मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

हिन्दी

 हिन्दी

  माधुरी भट्ट

मातृभाषा हिंदी, राजभाषा हिन्दी फिर भी,
राष्ट्रभाषा बनने के लिए पलकें बिछाए राह में खड़ी!

हाँ !मैं हिन्दी हूँ, सरल,सरस प्रेम से पगी,मधुरस छलकाती,
करुणा बरसाती,मन से  मन के तार मिलाती, फिर क्यों हुई
विरक्ति मुझसे, यह अपमान न  मैं सह पाती।

नहीं है द्वेष मुझे अन्य भाषाओं से ,करती हूँ  मैं सम्मान सभी का,
लेकिन अपने ही देश में नहीं मंजूर मुझे, अपमान स्वयं का।

सीखो भाषाएँ अनगिनत तुम,पर न करो अनदेखी मेरी।
हूँ मैं मातृ भाषा तुम्हारी ,फिर क्यों मुझसे होती भौंहें टेड़ी।

तड़पती है आत्मा मेरी तब ,जब बड़े गर्व से कह देते हो तुम,
क्या करें,बच्चे तो हिंदी बिल्कुल पढ़ना ही नहीं चाहते।

ओह!कितना निष्ठुर है यह वक्तव्य,मातृ भाषा-राजभाषा से इतना अलगाव।
गर्व होता है मुझे जब तुम बोलते हो अंग्रेज़ी धाराप्रवाह,
लेकिन आह निकलती है दिल से तब,
जब कह देते हो तुम हिंदी मेरी नहीं अच्छी।

मात्र चौदह सितम्बर और दस जनवरी न बनाओ मेरे लिए भरम,
है गुज़ारिश इतनी कि हर दिन मेरे लिए बना  दो तुम अहम।

 

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