मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

हमारी सृजनशीलता को एक नया आयाम देने की कोशिश करता है, नए वर्ष का संकल्प !”: सिद्धेश्वर

 पटना डेस्क (मालंच नयी सुबह) 29/12/2021 !”  हर बाधा से तुरंत निवारण, रेत -धूल- कंकड़ -पत्थर, सब  सोना कर दूंगी !, जादूगरनी हूं मैं, जादू टोना कर दूंगी, आसमान के सूरज को भी  बौना कर दूंगी !”  गाजियाबाद की कवयित्री शैलजा सिंह ने जब नए साल के स्वागत में, इस तरह की  ओजस्व पूर्ण कविता का पाठ किया. गूगल मीट एवं फेसबुक के” रचनाकार” पेज पर  ” रचनाकार मंच “के बिहार इकाई द्वारा आयोजित,  ऑनलाइन स्व. दुर्गावती चौधरी स्मृति काव्य संध्या का l

इस गोष्टी के आरंभ में संस्थापक अध्यक्ष श्री सुरेश चौधरी दादा ने  अपनी एक प्रार्थना गीत सुनाते हुए कहा कि-”  बीते हुए वर्ष के बुरे समय को भूल कर एक नई कल्पना को साकार करने की  दिशा में,  ऐसी  साहित्यिक गोष्ठियों का बड़ा योगदान है l “

 संस्था के सचिव कवि -चित्रकार सिद्धेश्वर ने पूरी गोष्ठी का सफल संचालन करते हुए कहा कि -”  नया साल हमारे लिए न‌ए लक्ष्य- न‌ए वादे – नए सपने लेकर आता है, जिसे हम अपनी सकारात्मक सोच से, एक नई दिशा दे सकते हैं !

 ऑनलाइन काव्य गोष्ठी में अच्छी कविताएं नहीं पढ़ी जाती,  ऐसी मनगढ़ंत विचार रखने वालों के लिए यह कवि गोष्ठी एक मिसाल के रूप में सामने आई,  जिसमें शामिल अधिकांश कवियों ने, आम  पाठकों के हृदय को छू लेने वाली कविताओं का पाठ किया,

राज प्रिया रानी ने-” सागर की इक बूंद थी , थपेड़ा बनाया लहरों ने,मर्म हवा का झोंका थी ,तुफां उड़ाया फिजाओं ने,गीली माटी का गोला बनी ,तराशी गई हथेली से ,गुल में इक फूलखिली ,बारूद बनाया बजारों ने l “/ सुरेश वर्मा ने -” दुखी दिनों में सिसक-सिसक कर,मां का रोना याद मुझें,हमें खिलाकर खाली पेट खुद उसका सोना याद मुझें !” / डॉ के की कृष्ण ने -” मुझको चाहत नहीं फूलों की सेज की। तेरी बाहों में सर रख के सो जाएंगे,कोई ताने भी दे दे तो परवाह नहीं ।,बनके मीरा तो  तुम्ही में समा जाएंगे।।”/ लता सिन्हा ज्योतिर्मय ने-”  देवों की भूमि है भारत, सिद्धियों की भूमि भारत,भारत ये भूमि है हमारे श्री राम की,बारूद व गोले ले आतंकी बने फिरते हो,याद रखना कि यह भूमि है परशुराम की!“

 /आराधना प्रसाद ने-”  कैसा है आशिकी का मजा हमसे पूछिए ! पुरनूर जिंदगी का मज़ा हमसे पूछिए !, कहता रहा है प्यासा समंदर बारहां, ताउम्र तिश्नगी का मज़ा हमसे पूछिए !”/ आरती आलोक वर्मा ने-”  हंसकर मैं इस जहां को दिखाऊं तो किस तरह,चेहरे की मैं उदासी छुपाऊं तो किस तरह।,बैठे हैं बच्चे घर में खिलौनों की आस में,,घर अपने खाली हाथ मैं जाऊं तो किस तरह ?/अर्जुन कुमार गुप्ता ने -” कहां बिदुर के साग, कहां अब होली के हैं फाग। चबेना विप्र सुदामा का अब कहां मुझे बतला दो, शबरी के वे बेर मुझे अब ढूंढ के ला दो।।” जैसी उम्दा रचनाओं का-” पाठ किया !

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