—इन्दु उपाध्याय
तुम स्वतंत्र हो बिटिया,सबका जीवन धन यंत्र हो।
तुम सौभाग्य के कपाल पर,लिखा का सुख मंत्र हो।
सबके लिये शीतल बयार हो,ज़िन्दगी की मधुर ताल हो।
मन की बगिया के मधु से सिंचित-सी,प्यारी कविता हो।
जीवन के धूप की मोहक छाया हो,मोहभरी माया हो।
हर पल जो साथ रहे,प्रेमसिक्त दो कुल की सरमाया हो।
माँ के आँचल का फूल हो,पिता का मान-सम्मान हो।
पति की ,इज्जत हो,आन, बान शान और संगिनी हो।
हर युग में पूजित हो,सदैव विभूषित माँ का नवो रूप हो।
जीवन को अंकुर करती,मां बनकर उर्जित करती सृष्टि हो।
घर की समाज की मर्यादा हो,प्रेमपूर्ण से किया वादा हो।
स्नेह ,वात्सल्य, प्रेम के सान्निध्य में,खुशी का इरादा हो।
मन से मन का अनुबंध तुम हो,सदैव प्रेम का प्रबंध तुम हो।जीवन को परिभाषि करती तुम हर युग का निबंध हो।