“फेसबुकिया पर्यावरण विशेषज्ञ”

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 अर्चना अनुप्रिया

कोरोना ने और जो भी क्षति समाज को पहुँचायी हो, एक काम तो बहुत अच्छा किया है कि  रातों-रात सोशल मीडिया पर पर्यावरण विशेषज्ञों की बाढ़ सी ला दी है।जिस-जिस के व्यापार बंद हुए,उनमें से कई लोग या तो “स्वघोषित पर्यावरण विशेषज्ञ” हो गए या “स्वघोषित लेखक” बन गए। सच में, आपको विश्वास नहीं हो रहा है न..कभी समय निकालकर सोशल मीडिया पर नजर दौड़ाईए।कई ऐसे नये लोग दिख जायेंगे, जिन्होंने जीवन में कभी पेड़ भले ही न लगाए हों, पर्यावरण के विषय में छिछला ज्ञान रखते हों, परंतु फेसबुक पर पेड़ लगाकर फेसबुक के पर्यावरण को मनोरंजक जरूर बना रहे हैं।

जी हां, कईयों को कोरोना काल में अचानक विशेषज्ञ बनते हुए देखा है मैंने।ऐसे बहुत से लोग हैं, जिन्होंने अपने घर में भले  प्लास्टिक के पौधे लगा रखे हैं, परन्तु सोशल मीडिया पर गजब का पर्यावरण-ज्ञान दर्शाते दिख रहे हैं।विशेषज्ञ बनने में उन्हीं के आजमाए रास्ते बता रही हूँ।आपको इसके लिए ज्यादा मेहनत भी नहीं करनी है। एक ब्लॉग बनाना है,जो चाय बनाने से ज्यादा आसान है,पर्यावरण संबंधी लेखों को ऊपर से या नीचे से पढ़ लेना है, कुछ ऐसे नाम खोजने हैं, जो अधिकतर लोगों के कानों तक नहीं पहुँच पाए हों या स्वयं स्वघोषित लेखक महाशय ने भी कभी न सुने हों और फिर तरह-तरह के वाक्यों की पर्यावरण-रेसिपी बनाकर अपने ब्लॉग पर इस तरह प्रकाशित कर देना है कि आपको लोग विशेषज्ञ समझने पर मजबूर हो जायें। हाँ, उस पर किसी वास्तविक विशेषज्ञ की राय लिखना न भूलें… हो सके तो उनकी किसी उक्ति को कॉपी- पेस्ट करके अपने विचारों में डेजर्ट की तरह प्रस्तुत करें। इससे आपके दोस्तों और सोशल मीडिया के अन्य पाठकों पर आपकी पर्यावरण संबंधी लोलुपता दिखेगी और पर्यावरण के प्रति आपका ज्ञान दिखेगा। इसके बाद, एक अहम् कदम यह उठाना है कि मुँह पर कपड़ा बाँधिये, एक झाड़ू उठाइए, महंगे मोबाईल के बढ़िया से कैमरे से छत पर या अपने घर के आस-पास के मुहल्ले में कैमरा क्लिक होने तक झाड़ू घुमाइए। हो सके तो, दो-चार लोगों को तस्वीर में अंगूठा दिखा कर “यस्स” करते हुए या तर्जनी और सबसे छोटी उंगली आगे रख कर “यो” का साईन दिखाते हुए तस्वीरें खिंचवायें। इससे फायदा यह होगा कि तस्वीर को बहुत ‘लाइक्स’ मिलेंगे,जो आपको विशेषज्ञ साबित करने में मदद करेंगे। एक और काम कर सकते हैं, जो आजकल अधिकतर ‘फेसबुकिया विशेषज्ञ’ कर रहे हैं… पर्यावरण संबंधी तस्वीरों पर फोटोशॉप या किसी अन्य ऐप के जरिए अपनी तस्वीर या तो किसी राजनीतिक मंच पर  आरुढ़ कर लीजिए या किसी महत्वपूर्ण सभा में बैठे दर्शकों की सबसे आगे की श्रेणी में लगा दीजिए। कई तथाकथित विशेषज्ञों ने तो “मंत्री जी के साथ पर्यावरण पर परिचर्चा” करते हुए भी तस्वीरें बना ली हैं।आप चाहें तो ऐसा भी कर सकते हैं। इससे आपका फ्रेंडलिस्ट बड़ी तेजी से बढ़ेगा और आप “स्टार” की श्रेणी में माने जाने लगेंगे। फिर, पर्यावरण पर अपने नाम से कुछ भी लिखिए। मसलन, “मेरा यह मानना है कि…”  या “जब यह प्रश्न उठा है तो हमें यह तय करना होगा कि”…वगैरह वगैरह। किसी मंत्री जी के बगल में अपना चेहरा घुसा कर तस्वीर खिंचवायेंगे तो और भी ज्यादा विशेषज्ञ दिख पाएँगे। हाँ,एक बात बहुत महत्व की है। पेड़-पौधे लगाते हुए तस्वीरें खिंचवाना और लोगों को पेड़ पौधे का महत्व समझाते हुए तस्वीरें पोस्ट करते रहना कतई मत भूलिएगा। भले वास्तविकता यह हो कि दुबारा पलटकर कभी आपने उन पेड़-पौधों को नहीं देखा हो या आपके खुद के घर में या ड्राइंग रूम में प्लास्टिक के पौधे ही लगे हों। परंतु, सोशल मीडिया पर आप के पाठकों को इसकी भनक भी  नहीं लगनी चाहिए।बल्कि, अपने पाठकों को मोहक शब्दों द्वारा पेड़ लगाने के नुस्खे और फायदे जरूर बताइए।

