ऋचा वर्मा
सरकारी स्कूलों के बच्चे प्रायः वैसे नहीं रहते जैसे अनीता रहती… लकदक साफ – सुथरे कपड़े, सलीके से बंधे बाल, कक्षा में अच्छा प्रदर्शन, सत्र के शुरूआत से ही मधुरिमा मैडम जैसी कर्तव्यनिष्ठ शिक्षिका उससे प्रभावित थीं। लेकिन थोड़े ही दिनों में अनीता की कुछ कमियां जैसे बार- बार समझाने के बावजूद अनीता का प्रायः कक्षा में देर से आना, उसका सहमा – सहमा रहना मधुरिमा मैडम के दिमाग में उलझनें पैदा करने लगा था, और एक दिन इन्हीं उलझनों को सुलझाने के लिए वह अनीता के घर जा पहुंची, दरवाजा अनीता के छोटे भाई ने खोला।”मैं अनीता की टीचर हूँ, तुम्हारे माता पिता से मिलने आईं हूँ”,मधुरिमा मैडम ने अपने आने का कारण बताया।
“पिताजी तो नहीं है”, उसने दीवार पर लटके एक फोटो की ओर देखते हुए कहा, “… और मां काम पर गई है”, उसने वाक्य पूरा किया।
“अच्छा तो मां काम करती है, इसका मतलब है सुबह – सुबह अनीता घर का काम निपटा कर ही स्कूल जाती है।“
” नहीं मैडम माँ दीदी को केवल पढ़ाई पर ध्यान देने को कहती है।””तो फिर उसे समय पर स्कूल क्यों नहीं भेजती है, तुम्हारीमाँ, “
” भेजती है न मैडम, मां एकदम सुबह सामने अपार्टमेंट के फ्लैट में बर्तन मांजने वगैरह का काम करती है वहीं से रात का बचा – खुचा खाना लाती है उसी में से दीदी को खिलाकर मां उसे स्कूल तक छोड़ने जाती है, मैं लंच ब्रेक में आकर खा लेता हूँ, लड़का हूँ न “मधुरिमा मैडम अवाक् थीं, परंतु निश्चिंत भी,वह समझ गईं थीं कि गरीबी कभी भी प्रतिभा के आड़े नहीं आ सकती।