सागरिका राय की कविताएँ मर्म-स्पर्शी शब्द-पुष्प गढ़ती हैं / साहित्य सम्मेलन में काव्य-संग्रह ‘अनहद स्वर’ का हुआ लोकार्पण
पटना ।प्रतिनिधि(मालंच नई सह)पटना, ३० मई। गम्भीर लेखन के लिए चर्चित विदुषी साहित्यकार सागरिका राय, भाव-संपदा और काव्य-कल्पनाओं से समृद्ध एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवयित्री हैं। इनका ‘भाव-कोश’ ज्ञान और प्रज्ञा के अजस्र स्रोत से समृद्ध हुआ है। इसीलिए इनकी कोमल-भावनाएँ, इनका आहत हुआ मन, हृदय की गहन-पीड़ा, मार्मिक-स्वर लेकर मर्म-स्पर्शी शब्द-पुष्प गढ़ती है, वह पुष्प जो वेदना की तलहटी को स्पर्श तो करता है, पर उसे कष्ट नहीं देता, अपितु प्रेम से सहलाता है; मरहम लगाता है।
यह बातें, सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में कवयित्री के काव्य-संग्रह ‘अनहद-स्वर’ के लोकार्पण-समारोह की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष दा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि सागरिका जी एक शिक्षिका भी हैं। इसलिए उनकी रचनाएँ उपदेश भी देती प्रतीत होती हैं और ज्ञान-समृद्ध भी बनाती हैं। यह काव्य-कृति, असमय पुत्र-वियोग की पीड़ा से एक माँ के आहत-व्याकुल मन की मार्मिक अभिव्यक्ति है, किंतु यह उन सभी माताओं की गहन-पीड़ा की भी अभिव्यक्ति है, जिन्होंने असमय अपने पुत्र-रत्न को खोया है। कवयित्री अपनी रचनाओं में विलखती हुई, उसे पुचकारती हुई, उसे अपनी बाँहों में भर साथ में सोने-सुलाने की अपूर्ण उत्कंठा व्यक्त करती है, तो कभी उसे मुक्त आत्मा और परमात्मा की तरह पूजती हुईं दिखाई देती है। अस्तु ये कविताएँ प्रेम, ममता, विरह, व्याकुलता के साथ साथ अध्यात्म और दर्शन की ओर भी ले जाती हैं, जिनमें जीवन के सत्य, जीवनानुभूति, दर्शन और समाज भी है। ६६ काव्य-रचनाओं का यह संग्रह भले ही पुत्र-वियोग की पीड़ा पर केंद्रित है किंतु आरंभ की कतिपय रचनाएँ ब्रह्माण्ड-नियंता ईश्वर के प्रति आस्था को बल देती हैं तो अंत की कविताएँ,समाज की चिंताओं को रेखाकिंत करती हुईं, उनके निराकरण की अपेक्षा करती हैं।
समारोह के मुख्यअतिथि और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने ने कहा कि ‘अनहद’ ब्रह्मांडीय ध्वनि है। वह अंतर की न सुनाई देने वाली ध्वनि है। कवयित्री सागरिका राय ने उस अनहद-स्वर को शब्द दिया है। कवयित्री ने अपनी सघन पीड़ा को, जिससे बैराग्य उत्पन्न होता है, अभिव्यक्त किया है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, बच्चा ठाकुर, पूनम आनंद, डा शालिनी पाण्डेय, आराधना प्रसाद, डा नमिता कुमारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, जय प्रकाश पुजारी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कुमार अनुपम, डा पुष्पा जमुआर, पूनम सिन्हा श्रेयसी, डा सुलक्ष्मी कुमारी, डा रमाकांत पाण्डेय, सुजाता मिश्र, अर्चना सिन्हा, डा सीमा रानी, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा बी एन विश्वकर्मा, प्रेमलता सिंह राजपुत, नूतन सिन्हा लता प्रासर, गोरखनाथ मस्ताना ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन डा अर्चना त्रिपाठी ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन डा नागेश्वर यादव ने किया।
इस अवसर पर, कवयित्री आरती आलोक वर्मा, कवि विकास सोलंकी, कृष्ण मोहन मिश्र, रामाशीष राय, चंद्रशेखर आज़ाद, सुधीर मधुकर,नीरव समदर्शी, दुःख दमन सिंह, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल, आनंद त्रिवेदी, विनय चंद्र, कन्हैया कुमार मिश्र, कुमार गौरव, राम किशोर सिंह विरागी, श्याम नन्दन सिन्हा, डा विजय कुमार दिवाकर, जनार्दन पाटिल आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे ।