मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

नेकी

इंदु उपाध्याय

 मालकिन हर व्यक्ति ढाई हजार से कम नहीं लूंगा मैं, तभी चलूंगा ,मंजूर हो तो कहिए ।” ऑटो वाले ने कठोर शब्दों में कहा।क्या ..!इतना ….?

” कुछ कम कीजिए ऐसे कैसे ,कुछ तो सोचिए ये तरीका है क्या..? ” तनु ने आश्चर्य मिश्रित दुख से कहा ,उसकी आँखें फटी रह गईं।

किंतु वो अपनी बात पर अड़ा रहा,वो सोचने लगी इस आदमी को पूरे साल कोरोना काल में हमारे घर से हर तरह की मदद मिली,अपना दोनो टेम्पु मेरे ही घर में लगाता है।पत्नी बीमार हुई , बच्चे बीमार पड़े सबके लिए हम एक पैर पर खड़े रहे और ये इस तरह दो टूक बात कर रहा है।क्या यही इंसानियत है , उस समय तो हाथ जोड़ के गिड़गिड़ाता खड़ा था और आज अकड़ रहा है। क्या जमाना आ गया है मन उखड़ सा गया । सच ही कहा है किसी ने नेकी कर दरिया में डाल ।

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