थे, वहीं वे एक सशक्त लघुकथाकार भी थे I अपनी व्यंग्य मिश्रित लघुकथाओं को वे परिहासिनी कहते थे I उनकी जयंती लघुकथा दिवस के रूप में भी मनाई जाती है I
प्रस्तुत है भारतेन्दु हरिश्चंद्र की कुछ चर्चित लघुकथाएं :-
1. खुशामद
एक नामुराद आशिक से किसी ने पूछा, कहो जी, तुम्हारी माशूका तुम्हें क्यों नहीं मिली?
बेचारा उदास होकर बोला यार, कुछ न पूछो, मैंने इतनी खुशामद की कि उसने अपने को सचमुच परी समझ लिया और हम आदमजाद से बोलने में भी परहेज किया I
2. अद्भुत संवाद
ए, जरा हमारा घोड़ा तो पकड़े रहो.
यह कूदेगा तो नहीं ?
कूदेगा! भला कूदेगा क्यों? लो संभालो I
यह काटता है ?
नहीं काटेगा, लगाम पकड़े रहो I
क्या इसे दो आदमी पकड़ते हैं तब सम्हलता है ?
नहीं !
फिर हमें क्यों तकलीफ देते हैं ? आप तो हई हैं I
3. तीव्रगामी
एक शख्स ने किसी से कहा कि अगर मैं झूठ बोलता हूँ तो मेरा झूठ कोई पकड़ क्यों नहीं लेता I
उसने जवाब दिया कि आपके मुँह से झूठ इस कदर जल्द निकलता है कि कोई उसे पकड़ नहीं सकता I
4. असल हकदार
एक वकील ने बीमारी की हालत में अपना सब माल और असबाब पागल, दीवाने और सिड़ियों के नाम लिख दिया. लोगों ने पूछा, यह क्या?
तो उसने जवाब दिया कि यह माल ऐसे ही आदमियों से मुझे मिला था और अब ऐसे ही लोगों को दिये जाता हूं I
5. एक से दो
एक काने ने किसी आदमी से यह शर्त बदी कि जो मैं तुमसे ज्यादा देखता हूँ तो पचास रूपया जीतूँ I और जब शर्त पक्की हो चुकी तो काना बोला कि, लो, मैं जीता I
दूसरे ने पूछा, “क्यों?
इसने जवाब दिया कि मैं तुम्हारी दोनों आँखें देखता हूँ और तुम मेरी एक ही ।
6. सच्चा घोड़ा
एक सौदागर किसी रईस के पास एक घोड़ा बेचने को लाया और बार-बार उसकी तारीफ में कहता हुजूर, यह जानवर गजब का सच्चा है I
रईस साहब ने घोड़े को खरीद कर सौदागर से पूछा कि, घोड़े के सच्चे होने से तुम्हारा मतलब क्या है?
सौदागर ने जवाब दिया, हुजूर, जब कभी मैं इस घोड़े पर सवार हुआ इसने हमेशा गिराने का खौफ दिलाया और सचमुच, इसने आज तक कभी झूठी धमकी न दीI
7. न्यायशास्त्र
मोहिनी ने कहा न जाने हमारे पति से, जब हम दोनों की एक ही राय है तब, फिर क्यों लड़ाई होती है ? क्योंकि वह चाहते हैं कि मैं उनसे दबूँ और यही मैं भी I
8. गुरु घंटाल
बाबू प्रहलाददास से बाबू राधाकृष्ण ने स्कूल जाने के वक्त कहा क्यों जनाब मेरा दुशाला अपनी गाड़ी पर लिए जाइएगा?
उन्होंने जवाब दिया बड़ी खुशी से I मगर फिर आप मुझसे दुशाला किस तरह पाइएगा?
राधाकृष्ण जी बोले बड़ी आसानी से, क्योंकि मैं भी तो उसे अगोरने साथ ही चलता हूं I
9. अचूक जवाब
एक अमीर से किसी फकीर ने पैसा मांगा I उस अमीर ने फकीर से कहा तुम पैसों के बदले लोगों से लियाकत चाहते तो कैसे लायक आदमी हो गये होते I
फकीर चटपट बोला मैं जिसके पास जो कुछ देखता हूँ वही उससे मांगता हूं I
10. पेटू
एक ने एक से कहा कि एकादशी का व्रत करके द्वादशी को व्रत का पारण करना I
उसने व्रत तो नहीं किया पर पारण किया I
जब उसने पूछा कि कहो व्रत किया था? तब वह बोला कि भाई व्रत तो नहीं कर सका, पर तुम्हारे डर के मारे पारण कर लिया कि जो बन सके सोई सही I

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