मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

पुरानी गली

प्रियंका त्रिवेदी/बक्सर-डुमरांव फिर वो पुरानी गली,जब सामने से गुजर गई। बहुत से खट्टे-मीठे लम्हों को,फिर संजो गई।। चिलमन में झांका तो ,फिर वो चेहरे दिखे। वो पल लबों पे हंसी,आंखों में नमी छोड़ गई।। जहां बीता मेरा बचपन,थी मैं जवान…

अम्मा मन में सोच रही है

–● हरिनारायण सिंह ‘हरि’ अम्मा मन में सोच रही है किस बेटे की आस लगाऊँ जिसको सब दिन पाला-पोसा उससे रूखा-रूखा पाऊँ रंग-ढंग बेटों के बदले कटे-कटे-से वे अब रहते बीवी चढ़ी-चढ़ी रहती हैं/ सबकी है बेचारे सबकुछ हैं सहते…

गीत मेरे नाम के लिखना सनम

——राजकान्ता राज गीत मेरे नाम के लिखना सनम शायरी को पुर-अदब पढ़ना सनम मैं लिखूं ग़ज़लें तुम्हारे वस्ल की छेड़ दूं जब तान तुम सुनना सनम मैं बनूंगी ताल – सुर, संगम सभी महफ़िलों की शान तुम बनना सनम ज़िंदगी…

जीवन धन बिटिया

—इन्दु उपाध्याय तुम स्वतंत्र हो बिटिया,सबका जीवन धन यंत्र हो। तुम सौभाग्य के कपाल पर,लिखा का सुख मंत्र हो। सबके लिये शीतल बयार हो,ज़िन्दगी की मधुर ताल हो। मन की बगिया के मधु से सिंचित-सी,प्यारी कविता हो। जीवन के धूप…

बाबूजी

—प्रिया सिंह लखनऊ उत्तर प्रदेश तुम्हारे रास्ते से ज़िन्दगी आबाद बाबूजी। इसी दर्जा मिरी करते रहें इमदाद बाबूजी।। मिरे जीवन में उन का मर्तबा इतना मुक़द्दस है, ख़ुदा सब से है आला और ख़ुदा के बाद बाबूजी।। मुसीबत से हमेशा…

अद्भुत और विरल व्यक्तित्व के धनी थे डॉक्टर रमेश नारायण दास

नीरव समदर्शी डॉक्टर रमेश नारायण दास मैथली के साहित्यकार और ए0एन0 कॉलेज के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष थे।उनकी मैथली कथा संग्रह पाथरक नाव और उज्जर सपेत ग्राम्य जीवन पर आधारित है।आज मैं पितृ दिवस के अवसर पर उनके साहित्यिक…

साहित्य

नहीं रहे राष्ट्रभाषा प्रहरी नृपेंद्रनाथ गुप्त / साहित्य समाज में शोक की लहर

पटना/प्रतिनिधि(मालंच नई सुबह)पटना, १२ जून। ‘राष्ट्रभाषा-प्रहरी के रूप में समादृत हिन्दी के वयोवृद्ध साहित्य-सेवी, साहित्यिक त्रैमासिकी ‘भाषा भारती संवाद’ के प्रधान संपादक और बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त नहीं रहे। रविवार के पूर्वाह्न दस बजे पटना…

प्रकृति और मानव

    राज प्रिया रानी बेमौसम बरस रही घटा घोर बरसात उकेर रही हजारों अनसुलझे सवाल मानवता का क्षरण कस रहा है जाल भौगौलिक संरक्षण में बुन गया जंजाल बेकाबू में धरती का प्रदूषण नियंत्रण क्षरण हरण हुआ धरा का…

मुझे टूटना ही होगा…

—–नीरव समदर्शी जानता हूँ मैं कि जो झुकता नहीं है वह टूट जाता है| जानता हूँ मैं जो जितना झुकता है उतना ही उठता है मगर क्या करूं मैं अपनी इस रीढ़ की हड्डी का, जो लोहे सा सख्त है|…

आत्मकथा- – कोरोना वायरस की

@निक्की शर्मा र’श्मि‘  मुम्बई आत्मकथा- – कोरोना वायरस की मैं कोरोनावायरस हूँ। मुझे कोई हल्के में ना लें। मैं महामारी के रूप में इस बार आया हूँ।सर्दी, जुकाम, खांसी जैसी तकलीफों का तो मानो पर कोई असर ही नहीं हो…

ओ मुसाफिर !

विजय गुंजन आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है । ओ मुसाफिर रुक जरा आराम कर ले , पाँव को कुछ बल मिले थोड़ा ठहर ले । दूर जाना है , अभी लम्बा सफर है । आज यह पल…

समर्पण

राज प्रिया रानी आरंभ पुरुष का हर कदम स्त्री थी उषा से निशा तक स्त्री ही करम थी पुरुष की दुनिया भी प्रभा से थी जागती निशा की नींद भी उसकी सपना निहारती शांति की अभिलाषा पुरुष को तलाश थी…