जब आप ब्लॉक लिखें या फेसबुक पर लोगों को जानकारी दें तब यह  जरूरी नहीं है कि आपकी हिंदी भाषा और वर्तनी एकदम सही ही हो। आप ‘स’ को ‘श’ या ‘व’ को ‘ब’ या ‘ब’ को ‘व’ भी लिख सकते हैं। लिंगभेद पर तो ध्यान देने की जरूरत ही नहीं है। अब तो सरकार ने भी “जेंडर डिफरेंस” को गैरकानूनी बता दिया है। इसीलिए,स्त्रीलिंग को  पुल्लिंग और पुल्लिंगग को स्त्रीलिंग बेखौफ होकर लिखिए।इससे आपके अंदर के लेखक की साहित्य में जेंडर संबंधी उदारता भी दिखाई देगी। आखिर आपने अपने प्रोफाइल में “लेखक” भी तो लिख रखा है। लोगों को भी तो पता चलना चाहिए कि समाज में ही नहीं लेखन की दुनिया में भी आपके लिए स्त्रीलिंग-पुलिंग सब एक समान हैं। इससे आप के मुरीदों की संख्या बढ़ेगी ही नहीं,लोग आपके उदार दिल की वाहवाही भी करेंगे। ज्ञान के लिए न सही,मजे लेने के लिए ही सही पर लोग पढ़ेंगे जरूर और हँसेंगे भी। इस अवसाद के माहौल में स्वयं को लेखक घोषित करके और आत्ममुग्ध होकर आप लोगों में हँसी बाँट रहे हैं, यह क्या कम बड़ी बात है? हाँ, बीच-बीच में अपने तथाकथित विशेषज्ञों वाले विचार अंग्रेजी भाषा में भी लिखिए ताकि लोग आपको विशेषज्ञ ही नहीं “अति विशेषज्ञ” समझने लग जायें। वैसे भी, अंग्रेजी भाषा के ज्ञाता सोशल मीडिया पर ज्यादा नहीं हैं। आपने क्या लिखा है, हिंदुस्तान के आधे लोग तो समझ ही नहीं पाएँगे और जो समझेंगे,वे मुस्कुरा कर रह जायेंगे। यकीन मानिए, आप फेसबुक पर पेड़ लगाकर सिर्फ हरियाली ही नहीं बढ़ा रहे हैं,वरन लोगों के चेहरों पर मुस्कानें भी पैदा कर रहे हैं। कभी-कभार जल संग्रह की जानकारी भी देते रहें क्योंकि आपके पर्यावरण और जल-प्रेमी दिमाग में दाढ़ी बनाते और ब्रश करते समय नल खुला छोड़ने पर बहते पानी ने लोगों को जल बचाव का महत्व बताने के लिए आपको प्रेरित तो जरूर किया होगा।वॉश-बेसिन में बहते पानी ने उछल- उछलकर आपके दिमाग में “जल बचाओ” पर लेख लिखने के लिए कहा ही होगा।हाँ, एक काम और कर सकते हैं। कभी-कभार प्राइवेट मीडिया पर कुछ पैसे खर्च करके, माईक हाथ में लेकर सवालों के जवाब भी दिया करें।इससे आप राजनेता की श्रेणी में भी देखे जा सकते हैं।क्या पता, कोई राजनीतिक पार्टी आपके आदर्शों पर रीझकर आप को अपनी पार्टी का टिकट ही दे दे। वैसे भी, राजनीतिक पार्टियाँ ऐसे ही “बिना कुछ किये खुद को फेमस दिखने वाले बलि के बकरे” को ढूँढती रहती हैं।खासकर,जब उन्हें किसी अन्य पार्टी के साथ सांठगांठ करके अपनी ही पार्टी की जमानत जप्त करानी होती है। और सोचिए, जब आप प्रश्नों के जवाब देंगे तो सोशल मीडिया के बाकी के आप जैसे लोग आपको कितना बड़ा विशेषज्ञ मानने लगेंगे। आप अपने स्तर को बढ़ा नहीं रहे हैं, अपने विशेष ज्ञान से पत्थर फेंककर आसमान में सुराख तक बना रहे हैं।लोग नतमस्तक नहीं होंगे तो और क्या करेंगे..?चुनाव हार भी गए तो क्या? लोगों की नजर में तो आ ही जाएँगे और आप भी तो यही चाहते हैं न? अरे पर्यावरण का क्या, वह तो अपने हिसाब से बिगड़ता, बनता और बदलता रहेगा। इसमें आप क्या कर सकते हैं…उसे कहाँ किसी विशेषज्ञ की जरूरत है?सदियों से बदल रहा है,आगे भी बदलता रहेगा। लेकिन,पर्यावरण बदले न बदले,आपकी छवि आपकी अपनी आँखों में जरूर बदल जायेगी।फिर तो जनाब आप ताल ठोककर राय दे सकते हैं, भले कोई न माने।इसीलिए, आप अपना विशेष ज्ञान बनाए रखना और बखानते रहना। आपके अधकचरे ज्ञान से पेड़ पौधों को हरियाली मिले न मिले उदास माहौल में हँसी और मुस्कुराटें जरूर मिलेंगी। सोचिए, आपका फेसबुक पर पर्यावरण विशेषज्ञ होना अवसाद को कैसे हँसी में बदल रहा है।लोगों के मनोरंजन के काम आने वाली आपकी पर्यावरण संबंधी विशेषता को साक्षात् दण्डवत् प्रणाम।

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