राम की शक्ति पूजा

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 राम की शक्ति पूजा

  —-● हरिनारायण सिंह’ हरि ‘

महिषासुरमर्दिनी जगदंबा दुर्गा मातृशक्ति की साक्षात चिन्मय प्रतीक हैं। इनकी पूजा से, आराधना से, रूप,जय और यश की प्राप्ति होती है तथा काम और क्रोध जैसे अवगुण रूपी शत्रुओं से छुटकारा मिलता है। हम इनकी वंदना करते हुए इसी प्रकार की याचना करते हैं–  ” रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।”

  माँ भगवती की महिमा अपरम्पार है। श्री दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के सातवें श्लोक में देवताओं ने इनकी स्तुति इस प्रकार की है-
” हेतु समस्त जगतां त्रिगुणापि दोषैन ज्ञायसे हरिहरादिभिर्प्यपारा।
सर्वाश्रयाखिलमिदं जगदंशभूतमव्याकृता हि परमा पकृतिस्वत्वमाद्या।।”

 अर्थात्, हे देवि! आप संपूर्ण जगत की उत्पत्ति में कारण हैं। आप में सत्वगुण, रजोगुण और तमोगुण, ये तीनों गुण मौजूद हैं। फिर भी, इन दोषों के साथ आपका कोई संसर्ग नहीं है। भगवान विष्णु और शंकर आदि देवता भी आपका पार नहीं पाते। आप ही सब का आश्रय हैं। यह संपूर्ण जगत आपका अंश मात्र है क्योंकि आप सबकी आदिभूत अव्याकृता परम प्रकृति हैं।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम को भी महाबली राक्षसराज रावण को पराजित करने के लिए जगदीश्वरी माँ शक्ति की आराधना करनी पड़ी है । राम की शक्ति-पूजा का वर्णन ‘श्रीमद्देवीभागवत’, ‘कालिका पुराण ‘, बंगला के विख्यात (कृतिवासीय) और आधुनिक हिंदी के यशस्वी कवि महाप्राण निराला की कालजयी कविता ‘राम की शक्ति- पूजा ‘ में की गयी है। श्रीराम ने अश्विन शुक्ल पक्ष में रावण रूपी अनाचार के विनाश और सीता रूपी सदाचार के उद्धार के लिए लंका में युद्ध करते समय जगदंबा शक्ति की आराधना की थी।

    रावण से राम का विकट संग्राम हो रहा था। रावण वानरों का लगातार संहार करता जा रहा था। राम साधन-विहीन थे। इनके पास रथ तक नहीं थे, जबकि रावण  दिव्य रथ पर आरूढ़ था तथा दिव्यास्त्रों  से सज्जित —
“रावण रथी विरथ रघुबीरा।”

  देवराज इंद्र को जब यह बात  मालूम हुई तो उन्होंने अपने साथ साथ
देवराज को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने अपने रथ के साथ अपने सारथी मातलि को राम के पास भेजा। राम ने इंद्र की सहायता को स्वीकार करते हुए रथ की परिक्रमा कर उसे नमस्कार किया। पश्चात् उस रथ पर चढ़कर रावण से घोर युद्ध करने लगे अब राम रावण पर विश करने लगे। रावण को आश्चर्य हुआ। उसने इंद्र के रथ को पहचाना। उसने अपने मन में संकल्प लिया कि यदि इस बार बच गया तो एक-एक कर समस्त वानर सैनिकों का संघार कर दूँगा ।युद्ध विकट से विकटतर होने लगा। दोनों योद्धा जान की बाजी लगाकर एक- दूसरे पर प्रहार करने लगे। इसी समय रावण ने जगदंबा का ध्यान किया और उनसे प्रार्थना की कि हे माता! आप दयामयी हैं, इस कुसमय में मेरी रक्षा कीजिए। संसार में अब मुझे किसी पर भरोसा नहीं रह गया है ।भगवान शिव ने भी मेरा त्याग कर दिया है, इसलिए मैंने आपका स्मरण किया है। आप शक्ति, मुक्ति और तृप्ति हैं, अतः मेरा शोक-निवारण कीजिए। भगवती पार्वती रावण की प्रार्थना से प्रसन्न होकर उसे अभय प्रदान करने के लिए स्वयं उसके रथ पर बैठ गयीं। राम ने रावण के रथ पर जब जगदंबा को देखा तो उनका धैर्य जाता रहा-

  “बोले रघुमणि- मित्रवर, विजय होगी न समर,
यह नहीं रहा नर- वानर का राक्षस से रण
उतरीं पा महाशक्ति रावण से आमंत्रण
अन्याय जिधर, है उधर शक्ति। -“

    ×             ×             ×
” – –  हैं महाशक्ति रावण को लिए अंक,
लांक्षन को ले जैसे शशांक नभ में अशंक,
हत मंत्रपूत शर संवृत करतीं बार-बार
निष्फल होते लक्ष्य पर क्षिप्र वार पर वार!”

  (निरालाकृत राम की शक्ति-पूजा)

   पर अन्ततः काफी विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि शक्ति का उत्तर शक्ति से ही दिया जाना संभव है।अतः जब तक जगदंबा को अपने अनुकूल नहीं किया जाता, रावण पर विजय संभव नहीं है। युद्ध रोक दिया गया। राम ने समुद्र के किनारे जाकर देवी का स्तवन प्रारंभ किया ।उन्होंने चंडी पाठ किया। राम ने शक्ति की सोने की मूर्ति बनायी। षष्ठी, सप्तमी और नवमी को पूजा कर दशमी को शास्त्र विधि से विसर्जन किया। राम का आदेश पा हनुमान ने दूर-दूर से पूजा की सामग्री को एकत्र किया। भगवान राम ने बड़ी श्रद्धा से देवी की पूजा की। देवी ने अप्रकट रूप से उनकी पूजा को स्वीकार भी किया,  किंतु उन्होंने दर्शन नहीं दिया। विभीषण ने मंत्रणा दी कि जगदंबा को प्रसन्न करने का एकमात्र उपाय है उनके चरणों में एक सौ आठ नीलकमल को चढ़ाना।  हनुमान देवीदह से एक सौ आठ नीलोत्पल लाये।राम एक-एक कर भगवती के चरणों परनीलकमल चढ़ाने लगे।पर, यह क्या? नीलकमल एक सौ सात ही ठहरे! देवी ने राम के  संकल्प-भंग और परीक्षा के लिए एक कमल को चुरा लिया। राम अधीर हो उठे,कातर हो उठे। उन्होंने देवी की आराधना की,फिर भी,  देवी का साक्षात्कार नहीं हुआ।

प्रत्युत्पन्नमति राम के मन में एक विचार कौंधा —
“कहती थीं माता मुझे सदा राजीवनयन
दो नीलकमल हैं शेष अभी, यह
पुरश्चरण

    पूरा करता हूँ देकर माता एक नयन। “

: (राम की शक्ति-पूजा निराला

  और उन्होंने वाण से अपना एक कमल -नयन निकालना चाहा, भगवती साक्षात प्रकट हो गयीं।भगवती ने राम का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘मुझे नहीं चाहिए।’ राम का संकल्प पूरा हुआ।

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