बजरंग लाल केजड़ीवाल ‘संतुष्ट
तिनसुकिया, असम
देखो देखो सूर्य देव
अपना पाला बदल र
हेदक्षिण से निकल करउ
त्तर की ओर बढ़ रहे
सूर्य जो थे धनु राशि पर
आ रहे वे मकर राशि पर
बड़ा अजीब नजारा है
ये खगोलीय संक्रमण है
अब दिन बड़े होंगे
रात का आलम कम होगा
जग प्रकाशित अधिक होगा
नया मौसम आरम्भ होगा
किन्तु ठंड का पारा वार रहेगा
गात कंपकंपाता रहेगा
कोई उपाय काम नहीं आएगा
बस अलाव ही सर्दी भगाएगा
यह संक्रांति बड़ी शुभकारी होती
हर तरफ खुशियां छा जाती
दही चिड़वा, मसालेदार खिचड़ी
तील, गुड़, पीठा लड्ड खूब खाते
ये पकवान भी बड़े काम के
तन-मन स्वस्थ प्रसन्न कर देते
अंदरुनी शक्ति बढ़ जाती
रोगों को दूर भगा देते
मकरसंक्रांति का शुभ दिनबड़ा ही पावन पर्व हैबच्चे जवान बुढ़े मिलकर रंग बिरंगी पतंगें उड़ाते हैं
इस दिन जो गरीबों की सुनते
उनका जो दुःख दर्द मिटाते
अक्षय पुण्य के भागी होते हैं
धर्म ग्रंथ इसकी महिमा गाते हैं
काले तिल के लड्डू दान करने से
पितर देवता शनिदेव प्रसन्न हो जाते हैं
हर अला बला से हमें बचाते
कष्टों को दूर भगाते हैं
हम सब देश वासी इस दिन
एक साथ पर्व का उत्सव मनातें हैं
असम में “भोगाली बिहू” कहते
उत्तर प्रदेश पश्चिम बिहार “खिचड़ी”
“ताइ पोंगल” उझवर तिरुनल तमिलनाडु
“उत्तरायण” गुजरात, उत्तराखण्ड
“उत्तरैन” माघी संगरांद जम्मू में तो
“शिशुर सेंक्रात” कश्मीर घाटी
“माघी” हरियाणा, हिमाचल प्रदेश
“लोहड़ी” पंजाब “पौष संक्रांति
“पश्चिम बंगाल तो
“मकर संक्रमण”कर्नाटक
नाम अलग-अलग हैं तो क्या है
सबका भाव और पर्व है एक
यही तो है भारत की पहचान
अनेक होकर भी हम रहते सदा एक
सबको मकर संक्रांति की
ढेरों बधाइयां देता हूं
हर एक का घर सुखी समृद्ध हो
यही ईश से अरदास करता हूं