मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

दूर देश

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पूजा गुप्ता,मिर्जापुर उत्तर प्रदेश

——–चाय की एक प्याली लेकर रुक्मणी देवी खोई थी कुछ यादों में…तभी उनका सात वर्षीय पोता आकर उनसे लिपट जाता है और कहता है :-“दादी जी पापा कब आयेंगे कितने दिन हो गए मुझे पापा के साथ खेलना है!”रुक्मणी देवी पोता को गोद में लेकर कहती हैं :-“मेरा लाडला बच्चा तेरे पापा जल्दी आयेंगे बस तुम पढ़ो लिखो एक आदर्श इंसान बनो।”फिर पोता गोदी से उतर कर खेल में लग जाता है।

रुक्मणी देवी अपनी आँखों के आंसू पोंछे और फिर काम में लग जाती है।याद है वो दिन जब बहू की मृत्यु हो गई थी प्रसव पीड़ा के समय और बेटा भी उदास रहने लगा था वो पोता छोड़ गई और बेटा विदेश चला गया अपने लाल को छोड़ कर तब से पूरी परवरिश का भार रुक्मणी देवी के हाथ में था।पोता आता है और कहता है :-“दादी पापा से कहना कि मैं उन्हें बहुत याद करता हूँ उन्हें देखना चाहते चाहता हूँ“

रुक्मणी देवी फिर अपने कमरे में जाकर अपने पोता के मार्मिक शब्दों को सुन रोने लगती है। “बेटा को गए कई साल हो गये एक खत भी नहीं आया कि कैसा है? कहाँ है?” अपने बेटा की फोटो देख वो जोर जोर से कहती है।अचानक पोता आता है अपनी दादी को रो देख आँसू पोंछ देता है और वो कुछ कुछ समझ जाता है कि पापा अब शायद नहीं आयेंगे इसलिए वो अपनी दादी के गले से लिपट जाता है और कहता है :-” दादी मैं अब जिद नहीं करूंगा पापा के आने की आप बस रोना बंद कीजिए।“

रुक्मणी देवी भी भाव-विभोर होकर पोता के संग अठखेलियाँ करने लगती है और फिर रोज की तरह एक खत अकेले में अपने बेटा के नाम लिखती हैं जो उन्होंने कभी पोस्ट नहीं की।

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