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साहित्य

बालमन की कविताएं

 डॉ० सुजीत वर्मा पटना

‘दो दूनी चार’ बाल कविता संग्रह डॉ० पूनम सिन्हा श्रेयसी की अद्यतन कविता संग्रह,जो शिवना प्रकाशन,म० प्र० से प्रकाशित है।इस संग्रह में कुल पच्चीस कविताएं हैं जो बालमन में जानने एवं सीखने की नैसर्गिक स्वभाव को प्रतिबिंबित करती  हैं।

 विश्व के सभी भाषाओं में बाल साहित्य की रचना प्राचीन काल से होती रही है।बच्चों में परियों‌ की कथाएं ,चंदामामा,नदियाँ,फूल,हवा,पंछी,पशु के प्रति आकर्षण और उनके बारे में जानने की प्रवृत्ति बहुत ही तीव्र होती है।बीसवीं शताब्दी के महान मनोवैज्ञानिक सेगमंड फ्रायड ,एडलर जुंग से लेकर अनेक शिक्षाशास्त्रियों ने मनुष्य के सामान्य असामान्य व्यवहार को केन्द्र में रखकर इस बात पर बल दिया कि सीखना कोई बाहरी क्रिया नहीं है बल्कि उस ज्ञान का बोध है जो

व्यक्ति में निहित होती है।अंग्रेजी में मार्क ट्वेन या रस्किन बॉड हो,सभी ने बालमन की कोमल संरचना के अनुरूप साहित्य सृजन किया है।भारतीय साहित्य में पंचतंत्र की कथाएं इस संदर्भ में बेहद प्रासंगिक है।

 डॉ० पूनम सिन्हा श्रेयसी की यह कविता संग्रह बहुत ही समीचीन है।उत्सुकता बालमन का एक सशक्त एवं समर्थ पहलू है जो सीखने की नैसर्गिक दिशा का निर्माण करता है। उत्सुकता या जिज्ञासा बच्चों में हैरानी उत्पन्न करती है।’तितली’ शीर्षक कविता इसी भाव को सार्थक रूप से अभिव्यक्त करती है-

“तितली रानी!तितली रानी!

रंग बिरंगी बड़ी सयानी

सुंदर कोमल पर हैं तेरे,

देख तुम्हें होती हैरानी।“

मुहावरें या कहावतें न केवल भाषा के स्तर पर बल्कि भाव के स्तर पर चीजों को बहुत सहज रूप से प्रस्तुत करने का माध्यम है।पशु-पक्षियों , पेड़-पौधों को लेकर अपने आसपास के परिवेश

की विसंगतियों को उजागर करना रचनाकार का एक ईमानदार प्रयास होता है।’बिल्ली’ ‘शीषर्क कविता में कवयित्री पूनम सिन्हा जी ने राजनीति पर व्यंग्य करके बच्चों में भ्रष्ट व्यवस्था की समझ को विकसित करने का प्रयास किया है-

“नौ-सौ चूहे हजम कर गाँव से लौटी बिल्ली चली सैर करने को,आज राजधानी

वस्तुतः पूनम सिन्हा जी की बाल कविताएं  लय ,छन्द से न केवल मधुर ध्वनि का निर्माण करती हैं, बल्कि एक मोहक दृश्य का भी निर्माण करती हैं।निःसंदेह बच्चों के कोमल मनोभावों  दृश्य -ध्वनि  (आडियो -विजुअल) पद्धति द्वारा ज्यादा प्रभावशाली होती हैं जो बच्चों में नैतिकता ,उतरदायित्व ,सहानुभूति ,परानुभूति जैसे अमूल्य भाव एवं दृष्टिसंपन्नता का निर्माण करती है।और इस दिशा में कविताओं या लयबद्ध कविताओं की भूमिका महती होती है।

 अन्ततः ये कविताएं अपने कथ्य,शिल्प ,भाव संवेदना एवं संप्रेषण में सफल होती है।कवयित्री डॉ० पूनम सिन्हा श्रेयसी जी को इस महत्त्वपूर्ण कृति के लिए अशेष बधाई एवं शुभकामनाएं।

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