हिमालय में साधनारत सन्त हरिहरानन्द भारती

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 डॉ योगेश धस्माना

गढ़वाल हिमालय सदियों से अपनी आध्यात्मिक चेतना के कारण सन्त-महात्माओं के लिए त्याग-तपस्या साधना और ध्यान का केन्द्र रहा है। गढ़वाल की ऋषि परम्परा में एक ऐसा ही एक व्यक्तित्व स्वनाम धन्य वाचस्पति धस्माना (स्वामी हरिहरानन्द भारती) जी का आता है।

ग्राम तोली बदलपुर-पौड़ी गढ़वाल में जून 1935 में जन्में वाचस्पति एक दार्शनिक और कर्मकाण्डी परिवार से सम्बन्धित थे। पारिवारिक दायित्वों की पूर्ति और उनके आर्थिक हितों की रक्षा के लिए उन्होंने कुछ अरसे तक तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग विभाग में रह कर बम्बई बडौदा, रंगून, बहरीन आदि स्थानों पर नौकरी की।

किन्तु पूर्व जन्म के संस्कारों के चलते उनके अन्दर की चेतना उन्हें सदैव लोक कल्याण के लिए प्रेरित करती रही।

नौकरी के दौरान उन्होंने 1980 में बहरीन देश से लौटकर अंकलेश्वर (गुजरात) में कल पुर्जे बनाने की एक फैक्ट्री शुरू की। दो तीन वर्षो तक इस फैक्ट्री का संचालन करने के बाद उन्होंने इस उन्ही श्रमिकों को सौंप दिया। 1983 में ओशो के दर्शन से प्रभावित हो कर उन्होंने गृहस्थ धर्म को भी निभाते हुए भगवा वस्त्र धारण कर लिए थे। इसके पश्चात भारती जी गाँव तोली के निकट ताड़केश्वर धाम में रहने लगे। इसी बीच तोली गांव से अन्तर्राष्ट्रीय जगत में आध्यात्मिक चेतना को जागृत करने वाले स्वामी राम (किशोरी लाल धस्माना) से 1996 से दीक्षा लेकर अपने शेष जीवन को समाज को समर्पित कर दिया था।

इस तरह 2001 में उन्होंने तोली के निकट मलेथी में स्वामी राम निष्काम कर्मयोग ट्रस्ट की स्थापना की। अपने आध्यात्मिक गुरू स्वामी राम के आर्शीवाद से उन्होंने मलेशिया, यूरोप कनाड़ा सहित अमेरिका में भारतीय वेद और वेदान्त संस्कृत का प्रचार और प्रसार किया।   इससे उपरान्त उनके अनुयायी उनके साथ भारत में (ताड़केश्वर-गढ़वाल) में भी रहे।  वर्ष 2003 में उन्होंने अपने विदेशी शिष्यों की मदद से मलेथी में 8 वीं कक्षा तक के बच्चों के लिए निशुल्क स्कूल और एक आश्रम की स्थापना की। आगे चल कर इसी स्थान पर वर्ष 2005  में उनके द्वारा एक बी.एड. कालेज का संचालन प्रारम्भ किया गया। जो आज के दिन तक संचालित है।

स्वामी हरिहरानन्द जी के शिष्यों में प्रमुख रूप से नीना जानसन और गिन्नी उनके इस कार्यो में अनवरत रूप से सहयोग कर रहे हैं। ध्यान, योग और भारत की सनातन स्ंस्कृति से जुड़कर  इस योगी पुरूष ने तारकेश्वर धाम में रहते हुए उसके पुर्नउद्वार कार्यक्रमों को भी आगे बढ़ाने में अपना योगदान दिया। उनके पश्चात उनके शिष्य मां नन्दा डेनियल ने उनके  जीवन दर्शन पर एक पुस्तक लिखकर उत्तराखण्ड की धरती के प्रति आभार प्रकट करते हुए लिखा कि देवभूमि को वे प्रणाम करते हैं, जिन्होंने सदैव आध्यात्मिकता और सन्तों को जन्म दिया।

अपनी जाति के स्वाभिमान अनुरूप प्रचार और पाखण्ड से दूर रह कर दरिद्र नारायण की सेवा में लीन यह कर्मयोगी अनरवत साधना में  लीन रह कर 29 जून, 2008 को ब्रह्मलीन हो गए। उनकी पुण्य स्मृति में उनकी पत्नी श्रीमती सुशीला पुत्र गिरीश, कुसुम, प्रदीप ,कुलदीप, संगम और विनोद नवानी सहित हम सभी परिजन उनको श्रद्वा सुमन अर्पित करते हैं। पाठकों के लिए उनकी स्मृति में पूज्य स्वामी राम के साथ दीक्षा ग्रहण करने के अवसर पर उनका एक ऐतिहासिक फोटो साझा कर रहा हू|इस कर्मयोगी को हम सबका शत-शत नमन..

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