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फैशन का भूत

फैशन का भूत

डॉ मीना कुमारी परिहार

 फैशन यानि किसी भी व्यक्ति के द्वारा आधुनिक ढंग से अपने आप में नए तरह के कपड़े , नए तरह की संस्कृति अपनाना ही होता है। आज के युग में फैशन बहुत ही तेजी से बदल रहा है। हर युवा- युवती इस फैशन के साथ अपने आप को बदल रहे हैं। फैशन का भूत आज के हर वर्ग के लोगों में देखने को मिलता है। पहले के जमाने में बच्चे ,नौजवान,  बूढ़ों, महिलाओं,  लड़कियों आदि का फैशन अलग था ,लेकिन आज के आधुनिक युग में इन सभी का फैशन दिनोंदिन बदल रहा है, एक तरह से हर वर्ग के लोगों में फैशन का भूत सवार हो गया है।

        आज के इस फैशन के जमाने में नौजवान यह नहीं देखते हैं कि वह किस तरह के कपड़े पहनते हैं। बॉलीवुड की एक्टर एक्ट्रेस फैशन के रूप में जैसे नए कपड़े पहनते हैं वैसे ही आजकल की युवा पीढ़ी पहनने लगती है। फैशन के नाम पर कटे -फटे जींस पहनना और कम कपड़े पहनना आजकल का फैशन बन चुका है जिसे लोग बेहद पसंद करने लगे हैं और अपनी संस्कृति को भूल कर लोग सिर्फ दिखावे के लिए इस फैशन के भूत को अपनाते  जा रहे हैं जब बड़े बुजुर्ग अपने बच्चों को इस नए फैशन में देखते हैं तो उन्हें भी अजीब सा महसूस होता है।
  फैशन का भूत सिर्फ शहरों तक ही सीमित नहीं है यह फैशन का भूत गांव तक भी तेजी से फैलता जा रहा है। आजकल के लोगों की सोच बदल रही है वह सोचते हैं कि अगर वह फैशन के साथ अपने आप में बदलाव नहीं लाएंगे तो वह समाज में कम आंके जाएंगे।
इस फैशन के साथ हमारे प्राचीन संस्कृति में भी लगातार बदलाव देखने को मिलता है जिस वजह से हम विदेशी संस्कृति को अपनाकर अपने देश की संस्कृति से  पिछढ़ते जा रहे हैं।
फैशन का जुनून की सीमा तक खींचने -पढ़ाने में आज की फिल्में, फिल्मी पत्रिकाएं, टीवी और बड़े-बड़े व्यापारिक संस्थान में लगे हुए हैं। जिधर देखो फैशन शो हो रहे हैं। युवा वर्ग में इन फैशन शो का बड़ा क्रेज बढ़ा हुआ है।
फैशन मर्यादा में रहे, व्यर्थ उत्तेजना पैदा ना करें, तो वह सराहनीय है। तब वह कलाकारों कवियों और चित्रकारों के कला बोध और समाज के सौंदर्य बोध का एक प्रभावी अंग है।
यह एक प्रकार का मीठा जहर है, जो नई पीढ़ी के लिए बड़ा विनाशकारी सिद्ध हो सकता है। फैशन करो किंतु उसके शिकार मत बनो, उसे भी भूत की तरह सिर पर ना चढ़ाओ सिर पर ना चढ़ाओ। युवा पीढ़ी के लिए युवा पीढ़ी के लिए समय का यह तकाजा है। हमारी युवा पीढ़ी आज फैशन की होड़ में अपने संस्कार, सभ्यता एवं अपनी संस्कृति को भूलती जा रही है।
वास्तव में वह  इस अंधी दौड़ में बिना किसी लक्ष्य, बिना किसी मंजिल के दौड़ रही है। अगर समय रहते वह नहीं जागी तो आगे चलकर होने वाले दुष्परिणामों के लिए वह स्वयं दोषी होगी। हमें विदेशों की तरह बदलना नहीं है, बल्कि हमें प्रयास करना चाहिए कि हमारे देश की अच्छी सोच से विदेशों के लोगों की सोच को बदल सकें तभी हम एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं और तभी हम देश को सबसे आगे ले जा सकते हैं।

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