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जमाबंदी के नए कानून से परिवार में वैमनस्यता बढ़ेगी और बड़े पैमाने पर पारिवारिक बिखराव होगा
- नीरव समदर्शी
- बिहार सरकार द्वारा जमीन खरीद बिक्री के नियम में बड़ा फेरबदल किया गया है। नए नियम के अनुसार अब किसी भी जमीन का बिक्री वही व्यक्ति कर पाएगा जिसके नाम से जमाबंदी होगी। इस नियम के पूर्व परिवार का कोई भी व्यक्ति जमीन बेच लेता था और इस नियम की वजह से बहुत फर्जीवाडा होता था|यह बात सरकार मानती थी। जिन परिवारों में अभी तक पूर्वजो के नाम से जमीन है और अभी तक परिवरिक बंटवारा नही हुआ है उनकी सुविधा के लिए सप्ताह में तीन दिन मंगलवार ,बुधवार और शुक्रवार को पंचायत भवन/ग्राम कचहरी और सामुदायिक भवन में शिविर का आयोजन किया जाएगा।
सरकार कुछ भी कहे-कुछ भी समझे, किंतु जमाबंदी से संबंधित इस नए कानून से समाज में पारिवारिक स्तर पर बड़े पैमाने पर बिखराव आएगा और आपस में टकराव बढ़ेगा। बहुत संभव खून खराबा भी हो। सरकार द्वारा बनाए गए इस नए नियम के असर को समझने के लिए राज्य के सामाजिक स्थिति को समझना जरूरी है। बिहार में अभी भी तीन -तीन,चार चार पीढ़ी से लोगों के घरों में बंटवारा नहीं हुआ है। आजादी के बाद से बदलते सामाजिक स्थिति में जैसे-जैसे कृषि व्यवस्था बिखरने लगी, लोगों की निर्भरता नौकरी पर बढ़ने लगी।, छोटे-छोटे गांव के लोग बड़े शहरों में जाकर नौकरी खोजने लगे । धीरे-धीरे हमारे समाज में एकल परिवार का चलन बढ़ता गया। किंतु लोगों ने अपने गांव में जमीनों का बंटवारा नहीं किया। अधिकतर परिवारों में जमीन दादा और परदादा के नाम से ही है। परिवार के मुखिया के मरने के बाद स्वतःजमीन पर अगली पीढ़ी का हक हो जाता था। यह व्यवस्था कहीं ना कहीं दूर देश में जाकर रहने वाले परिवार के सदस्यों का जुड़ाव अपने गांव और परिवारों से बनाए हुए था । आंशिक तौर पर ही सही संयुक्त परिवार की व्यवस्था बची हुई थी। भले ही सरकार यह कहती है कि इसमें बहुत अधिक फर्जीवाड़ा हुआ करता था किंतु गांव में रहने वाले लोग एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे एक दूसरे के स्वभाव को भी अच्छी तरीके से जानते थे। खरीदार भी जानते थे और बेचने वाले भी जानते थे। इसलिए फर्जीबड़ा कम स्तर पर ही हुआ करता था ।फर्जीवाड़ा की संभावना वही हुआ करता था ।जहां जमीन की खरीद बिक्री बाहर के लोगों के साथ की जाती थी। जमीन खरीद बिक्री बाहर के लोगो से करने के क्रम में ही दलाली की व्यवस्था बन गई। जैसे-जैसे गांव का शहरीकरण किया जाने लगा। वैसे-वैसे जमीन की खरीद बिक्री में बीच के व्यक्ति जिसे बोलचाल की भाषा में जमीन का दलाल कहते हैं का महत्व बढ़ने लगा। बड़ी पूंजी वाले दूर गांव में विकास की संभावना के आधार पर बड़े-बड़े जमीन के टुकड़े खरीद कर निवेश के तौर पर छोड़ने लगे । उस क्षेत्र के शहरीकरण के साथ-साथ जमीन का भाव बढ़ने पर उसे बेचने लगे। जब इन बिचौलियों का महत्व बढ़ने लगा तब जमीन के क्षेत्र में इस तरह की फर्जीबड़ा की संभावना स्वभाविक तौर पर बढ़ गई अगर बिचौलिए संस्कृति का विकास ना किया जाता तो जमीन में परिवार के किसी सदस्य की जमीन को किसी सदस्य द्वारा बेच देने की संभावना भी नहीं बनती। सरकार इस बिचौलिये संस्कृति को खत्म करने के बजाए उस संस्कृति को बढ़ावा ही दे रही है। किसी भी कारण से जमीन के क्षेत्र में सरकार द्वारा बनाए गए इस नए नियम में अनेक अव्यवहारिकताएँ है क्योंकि आज भी बिहार के परिवारों में कहीं न कहीं आपसी लगाव है। दूर देश में रहने वाले अपने खानदानी जमीन अपने खानदान के नाम रखी जमीन के सहारे भावनात्मक रूप से गांव में बसे है। आज भी छठ, होली दिवाली ,दशहरे के मौके पर लाखों लाख लोग दिल्ली, मुंबई ,कोलकाता ,आदिसे छुट्टियों में भाग-भाग कर अपने गांव में आते हैं। लोगों की गांव की ओर लगातार आने की वजह से सरकार को नई ट्रेनों की व्यवस्था करनी पड़ती है। सरकार के इस नए नियम से उन तमाम लोगों में परिवार के सभी सदस्यों के नाम से जमीन करवाने में अनेकानेक व्यावहारिक कठिनाइयां तो होंगी ही। अगर किसी भी तरह यह बंटवारा कर भी लिया जाएगा तो उन सभी लोगों का अपने गांव अपने जमीन और अपने अपनों के प्रति उस जमीन के माध्यम से बनी हुई आत्मीयता नष्ट हो जाएगी। समाज में बडे पैमाने पर बिखराव होगा और चारो ओर वैमनस्यता का राज होगा। बहुत अधिक जमीन वाला परिवार आज भी बहुत कम है। बंटवारा के बाद एक-एक व्यक्ति हिस्से एकाध कट्ठा जमीन आएगा। लेकिन बंटवारा के पूर्व वह सभी अच्छी जमीन वाले माने जाते थे। सरकार की इस नई व्यवस्था से बड़े पैमाने पर पर सामाजिक बिखराव और सिरफुटौवल की संभावना बढ़ गईं है।