मेरा गाँव
कुमारी ईला कृति
कहाँ गई वो आम की डाली,
कहाँ गए वो झूले |
कहाँ गए वो ताल- तलैया,
और गाँव के मेले |
चुनमुन,राधा,श्याम और भोला
,अब लुका- छुपी न खेले |
कहाँ गया वो सोनपापडी वाला,
गटृा ,निबू,चाट के ठेले |
न चूल्हा -चाकी दिखे कहीं भी,
न भाजी न मोटी रोटी |
बाजरे की बेरहिन भी भूले,
और गोईंठा की लिटृी |
होली की हुल्लडबाजी न रही,
न माटी के दीप |
नए परिवेश के चकाचौंध में,
हम भूले अपनी रीत |
सुना है अब गाँव ,गाँव न रहा,
सब बदल गया यहाँ पर |
मेरा मन बस अब ये पूछे,
मेरा गाँव है अब कहाँ पर |