मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

“मैं बच्ची हूँ माँ तुम्हारी”

“मैं बच्ची हूँ माँ तुम्हारी”

—-पूजा गुप्ता मिर्जापुर

उत्तर प्रदेश

मैं बच्ची हूँ ना माँ तुम्हारी प्यारी सी,

तुम्हारी ममता की छांव

की अद्भुत चाबी।

मुझे सैर कराती हो मेले की

अक्सर,सुंदर कपड़े दिलाती हो

बाजार से।

नई फ्राक बड़ी सुंदर झालर वाली,

देखो लगती हूँ ना मैं परी तुम्हारी।

स्वादिष्ट सा तुम भोजन बनाती हो,

साथ में बैठकर मुझे खिलाती हो।

मनपसंद मेरे व्यंजन झट से बना कर,

खिला कर अपने साथ सुलाती हो।

रोज मुझे प्यारी प्यारी लोरी सुनाती हो,

डर ना जाऊँ मैं सपनों में दुनियाँ में।

मुझे चिपका कर बाहों में सुलाती हो,

माँ तुम मेरी खुशियो की अद्भुत चाबी।

कभी पड़ जाऊँ मैं बीमार कमजोर सी,

तो प्यार से मेरी नज़रे उतारती हो तुम।

चोट लगती है जब कभी कहीं भी,

तुम प्यार से मुझे मरहम लगाती हो ।

मैं बच्ची हूँ ना माँ तुम्हारी प्यारी सी,

तुम्हारी ममता की छांव है न्यारी।

मेरी सभी इच्छायें पूरी करती हो,

तुम मेरी खुशियो की अद्भुत चाबी।

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