मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

बनारस की एक शाम और केरला कैफे की रौनक

प्रियांशु त्रिपाठी

थका हारा शरीर आराम ढूँढ रहा था और हमने इसे इतना आराम दिया कि मैं और तोशवंत सुबह 7:30 में उठते हैं । रात कुछ बहुत अच्छी नहीं गुजरी आशीष का पेट आशीष का साथ नहीं दे रहा था और वो कई बार बाथरूम के गेट पर पाये गये। उनकी फिक्र भी थी और थकान भी यू कहें तो करवटों में नींद झूलती रही । सुबह मैं और तोशवंत तैयार होकर आशीष के लिए दवा और फल लेने निकलते है और जाने से पहले हरि ओम और किशन को जगाकर जाते है कि सुबह हो चुकी है जगना बेहतर है । दोनों का आलस देखकर अंदाज़ा लग रहा था ये दोनों बाहर जाने से रहे । मैं तोशवंत निकलते है और बारिश अभी भी हल्की हो ही रही थी, पानी घुटने से नीचे आ गया था पर बहुत कम नहीं था । रिक्शे वाले भइया 10 रूपये में हम दोनों को पानी पार करा देते हैं और फिर क्या चाय की चुसकी, मगर आज दुकान बदलकर बोले तो इलायची स्पेशल । तोशवंत यहाँ भी बिस्किट डिमांड करते हैं और हम भी लपक ही लेते है, बिस्किट दिल के आकार का था और हम दोनों के मन में आशीष का चेहरा आया, यहाँ एक 5% कानून समझने वाले ये दावा कर सकता है आप सब गलत सोच रहे हैं । आशीष का चेहरा सामने आने का कारण दूसरा है, बाकी वहाँ से हम नाश्ता उठाने पहुँच जाते हैं । आज राश्ते में इडली, बड़ा था मज़ेदार लगा । फिर नाश्ते के बाद फल के दुकान पर तोशवंत पुछते है केले कैसे भइया?, भाई लूटने के फिराक में 60 का 12, तोशवंत- 40 का है ना जी, सब जगह। भइया- इ उ केला ना हैं खाने पर मुँह ना बांधेगा । दो बड़ों के बीच में बोलना नहीं चाहिए पर मैंने बोल दिया, भइया मुँह नहीं किसी का पेट बाँधना है, आप 6 दे दीजिए, और सेब कैसे हैं? भइया- 240, आधा किलों डाल दे?, मैं तोशवंत की ओर और तोशवंत मेरी तरफ देखते हैं और दोनों साथ में बोलते हैं नहीं भइया दो चढ़ाइये बस । खैर झोला लिए सवारी वापस फिर तोशवंत जी इलायची स्पेशल के लिए रूकते है और साथ बिस्किट भी मांगते है । मगर यहाँ आपका भाई शख्त लौंडा, नकार दिया (चाय नहीं बिस्किट) । मुझे आज लगा कि सिर्फ़ चाय का नशा मुझे ही नहीं है इन्हें भी है । सवारी रूम पहुंचती है 20 रूपये रिक्शा वाले चच्चा को देकर । रूम स्टोर रूम होने को था तभी सब नाश्ता चाय देखकर तत्पर । आशीष वो आर एस पीते है और मना करने पर भी इडली ठूस लेते है, फिर क्या कुछ वक्त बाद आशीष बाथरूम गेट पर । किशन हरि ओम अच्छे से खाकर वाइवा की तैयारी की कोशिश, तोशवंत रील देखने में व्यस्त और आशीष पेट से पस्त । करीब 2 घंटें बाद फिर चाय पीने की ललक, आशीष को छोड़कर कर टुकड़ी रवाना । बोले तो फिर वहीं इलायची स्पेशल, तोशवंत का सेम डिमांड, और इस बार चाय दो दो कप उडेल लिया जाता है । फिर मन करता है चलो केसर जलेबी खाने, तोशवंत- हम कचौड़ी भी खइबों, हरिओम किशन भी बोले हम भी हम भी, पटलन फिर कर आई मंहगी बात चीत ।

रूम पहुंचने पर गेट नहीं खुलता है, दो मिनट बात एक शख़्स आता है और कहता है तुम सब को चैन नहीं है डंग से …… भी नहीं देते हो । हम सब भी उसे पस्त व्यक्ति पर गुस्सा कम करते है और रूम में दाख़िल हो जाते हैं । आशीष के फोन पर एक कॉल आता है “पटना ऑटी”। मैं फोन उठाकर बोलता हूँ हाँ हेलो, ऑटी आशीष नहाने गया है । उधर से जो महिला बोलती है उसका आवाज़ पहले से जाना पहचाना लगा । पता चला फोन साक्षी का था । आशीष अजूबा है नंबर सेव कमाल किया था । बाकी फिर एक दोस्त ने एक दोस्त को कितना सुनाया ये नहीं पता पर भरोसा ये सब का बात हुआ होगा । मेरे मोबाइल पर भी 2:30 एक दोस्त का फोन आता है, और तुरंत हाथ में चाय का कप, फिर क्या चाय पर देर तक चर्चा हुई । वक्त बीत गया काम ख़त्म हुआ और शाम होते ही सब स्टड बनकर निकल पड़े । आज कुछ कारनामे बाकी रहे हम पाँच एक साथ लंका गेट पहुंचते है, और तीन की पलटन अस्सी को रवाना होती है, तोशवंत और मैं किताब दुकान की ओर । किताब खरीद कर चाय पीते है दोनों और फिर हम भी अस्सी । वहां जाकर देखते हैं कि एक पीपल के पेड़ से सटे एक बेंच पर तीनों बैठे रहते हैं और फोटोज का दौर चल रहा है । फिर उनका मन करता है मौत को टक से छूकर वापस आने का । मौसम फिर बारिश को बुलावा दे रहा था । और कल की तरह भींगने का मन किसी का नहीं था, तुरंत ऑटो पर बैठकर हम पाँच केरला कैफे में दाख़िल होते हैं। भीड़ अच्छी थी मगर बैठने की व्यवस्था और बेहतर । आडर देने की बात हुई तो आशीष सबसे पहले “मैं तो छोला बटूरा भाई”। हम चारों उनकी ओर- नहीं, आशीष- भाई ना बस थोड़ा सा । हम फिर गुस्साये आँखों से मगर मालिक नहीं मानते है । मैंने और तोशवंत ने भी छोला बटूरा मँगाया, किशन और हरि ओम “रवा ऑनियन डोसा”। मुझे बटूरे की लबाई चौड़ाई को देख लगा आशीष गलत कर रहे हैं । पर उनका मन भी रखना था, मैंने कहा हरिओम और किशन जबतक डोसा नहीं आता है आप आशीष में से यही टेस्ट करो । वो लोग उम्मीद से ज़्यादा ही टेस्ट करते हैं और मेरा तरक़ीब काम आ जाता है । कैफे में हर उम्र, हर आर्थिक वर्ग के लोग थे । मगर एक लड़की जिसके आँखों पर चश्मा लगा था और वो अपने लंबे बालों से परेशान हो कर इरीटेट मोड में थी उसकी नौटंकी अच्छी लगी । सिर्फ़ मैंने ही उसकी चर्चा नहीं की सब के पास कुछ ना कुछ बातें थी कहने को। कैफे के खाने में स्वाद बहुत ही बेहतरीन था।
बाकी हम जैसे कैफे के स्वाद में खो चूके थे आप भी पढ़कर बनारस की गलियों में खो जाइये और इसे लोगों तक पहुंचा कर उन्हें भी खोने और बनारस का होने का मौका दे ।

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