—–अश्वेत
जिससे खून का रिश्ता हो वहीं सगा हो जरूरी है क्या?
जिन हाथों में तुमने कभी राखी बांधी थी,
वो एक दिन तुम्हें तबाह ना करें ,
जरूरी हो क्या? उन हाथों को भी देखा
है मैंने कुछ गुनाह करते,
जिन हाथों में राखी बंधी थी।
किसी दूसरे की बहनों को भी ,
वो किसी की बहन तो छोड़ो ,
एक स्त्री समझे ,अपनी हवस नहीं, जरूरी है क्या?
कसमें खाई होंगी भले उसने रक्षक बनने की,
मगर हर किसी के लिए वह रक्षक बने,
भक्षक नहीं ,जरूरी है क्या ?
अपनी गलतियों को क्या खूब छुपाते हो तुम ,
जब बात बहन-बेटी पे आती है,
तो समाज के नाम पर क्यूं डराते हो तुम?
तुम्हारी गलतियों से इज्जत नहीं जाती,
ना घर की ना समाज की।
मेरी बस नज़रे उठ जाने भर से ही,
तुम्हारी पगड़ी उछल जाती है ?
चलो, एक शुरुआत कर लो,
इस राखी खुद से भी कुछ सवाल कर लो..