छुट्टियाँ

0

प्रियांशु त्रिपाठी

मेट्रो की रफ़्तार से

बड़ी दूर निकल आये है

जहाँ से अपना शहर

नज़र तो नहीं आता,

पर हर रोज़ आँखों में

याद सा छलक जाता है

वो दूर्गा मंदिर

वो शिवगंज का बाज़ार

रमना की रामलीला

आरण्य देवी का दरबार

पकड़ी की मूर्ति

सपना सिनेमा का शो

जिसे देखने को

रोज़ काफ़ी भीड़ हो

ऐसी बहुत सी बातें

आज याद बनकर रह गई

ना पूरी होने वाली

कोई ख़्वाब बनकर रह गई

काश! बचपन लौट आता

जवानी पर मुखौटा ओढ़े

फिर हमें माहौल ये

पहले जैसी अजीज होती

इस मौके पर हमें

छुट्टियाँ फिर नसीब होती

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here