मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर जुमलेबाजी का दौर

आज के इस तकनीकी युग में जहाँ सोशल मीडिया आप के जीवन में बहुत महत्व रखता है । उस सोशल मीडिया पर लोकतंत्र का असर होना लाज़मी है पर जिस तरीके की राजनीति सोशल मीडिया पर दिखाई देर रही ये बेहद एक गंभीर विषय होता जा रहा है । हिन्दी के प्रसिद्ध लेखक अज्ञेय ने लिखा है कि लोकतंत्र की एक सहज परिभाषा है “बहुमत के लिए बहुमत द्वारा बहुमत का शासन”। पर परिभाषा गलत तरीके से आज कार्य कर रही । सोशल मीडिया वेबसाइट और एप्लिकेशन है

जो उपयोगकर्ताओं को सामग्री बनाने और साझा करने या सामाजिक नेटवर्किंग में भाग लेने में सक्षम बनाते हैं। पर सोशल मीडिया पर बिना जाँचे परखें बहुत हद तक अकारण खबरें भी साझा हो रही हैं जिससे लोगों में एक नकारात्मक सोच भी पैदा हो रही ।

देश में कितना भी डिजिटलीकरण हो जाये पर एक आम आदमी के जीवन में रोटी, कपड़ा और मकान का डिजिटलीकरण नहीं हो सकता पर राज्य सरकार इस समस्याओं को भी

सोशल मीडिया के जरिये ही सुलझाना चाहती है जो कि असंभव है

। वर्तमान वक्त बिहार राज्य के लोगों के लिए बहुत गंभीर साबित हो रहा है । एक ओर कोरोना बिहार की बंजर स्वास्थ्य व्यवस्था को और ड़गमगा रहा है तो वही दूसरी ओर कई जिलों के खेत और सड़क महज बाढ़ में सरोवर से नजर आ रहे हैं।

 कोरोना तो सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की मानवता और अर्थव्यवस्था पर बहुत बड़ा हमला है । पर इससे बचने के लिए बिहार सरकार कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है। ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था जहाँ कोरोना की जांच सही तरीके से नहीं हो पा रही वहा लोगों का इलाज कितने बेहतर तरीके से हो रहा होगा ये आपको भी अंदाजा हैं । बिहार के स्वास्थ्यमंत्री का बयान आता है कि बिहार में बहुत कम लोगों की कोरोना से मौत हुई है। क्या उन्हें एक व्यक्ति की जिंदगी का महत्व नहीं पता ? तो मैं उन्हें बता दू कि एक वोट से भी सत्ता का उलट फेर होता है । ये जनता आप की है आप पर जनता ने भरोसा किया है कि आप उनका नेतृत्व करेंगे ।

बाढ़ बिहार में कोई नई समस्या नहीं है यहां के लोग हर वर्ष बाढ़ से प्रभावित होते है पर वक्त बदलता गया, सरकारें बढ़लती गई और स्थिति अभी वही स्थिर खड़ी है । जिन पर जनता 15 वर्षों से भरोसा जताते आ रही है जनता ने भी ये नहीं सोचा था कि इस भरोसे का सिला उन्हें ऐसा मिलेगा । कोरोना के कारण बहुत से लोग बेरोजगार हो गएऔर खेती जो कि एक आमदनी का जरिया मिला उन्हें वो भी बाढ़ के कारण अस्त व्यस्त हो गया । बिहार सरकार इस गंभीर वक्त में भी इन समस्यों से लड़ने की नीति छोड़ राजनीति पर चर्चा कर रही है उन्हें जनता से ज्यादा चुनाव की फिक्र है और चुनाव प्रचार का माध्यम बना है सोशल मीडिया ।  आप इन समस्याओं का समाधान सोशल मीडिया के जरिए उन लोगों तक पहुंचा रहे हैं जिनके घर बाढ़ से प्रभावित नहीं है, जो अपने जीवन में अभी सुखी है इस सोशल मीडिया से उनको कोई मदद नहीं हो रही जिनका रोज़ाना जिंदगी बाढ़ के कारण अस्त व्यस्त हो गया है । आज के युवा ” # ” के विचारधारा पर कार्य कर रहे जो दिखे वो बिके वाली बात । राजनीतिक दल इसी बात का लाभ उठा रहे हैं क्योंकि उन्हें पता है कि सोशल मीडिया से सरकार चल सकती है। पर मैं उन्हें बता दू कि भारत में लोकतंत्र के चुनाव को पर्व मानते है और इसे हम इस तरीके से सोशल मीडिया के भेट नहीं चढ़ने देंगे । आज भी बिहार की स्थिति बहुत गंभीर है पर दलों का ध्यान चुनाव पर हैं । पर जहाँ लोगों के जीने और मरने पर जब राजनीति होने लगे वो राजनीति बहुत दिनों तक जीवित नहीं रह सकती ।। हमें ये फर्क समझना होगा कि लोकतंत्र और सोशल मीडिया दोनों आप के एक अंगूठे पर निर्भर हैं पर दोनों बहुत भिन्न हैं । फैसला आपका है, जात पात से ऊपर उठकर तय करना होगा कि आपका भविष्य कैसे बेहतर हो सके ।

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