मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

प्रिंट मीडिया का विकल्प, मोबाइल साहित्य कभी नहीं हो सकता !” : सिद्धेश्वर

पटनाडेस्क (मालंच नयी सुबह) :10/01/2021! ” साहित्य का सृजन भले पन्ने पर होता हो, किंतु  पाठकों को पढ़ने के लिए प्रिंट मीडिया ही चाहिए ! यानी प्रिंट मीडिया का विकल्प मोबाइल साहित्य कभी  नहीं हो सकता l “

भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में फेसबुक के “अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” के पेज पर ऑनलाइन आयोजित ” हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन ” का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किये l

” मोबाइल पर कहानी की पठनीयता ” विषय का प्रवर्तन करते हुए उन्होंने कहा कि -” इसमें दो मत नहीं है कि मोबाइल ही वह माध्यम है जिसके कारण युवा लेखन को भी एक पहचान मिली है और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचने का उन्हें मौका मिला है l हालांकि कहानी जैसी लंबी रचना को मोबाइल पर पढ़ने वाले पाठकों की संख्या दिनोंदिन घटती जा रही है l ई – पत्रिका और ई – पुस्तकों में भी अब सिर्फ छोटी-छोटी कविताएं और लघुकथाएं ही अधिक पढ़ी जा रही हैं l मोबाइल पर ई – अखबारों के सिर्फ हेडिंग ही पढ़े जा रहे हैं l ऐसी विकट स्थिति में मोबाइल पर कहानियां पढ़ने का प्रचलन धीरे-धीरे कम होता जा रहा है l “..
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ कथाकार जयंत ने कहा कि -” आज के समय में मोबाइल पर कहानी की पठनीयता कई मायने में सफल है। निश्चित तौर पर आज जबकि सोशल डिस्टेंसिंग का समय है, मोबाइल ने साहित्य के लिए एक महत्वपूर्ण साधन का काम किया है।

परंतु हमें यह ध्यान रखना होगा कि मोबाइल साहित्य के लिए एकमात्र साधन नहीं हो सकता। हमें पहले समय की प्रतीक्षा करनी होगी और फिर से कागज कलम की ओर लौटना होगा। हमें यह भी ध्यान रखने की आवश्यकता है कि इंटरनेट पर पर जारी बहुत सी कहानियां ऐसी हैं जो हम से दूर ले जा रही है। ऐसी कहानियों से बचने की भी आवश्यकता है। मोबाइल पर पढ़ी गई आज की लाइव प्रस्तुत कहानियों में अपूर्व जी की कहानी आदर्श पर आधारित है, तो यह कहानी यथार्थ से परे चली जाती है, यूट्यूपियन ऑडियोलॉजी की पोषक है। ” हत्या अरमानों की ” मनोरमा गौतम की एक लंबी कहानी है और इस कहानी का नायक जो एक बार आदर्श होने का दंभ भरता है, जब उसके यहां किन्नर बच्चे का जन्म होता है तो वह भीरु बनकर भाग खड़ा होता है। मीना परिहार जी की कहानी “दहेज” छोटी और सुंदर है। रशीद गौरी जी ने अपनी कहानी “मसर्रत “को बड़ी खूबसूरती से प्रस्तुत किया। हनी एक सार्थक संदेश देती है कि किस प्रकार लोग बहू को प्रताड़ित करते हैं। इस कहानी में बहू ने ससुर के प्राणों की रक्षा की है। रीता सिंह जी की कहानी “अहिल्या” एक बिल्कुल हटकर अलग कहानी है। इस कहानी में अहिल्या के पत्थर होने और फिर से नारी रूप में बदलने का वैज्ञानिक विश्लेषण हुआ है। आज ऐसी कहानियों की नितांत आवश्यकता है। कुल मिलाकर आज की सफल गोष्ठी के लिए संयोजक सिद्धेश्वर जी बधाई के पात्र हैं !”

