मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

जाकों राखें साईयां……

प्रभात कुमार धवन

पटना-

 दस वर्ष पहले की बात है, गर्मी का दिन था। मैं पत्नी और इकलौते बेटे के साथ कमरे में सो रहा था। बीच रात में अचानक जोर की आवाज हुई और नींद खुल गयी। देखा पंखा का पीन निकल जाने से वह पलंग के बगल में गिर पडा़ है। उषा का पुराने जवाने का वजनी पंखा होता है। आवाज से घबराकर पत्नी – बेटा भी उठ गया था। खैर ईश्वर की आपार कृपा थी कोई हादसा न हुआ। मैनैं ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त किया।

मैं खानदानी मकान में रहता हूँ, इसे मेरे पिता जी के परदादा जी ने मात्र 98 रुपये में खरीदा था, अत: काफी जर्जर है। घर गरीबी से उबरा ही नहीं। मैनें  पंखा ठीक करके हुक में टाँग दिया। एक सप्ताह बाद पुनः वही स्थिति हुई, देखा इस बार पंखा हुक सहित बीच रात्रि में जमीन पर गिर पड़ा। इस बार भी ईश्वर की  अनुकंपा रही। किसी को खरोच तक नहीं आयी।

 ईश्वर में आस्था बढ़ती गयी,अब क्या करें गरमी का मौसम, दालान में ही सोने का निर्णय लिया।बरसात का मौसम प्रवेश कर चुका था।एक दिन हम सभी सोकर नित्य क्रिया में जुड़े थें की अचानक दालान का छत बैठ गया। वाह रे ईश्वर की लीला सभी बाल – बाल बच गये।मेरे मुँह से निकला जाकों राखें साईयां,मार सके न कोय।मैं पास ही ईश्वर का अहसास करने लगा था। ईश्वर इसी तरह सब पर कृपानुभूति बनाये रखें यही कामना है।

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