स्त्री सशक्तिकरण और सनातन धर्म

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ऋचा  वर्मा

हम सब महाशक्ति मां दुर्गा की पूजा का उत्सव मना रहे हैं और उसी बहाने समझ रहे हैं नारी के अनेक रूपों को। अधिकतर जब भी हम नारियों के उत्थान की बात, उनकी अस्मिता की बात करते हैं तो हमारी दृष्टि अनायास ही पश्चिम और पाश्चात्य संस्कृति की ओर उठ जाती है और हम विमेंस लीव की बात करने लगते हैं। पर एक बार , सिर्फ एक बार जब हम मुड़ कर अपनी जड़ों, अपनी संस्कृति ओर देखते हैं

                                                                                  ‘  कस्तूरी कुंडली बसे मृग ढूंढे बन माहि,

                                                                                    ऐसे घटि घटि राम है दुनिया देखे नाही ।‘

वाली बात चरितार्थ होती दिखती है। सच हमारे वेद  -पुराण , मनुस्मृति सभी में नारियों के सम्मान में कितनी बातें कही गई है और सिर्फ कहीं नहीं गई हैं ,बल्कि उनमें  समाहित शक्तियों का भी बहुत विस्तृत एवं सजीव चित्रण किया गया है। एक जगह जहां मनु स्मृति में कहा गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता’

वहीं दुर्गा सप्तशती जो मार्कंडेय पुराण का एक अंश है उसमें शक्ति स्वरूपा दुर्गा की शक्ति का कितना सजीव चित्रण है उससे हम सब अनभिज्ञ नहीं हैं। मां दुर्गा के कितने रूपों का वर्णन है इस ग्रंथ में ! कभी वह  काली बनकर रक्तबीज का भक्षण करतीं हैं और कभी दुर्गा के रूप में अपने बचाव के लिए किसी पुरुष की सहायता की अपेक्षा  रखे बिना खुद ही शुंभ निशुंभ का नाश कर देतीं हैं।

भारत एक ऐसा देश है जिसमें सदियों से विदेशी आक्रमणों को झेला ,टूटा और फिर खड़ा हो गया , इतिहास के पन्नों में दर्ज अनेक शासकों के बाद मुगलों और अंग्रेजों के शासन काल में भी  हिंदू सभ्यता संस्कृति का बहुत ही बुरा हाल हुआ। स्त्रियों में शिक्षा का दर कम हुआ ,तो वेद पुराण तो दूर स्त्रियां साधारण ढंग से पढ़ाई लिखाई करने से भी वंचित हो गयीं। धीरे-धीरे उन्हें एक भोग विलास की वस्तु ,घर की चारदीवारी में बंद एक पराधीन जीव के रूप में जिंदगी व्यतीत करने के लिए बाध्य होना पड़ा।

लेकिन जब आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं तब हम बड़े गर्व के साथ कह सकते हैं की आज हमारे परिवेश की स्त्रियां अपेक्षाकृत बहुत ही बेहतर स्थिति में है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार के साथ वह जिंदगी के अन्य क्षेत्रों में अपनी उपयोगिता बहुत ही सफलता के साथ सिद्ध कर रही है। जैसे दुर्गा के अनेक रूप थे वैसे ही आज हम स्त्रियों के अनेक रूप हैं शिक्षा के लिए हम सरस्वती की साधना करते हैं ,घर परिवार के पालन पोषण की बात  हो तो हम गृहलक्ष्मी बन जाते हैं और विषम परिस्थितियों में हम दुर्गा का रूप भी धारण कर लेते हैं। शुंभ निशुंभ हमारे समाज से कभी खत्म नहीं होंगे लेकिन जूडो कराटे  या दूसरे प्रकार के रक्षात्मक कलाओं को सीख कर आज की महिलाएं दुर्गा का रूप जरूर धारण कर लेने में सक्षम हैं ।इन सब रूपों के अलावा भी पारिवारिक या घरेलू परिदृश्य में भी एक नारी में अनेक रूप होते हैं या दू

सरे शब्दों में कह सकते हैं की उन्हें अनेक किरदारों का निर्वहन भी करना पड़ता है । कहते हैं ना कि

‘लाइफ इज ए ड्रामा,मैन इज ऐन एक्टर ,गॉड इज द डायरेक्टर’ शेक्सपियर ने यहां भी ‘मैन’ शब्द लिखा है,  क्योंकि महिलाओं की कद्र शायद उस समय पश्चिम में भी नहीं थी।  तो  घरों परिवारों महिलाऐं  कभी  पुत्री होती हैं, कभी बहन होती है कभी पत्नी होती हैं,कभी बहू होती है ,मां होती है ओर फिर सास भी बन जाती हैं अपनी बहुओं की।  इन सब किरदारों में वह गाड़ी की स्टियरिंग चलाने से लेकर रसोई में खाना बनाने तक का काम बखूबी कर रही है ।इससे ज्यादा और क्या प्रमाण हो सकता है कि कि आज की नारी एक है लेकिन उसके रूप अनेक हैं। लेकिन हमें इतने से संतुष्ट नहीं होना है हमें अपने इस किरदार को और भी मजबूत और भी अच्छा बनाना है इसके लिए हमें दूसरी महिलाओं के प्रति आदर का भाव ,उनके साथ सहयोग करने की इच्छा और हर रिश्ते को इज्जत देना पड़ेगा। कहते हैं और यह सच  भी है कि एक महिला की दुश्मन एक महिला ही होती है। तो अगर हम सास के रूप में एक बहू को स्नेह ना दे सके, एक बहू के रूप में सास को इज्जत ना दे सके, एक अधिकारी के रूप में अपने मातहत महिलाओं को संरक्षण न दे सके ,अपने काम वालियों के प्रति स्नेह और प्यार का माहौल ना दे सके ,अपनी बेटियों को अपेक्षित आजादी ना दे सके उन्हें उनके मन के मुताबिक शिक्षा या फिर आगे की जिंदगी जीने का अवसर न दे सके तो हमारी यह स्वतंत्रता  तरक्की ज्यों की त्यों रह जाएगी या फिर समय की मार के चलते कुछ महिलाएं प्रगति का हिस्सा नहीं बन पाई हों या उन्हें अवसर नहीं दिए गए हों तो मुमकिन है कि हमारा  महिला समाज बैकफूट  पर चला जाए , इसलिए जरूरी है कि हम अपने समाज की उन्नति के लिए हमेशा प्रयासरत रहे, बहुत मुश्किल से हासिल किया गया यह मुकाम हमारे हाथ से  फिसले नहीं।

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