मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

सास भी माँ बन सकती है

सास भी माँ बन सकती है

निक्की शर्मा ‘रश्मि’

प्रमिला ..ले बेटा कुछ खा ले फिर गरमा गरम चाय बनाती हूंँ।सास बहू दोनों मिलकर पिएंगे।

नहीं… मन नहीं है माँ।

अरे… मन नहीं तो क्या ले तेरे लिए चटपटी सेव पूरी बनाई हूँ तेरे पसंद का खा ले। मुँह का स्वाद अच्छा हो जाएगा बुखार से मुँह में कड़वाहट आ जाती है।चल खाले बेटा जल्दी। चाय लेकर आती हूँ तब तक सारी की सारी खत्म हो जानी चाहिए। जी मां… वैसे सेवपूरी तो बहुत अच्छी लग रही है देख कर। लेकिन आपको बनानी पड़ी एक तो खाना बनाने से लेकर सारे घर के काम आपको करने पड़ रहे हैं ऊपर से यह भी बनाने बैठ गई रहने देती ना माँ आप।

 अरे तू चुपचाप खा… सुमन जी प्यार की झिड़की देते हुए चली गई प्रमिला सेवपूरी खाते-खाते सोचने लगी सास है पर माँ से ज्यादा प्यार  दिया है। 10 साल शादी के हो गए लेकिन माँ की कमी महसूस नहीं होने दी। सेव पूरी मुझे पसंद है यह जानती हैं इसलिए खास मेरे लिए बनाया।सास माँ नहीं बन सकती ऐसा कहना गलत है। सास माँ बन सकती है और मां से ज्यादा बन सकती है।

 प्रमिला सेवपूरी खत्म कर लेट ही रही थी सुमन जी चाय लेकर आती दिखी। आपने माँ सेवपूरी तो बहुत अच्छी बनाई थी मजा आ गया। अब आप ही बनाना बहुत बढ़िया बनाती हैं।

अच्छा वाह-वाह… चल तुझे पसंद आई।नहीं तो तबीयत बिगड़ने से तेरे मुँह की स्वाद भी बिगड़ गई थी लेकिन हां मैं सेवपूरी नहीं बनाऊंगी तू ही बनाना।एक एक पूरी पर सारे सामान डालते डालते तो दिमाग पक जाती है। अरे मां जी इतनी अच्छी तो बनी थी अब आप ही बनाओगे और बनाना ही पड़ेगा आपके हाथ में तो जादू है। दोनों चाय पीते बातों में मशगूल थे।

 लो… इसीलिए कहते हैं बहू को ज्यादा आराम नहीं देने का नहीं तो बहू सर चढ़कर बोलती है ले अब तू भी आगे से मुझे ही बनाने को पकड़ा देगी …जब मुंबईया स्टाइल में सुमन जी बोली तो प्रमिला खिलखिला कर हंस पड़ी। चल तू अब आराम कर मैं कपड़े उठाकर रात के खाने की तैयारी करती हूँ.. सुमन जी ने उसके प्यार से गाल पर थपथपाते हुए कहा ।तू बिल्कुल बिस्तर से नहीं उठेगी इतना कहते हुए सुमन जी कमरे से बाहर निकल गई।

 प्रमिला बिस्तर पर आंख बंद कर सोचने लगी माँ का व्यवहार कितना अच्छा है बहू को बेटी बना कर रखती हैं। शादी के समय मैं कितना डरी सहमी थी लेकिन ससुराल आते सारा डर जैसे गायब सा हो गया था। माँ ने कितना प्यार से मुझे रखा एक महीने तो किचन में घुसने नहीं दीया कि मेरी बहू अभी काम नहीं करेगी। दस साल गुजर गए दो बच्चे हो गए फिर भी हर काम में मदद करती आई हैं। बच्चे स्कूल जाने लगे तो मैं लाने ले जाने  का काम करने लगी तो मां मुझे घर के कामों में बस खाना बनाने  देती बाकी सारे काम खुद करती। प्यार से कहती “तू बाहर का काम इतना करती है सब्जी लाना, बच्चे छोड़ना, बैंक जाना है यह भी तो काम है बार-बार आने जाने में भी कितनी थकान होती है” हर काम में मां मेरे साथ होती है। कभी याद ही नहीं उनकी जरूरत हो और वह ना हो। बुखार तीन दिनों से थी लेकिन माँ कितना ख्याल रख रहीं। आज बुखार नहीं है लेकिन कमजोरी की वजह से उठने की इच्छा नहीं हो रही है फिर भी बिस्तर से उन्होंने खुद मुझे उठने नहीं दिया। प्रमिला की आंखें भर आई हाँ मेरी माँ भी तो इतना ही ख्याल करती थी। सच कौन कहता है सास माँ नहीं बन सकतती हैं.. हर सास नहीं बन सकती है लेकिन कुछ सास तो जरूर माँ बनती है।

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