रेखा भारती मिश्रा , पटना
क्या कहूँ मैं तू यहाँ पर किस कदर खो जाएगा
शहर की इस भीड़ में सुन बेखबर खो जाएगा
जगमगाते इस शहर पर मत करो तुम यूँ गुमां
आँधियाँ जब आएंगी तो ये नगर खो जाएगा
चल पड़ा है काटने तू द्वार के उस छाँव को
धूप में जल जाएगा जब ये शजर खो जाएगा
लोग मिलते थे कभी उस गाँव की चौपाल पर
ईंट की दीवारों में अब वो असर खो जाएगा
खेत बंजर सूखी नदियाँ दिख रहे हैं हर तरफ
लग रहा है एक दिन ये गाँव घर खो जाएगा