पटना डेस्क (मालंच नई सुबह ) पटना :27/09/2021! ” राजनीति जब डगमगाती है, तब साहित्य उसे संभाल लेती है ! साहित्य की इस प्रासंगिकता को राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर बखूबी समझते थे ! शायद, यही कारण था कि उन्होंने सौंदर्यशास्त्र की अनुपम भेंट ” उर्वशी ” का सृजन करते हुए भी, राष्ट्रीय भावना से ओतप्रोत ओजस्वी कविताओं का सृजन खूब जमकर किया ! उन्होंने अपनी काव्य पंक्तियों में कहा कि- “जला अस्थियां बारी-बारी, चिटकाई जिनमें चिंगारी,जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर, लिए बिना गर्दन का मोल, कलम, आज उनकी जय बोल। “
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद के तत्वाधान में, फेसबुक के ” अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” के पेज परआयोजित ” हेलो फेसबुक कवि सम्मेलन ” का संचालन करते हुए संयोजक सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया
” ऑनलाइन आयोजित यह कवि सम्मेलन ” समकालीन कविता में दिनकर की प्रासंगिकता” विषय पर केंद्रित था ! इस विषय को विस्तार देते हुए सिद्धेश्वर ने कहा कि -” युग धर्म के हूकार, और भूचाल – बवंडर के ख्वाबों में भरी हुई तरुणाई का नाम है रामधारी सिंह दिनकर ! एक शब्द में कहूं तो ” समकालीन कविताएं , दिनकर के युगधर्म, हुंकार और भूचाल से प्रभावित है ! “
इस कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि आराधना प्रसाद और अध्यक्षता निभा रहे “निर्बन्धाया” के संपादक संतोष मालवीय(राजगढ़ ) ने दिनकर के व्यक्तित्व, और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि- ” पुरोधा की भूमिका का निर्वाह किया है, राष्ट्रकवि दिनकर ने !
मुख्य वक्ता अपूर्व कुमार ( वैशाली )ने कहा कि-” दिनकर की रचनाएं जितना अनपढ़, मजदूर- किसानों को भाती थी,उतना ही किसी कठिन विषय के शोध के छात्रों को भी। रामधारी सिंह दिनकर वैसे रत्न कवियों में से हैं, जिन्होंने न केवल समकालीन कविता का प्रादुर्भाव काल देखा, बल्कि समकालीन कविता के उज्जवल भविष्य का भी सहज अंदाजा लगा लिया।“
विशिष्ट अतिथि डॉ कुंवर नारायण. सिंह मार्तण्ड (कोलकाता ) ने दिनकर की कई ओजस्वी कविताओं का पाठ करने के बाद, अपनी एक गीत प्रस्तुत किया -” तुम डरे नहीं, तुम रुके नहीं, थे काव्य जगत के दिनकर तुम !” दूसरी तरफ, कौशल किशोर ने कहा कि -” दिनकर ओज , हुंकार और राष्ट्रीयता के कवि माने जाते हैं l बत्ती नहीं जो जलाता है, रोशनी नहीं वो पाता है !”. इन संदर्भों को दिनकर बखूबी बखान करते थे !“
सिद्धेश्वर के द्वारा प्रस्तुत,” सुनो कविता ” के अंतर्गत, नागार्जुन की कविता -” जी हां लिख रहा हूं, मगर आप उसे पढ़ नहीं पाओगे !,देख नहीं सकोगे, मैं भी कहां देख पाता हूं ?”/ भगवती प्रसाद द्विवेदी की कविता ” बेटियां, इतिहास रचते रहें, कुछ ऐसा करें , खलबली चहुंओर मचती रहे, कुछ ऐसा करें !”/अशोक जैन (गुरुग्राम) के दोहे -” आंखों से बहने लगी जब अश्कों की धार, मन्न ने दिल से तब कहा, क्यों होता बेजार ?, क्यों होता बेजार, संभलना तुझको होगा, मेरा कहना मान, बदलना तुझको होगा !” अनिरुद्ध सिन्हा (मुंगेर )की ग़ज़ल “हमारे हौंसले का कद, तुम्हारे ध्वज से ऊंचा है, तुम्हारा मुल्क एक छोटा सा रोशनदान लगता है !” की सशक्त वीडिओ प्रस्तुति हुई! “