मुख्य अतिथि मनोरमा गौतम ( नई दिल्ली) ने सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए कहा कि -” मोबाइल से कहानी को जोड़ने में कोरोना काल की अहम भूमिका रही है l समय के अभाव में भी हम ट्रेन, बस,ट्राम में चलते हुए भी हम मोबाइल के माध्यम से कहानी पढ़ लेते हैं l
विषय संदर्भित विचारों पर प्रकट करते हुए डॉ. बी.एल.प्रवीण ( डुमरावं ) ने कहा कि -” किसी भी रचना के लिए मोबाइल में पढ़ना अपेक्षाकृत तौर पर मुश्किल भरा तथा कष्ट साध्य होता हैl संतुष्टि तभी मिलती है जब उसे समय लेकर पढ़ा जाए l तकनीकी कारणों से यह मोबाइल के साथ संभव नहीं हो पाता, इसका अनुभव सभी को है l इससे अतिरिक्त ऊर्जा की खपत के साथ-साथ आंखों को नुकसान पहुंचाने वाली उत्कीर्ण किरणों का खतरा तो बना ही रहता है l मध्य में किसी कॉल के टपक पड़ने पर कैसा मजा आता है, यह सभी को पता है !

नीतू सुदिति नित्या ( भोजपुर ) ने कहा कि =” वैश्विक महामारी कोरोना ने इतना आतंक मचाया कि गांव शहर के सभी लोग घर में बैठ गएl कहीं आना जाना या किसी से मिलना जुलना नहीं l पत्रिका पुस्तकें छपनी बंद हो गई l ऐसे समय में नई तकनीक से जुड़ा स्मार्टफोन इन सभी का सहारा बना और साहित्य से पाठकों को जोड़ें रखा l ढेर सारे लोग मोबाइल के माध्यम से कहानी से जुड़े l कहानियों की सबसे बड़ी वेबसाइट प्रतिलिपि पर लाखों रचनाएं, लाखों पाठकों द्वारा पढ़ी गई l मेरे अपने वेबसाइट ” साहित्यप्रीत ” के माध्यम से भी हजारों पाठकों ने कहानियों को पढ़ा है, इसका मैं व्यवहारिक उदाहरण दे रही हूं और आंकड़े गूगल ने जोड़ रखा है l आने वाला समय साहित्य के लिए मोबाइल वरदान साबित होगा, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है l “

राज प्रिया रानी ने कहा कि, -” ट्रेन में सफर के दौरान शौकिया तौर पर कहानी पढ़ लेते हैं !किंतु मोबाइल पर कहानी पढ़ने का कोई औचित्य मेरी समझ में नहीं आता l वीडियो के माध्यम से मोबाइल पर कहानी अवश्य अत्यंत प्रभावशाली होता है, किन्तु कहानी पढ़ने के लिए मोबाइल बहुत कष्टप्रद होता है l इसलिए मोबाइल पर कहानी सुनने के अपेक्षा देखना ज्यादा प्रासंगिक होता है l “

कौशल किशोर ने कहा कि-” मोबाइल की अपेक्षा पुस्तक के माध्यम से कहानियां पढ़ना ज्यादा सुविधाजनक और प्रासंगिक है ! आर्थिक अभाव में जो पुस्तक नहीं खरीद सकते, उनके लिए मोबाइल पर कहानी पढ़ना मजबूरी हो सकती है !”/ अनीता मिश्रा सिद्धि ने कहा कि -” आज के व्यस्त समय में पुस्तकें पढ़ने के लिए किसी के पास समय नहीं है l पर डिजिटल क्रांति ने सब कुछ सुलभ करा दिया है l हम किसी भी चर्चित रचनाकार की कहानियां डाउनलोड कर पढ़ सकते हैं l नवोदित की श्रेष्ठ कहानियां, जिसे कोई पत्र -पत्रिका या प्रकाशक प्रकाशित नहीं करता था, उसकी कहानियां भी मोबाइल के माध्यम से सुलभ है और पढ़ी जा सकती है l “

इस ” हेलो फेसबुक कथा सम्मेलन ” को
देश भर के तीन सौ से अधिक फेसबुक दर्शकों ने देखा और सुना l इस कथा सम्मेलन में संतोष मालवीय,ऋचा वर्मा, डॉ सुनील कुमार उपाध्याय, चैतन्य उषाकिरण चंदन, गोरख प्रसाद मस्ताना, रामदेव पासवान, पुष्पेंद्र कुमार आदि की भी अहम भूमिका रही l

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *