——प्रिया सिंह
हौसलों को दिखा आसमाँ कम से कम,
तू बना इक नई दास्ताँ कम से कम ।
गर नहीं बोलने की इजाज़त हमें,
छीन लो फिर हमारी ज़ुबाँ कम से कम।
तू भटकता रहेगा यहाँ कब तलक,
ए परिन्दें बना आशियाँ कम से कम।
देखना चाहते हो चरागों कि शह,
लौट जाने दो फिर आन्धियाँ कम से कम।
दम निकल जाए न बंद कमरे में अब,
खोलतो दीजीए खिडक़ियाँ कम से कम।