सपाटबयानी से बचकर ही हम सार्थक कविता सृजित कर सकते हैं !”: सिद्धेश्वर

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पटना/प्रतिनिधि(मालंच नई सुबह) साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था ” जागो ” के तत्वाधान में, चर्चित कवि और चित्रकार सिद्धेश्वर की अध्यक्षता में ” चौथा इतवार साहित्य समागम” का शानदार आयोजन हुआ। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सिद्धेश्वर ने समकालीन कविता के संदर्भ में कहा कि – निराला की कविताओं में जो कविता दृष्टिगोचर होती है, वह उनके समकालीनों की कविताओं में बहुत कम देखने को मिलती है l बल्कि ढेर सारे गद्य रचनाकार कविता के भाव को, पूरी तरह सपाटबयानी में अभिव्यक्त करने लगे हैं l ऐसे में गद्य और पद्य में विरोधाभास होने लगा है l ऐसी विकट स्थिति में गद्य कविताओं को समकालीन कवियों ने कविता का नाम देकर, एक नई परंपरा की शुरुआत करने का घिनौना प्रयास भी किया हैं l क्योंकि ऐसी कविताओं में बौद्धिकता अधिक तथा काव्यात्मक का भाव कम देखने को मिलती है l ठेठ सपाटबयानी होने के कारण आम पाठकों के हृदय में नहीं उतर पाती है ऐसी अकविता!
विविधा साहित्य संगोष्ठी में पढ़ी गई रचनाओं पर संतोष प्रकट करते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि – इस तरह का साहित्यिक आयोजन जिसमें युवा प्रतिभाओं की अधिक भागीदारी रहती है, समकालीन कविता के लिए शुभ संकेत है, जिनकी कविताओं में लयात्मकता झलक रही है l आज के कवियों को सपाटबयानी से बचना चाहिए l कविता हो या लघुकथा, अपने फार्म में ही अधिक प्रभावकारी बन पड़ती है l”
पूरी संगोष्ठी का सशक्त मंच संचालन मुकेश ओझा के द्वारा किया गया। संगोष्ठी में.डॉ नीलू ने ‘साथी धीरे-धीरे बढ़ना/साथी होले होले बढ़ना !,अच्छी नहीं है यह रफ्तार, औंधे मुंह गिरोगे हर बार !! / नीरज सिंह ने ‘दुरुस्त होगी बेशक / थोड़ी देर होगी / पर एक न एक दिन/ मंजिल तेरी होगी !/अभिमन्यु प्रजापति ने- ‘पवित्र आज का हवन मैं हूं, घृत मिश्रित कण कण काया ! , / सुधा पांडे ने ‘आज दिवस बिहारियों के साथ , बिहार दिवस हर दिवस जान !/ मुकेश ओझा ने – एक हार हुई तो क्या हुआ ?,कई जीत अभी भी बाकी है !/ सिद्धेश्वर ने -रिश्ते बदल रहे कैलेंडर की तरह, चेहरे की रंगत पढ़ी नहीं जाती ?,कौन है अपना और कौन पराया !,संबंधों का गणित समझ नहीं आती ? / उजमा खान ने – यादें पागल कर देती है!, बातें पागल कर देती है !!,/ संगीता मिश्रा ने – गांव के राजनीति केतना बेकार हो गईल, भाई भाई के पीठ में छुरा घोंपे खातिर तैयार हो गईल’ !/ वहीं इशिका राज ने अंग्रेजी में ‘आई एमद अनयूजुअल टाइप/ आई एम द क्रिमिनल ऑफ माय ओन फेलियर जैसी एक से एक रचनाओं का पाठ किया। अखिलेश कुमार के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम की समाप्ति हुई। यह मंच साहित्य की हर विधा और हर भाषा को बराबर सम्मान देता है। यही इसकी सुंदरता है और विशेषता भी। चितरंजन भारती ,धनंजय कुमार पुरुषोत्तम जी ,सर्वेश जी आदि ने भी अपनी सारगर्भित रचनाओं से मनमुग्ध कर दिया l

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