कहीं मेरे रूप की पूजा,
कहीं मेरे रूप पे कीचड़,
कहीं मेरे रूप पे आँसू,
तो कहीं मेरे रूप पे हँसी l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
कहीं मेरे रूप से भय,
कहीं मेरे दामन से खेल,
कहीं मैं सृजन की प्रतीक,
तो कहीं मैं भोग्या की सच l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
कहीं मेरे संस्कार की बात,
कहीं घृणा और तिरस्कार,
कहीं मेरे निर्माण की गाथा,
तो कहीं मेरे मिटने की व्यथा l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
कहीं मैं कवि के शब्दों की ज़करण,
तो कहीं चित्रकार की रेखाओं की जाल,
कहीं मैं संगीत की स्वर,
तो कहीं मैं वेदना की लहर l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
कहीं मैं साज़ और श्रृंगार,
कहीं मैं रूप और बहार,
कहीं मैं दर्शन और विचार,
तो कहीं अग्नि में दहन और चित्कार l
आखिर ऐसा क्यूँ है??
आत्मनिर्भरता और स्वतंत्रता राष्ट्र विकास के प्रमुख अवयव
—-● संजीव ठाकुर, रायपुर छत्तीसगढ़
"पराधीन सपने हूं सुख नाही"यह लोकोक्ति हर स्वाभिमानी आदमी और स्वतंत्रता प्रेमी व्यक्ति...