अद्भुत मन्दिर

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माधुरी

नवम्बर2005की वह संध्या बेला याद आते हीआज भी रोमांचित कर जाती हैऔर मन मयूर उड़ान भर कर चल पड़ता है उस भव्य मंदिर की तलाश में….। काश!कोई तो कह देता ” ऐसा मन्दिर    देखा गया है उस जगह…”  तो शायद किसी की मुझे पागल कहने की हिम्मत न होती।

मेरी सखी अल्पना 11नम्बर रोड, राजेन्द्र नगर में रहती थी  ,स्लिपडिस्क की परेशानी से जुझ रही थी,बिस्तर से हिलना- डुलना असम्भव था।

 रोज शाम को उसे ” दिव्य रेकी हीलिंग देने जाने लगी,तीन दिनों की हीलिंग से ही अल्पना को बहुत आराम मिलने लगा।  पूर्ण रूपेण उसे स्वस्थ करने के इरादे से हर शाम उसके पास जाने का सिलसिला जारी रहा।

 पैदल सैर का शौक बचपन से ही बहुत भाता रहा है। इसके कई लाभ जो मिल जाते हैं,अपनी काया तो स्वस्थ रहतीही है,साथ ही ऐसे प्राणियों से रूबरू होने का मौक़ा मिल जाता है जिनसे मिलने के बाद ,उनकी तकलीफ़ में साथ देने से जो आत्मिक सुख की अनुभूति होती है ,लगता है ईश्वरीय आनन्द की  प्राप्ति हो रही है।

लगातार 9वें दिन दिव्य हीलिंग पूर्ण करने  के बादअल्पना को यह कह कर कि अब वह स्वस्थ है,इसलिए कल से मिलना अब फ़ोन पर ही होगा,मैं  प्रफुल्लित मन से 2नम्बर रोड, राजेन्द्र नगर के लिए पैदल सैर का आनन्द लेते हुए चल पड़ी।सन्ध्या  बेला पूर्ण  विस्तार ले चुकी थी। राजेन्द्र नगर पुल के पास से होती हुई मैं आगे बढ़ चली।पास में ही  स्थित छोटे से मन्दिर में दिया जल रहा था। पूर्ण समर्पण भाव से नमन कर कुछ क़दम आगे बढ़ी ही थी कि आभास हुआ मैं किसी दूसरी ही दुनिया में पहुँच चुकी हूँ,  जहाँ पहले कभी नहीं आई थी।

मेरे सा

मने भव्य मन्दिर था।मन्दिर में  प्रज्वलित हो रहा दीपक पूरे गर्भगृह को अभूतपूर्व रोशनी से भर रहा था। श्री गणेश बाल रूप में मुस्कराते हुए बहुत भले लग रहे थे।ऐसा जान पड़ता था कि मैं उन्हें बाँहों में लिए झूला झुला रही हूँ।माँ लाल चुनरी ओढ़े मन्द मुस्कान से चारों दिशाओं को आनन्दित कर रही थी।साथ ही भव्य शिवलिंग चन्दन के लेप से शुशोभित हो पूरे वातावरण को सुगन्धित कर रहे थे। न जाने कितनी देर मन्त्र मुग्ध हो मैं उस आनन्द को अपने अंदर समेटती रही।

तन्द्रा तब टूटी जब सुजाता (मेरे पड़ोस में काम करने वाली लड़की जो अक्सर अपना दुःख दर्द सुनाने मेरे पास आती थी,छोटे -छोटे चार बच्चों की माँ, पति झूठे  मर्डर केस  में फँसा होने के कारण दर दर की ठोकरें खाने  को मजबूर)  ने आकर मुझे आवाज़ दी,”दीदी !आप इस समय यहाँ?

 सुजाता को देखते ही  मुँह से निकला,” मैं घर जाने का रास्ता भूल चुकी हूँ,वह बिंदास हँसते हुए बोली ,”क्यों मज़ाक करती हैं दीदी चलिए न मैं भी उधर ही जा रही हूँ”। काश !मैं उसे उस समय वह भव्य मंदिर दिखाने के होश में होती।

 घर के नज़दीक पहुँचने पर उस से मन्दिर के बारे में चर्चा की तो उसने दो टूक जवाब दिया, ऐसा कोई मन्दिर वहाँ पर या आसपास है ही नहीं,जिस से भी ज़िक्र किया सबने यही जवाब दिया कि उधर ऐसा कोई मन्दिर है ही नहीं, लेकिन मैं आज भी उस भव्य मंदिर के दर्शन से ओतप्रोत हूँ। आज भी उम्मीद लगाए हूँ कि दुबारा दर्शन अवश्य  होंगे।

हाँ !उस  आनन्ददायी दर्शन के बाद सुजाता की ज़िंदगी  में अनायास ही ख़ुशियों की बाढ़ आगई। मेरे बड़े भाई राकेश का (दिल्ली से) तुरन्त फ़ोन आया कि सुमन की शादी तय कर दिये हैं ,शीघ्र ही किसी लड़की की व्यवस्था की जाय।मुझे तो मन चाही मुराद मिल गई ।कई दिनों से सुजाता के लिए प्रार्थनारत थी।

सुजाता बड़े भाई के संरक्ष्ण में बच्चों सहित दिल्ली पहुँच गई।उसका पति उपेन्द्र जो बहुत भला इंसान है,जब उसे पहली बार मिली थी,कलेजा मुँह को निकल आया था, धँसे हुए गाल ,फटे हुए मैले कपड़ों में लिपटा, निरन्तर आंसुओं की बाढ़ से भीगता और अपनी बेगुनाही का सबूत देते हुए कहता  “दीदी मुझे और मेरे परिवार को बचा लीजिए”।  आज सुजाता और उपेंद्र को देखकर ऐसा लगता है किसी फिल्म के हीरो -हीरोइन से  मिल रहे हों। चारों बच्चे हॉस्टिल में पढ़ रहे हैं।दिल्ली में अपना फ्लैट ले लिया है।

ईश्वर भाई राकेश और भाभी कमला को स्वस्थ – दीर्घायु   बनाएँ। कई ज़िंदगियाँ सँवार चुके हैं,और भी ज़रूरतमंद ज़िंदगियाँ उनके हाथों सँवरती रहें।

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