—सरोज गिरि
राम को काल्पनिक कहने वालों
राम का अस्तित्व क्या तुम्हें याद नहीं….
भूल गये जलन में तुम तो ज्वाला को
क्या दशरथ का पुत्रेष्ठी यज्ञ तुम्हें याद नहीं ….
.ये राम जन्म भूमि है अति पावन
कल कल बहती सरयू क्या तुम्हें याद नहीं …..
यहाँ खेले बड़े हुए राम लखन
क्या भरत शत्रुघ्न सलोने तुम्हें याद नहीं …..
विश्वामित्र के साथ दुष्टों का करने संहार,
चले दो सुकुमार क्या तुम्हें याद नहीं …..
धनुष तोड़ जनक दूलारी ब्याह के लाये ,
परशुराम का क्रोध क्या तुम्हें याद नहीं …..
पिता के वचनों की ख़ातिर भटके वन वन,
लिया तपस्वी भेष क्या तुम्हें याद नहीं ….
.ऋषि मुनियों की कुटिया पावन करते,
खाये भिलनी के झूँठे बेर क्या तुम्हें याद नहीं …..
सुग्रीव से हुई मित्रता प्रगटे जब हनुमत,
क्या बालि का संहार तुम्हें याद नहीं…..
विशाल समुद्र लांघा हनुमत ने सोने की लंका हुई
राख क्या तुम्हें याद नहीं …..
साक्षात् जगदंमबा को हर लाया रावण,
मंदोदरी का उसे बताना क्या तुम्हें याद नहीं …..
अत्याचारी दुष्ट रावण को मार विभीषण को दिया राज़,
क्या तुम्हें याद नहीं …..
राम लखन सिया सहित आये प्रभु शत्रुघ्न का प्रण कठिन व्रत क्या तुम्हें याद नहीं….
.दीप जले अयोध्या नगरी मेंख़ुशियों के,
स्वागत में दीपावली मनाना क्या तुम्हें याद नहीं ….
.गर्व करो इस पावन भूमि पर पुरखों का बलिदान सदियों का संघर्ष क्या तुम्हें याद नहीं ….
एक आतंकी आया था विक्षिप्त मंसूबे लेकर इस धरती पर क्या तुम्हें याद नहीं …..
मन्दिर तोड़ मस्जिद बनवाना वहशी विधर्मी का क्या तुम्हें याद नहीं …..
ये राम जन्म भूमि है अयोध्या है प्यारी,
यहाँ कण कण में बसते राम क्या तुम्हें याद नहीं …..