विजय गुंजन
आज यह पल दिवस का
अन्तिम पहर है ।
ओ मुसाफिर रुक जरा
आराम कर ले ,
पाँव को कुछ बल मिले
थोड़ा ठहर ले ।
दूर जाना है , अभी लम्बा सफर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।
कण्टकों की योजना है
मग न तय हो ,
शुष्क हो रुत, टहनियों में
धुन न लय हो ।
पुनः सम पर विषम का बरपा कहर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।
राह दुर्गम, दूर तक
है धुंध पसरा ,
टिटहियों का दल अचानक
आन उभरा ।
थुकथुका ले अपशकुन ठहरा डगर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।
मोड़ना खुद को नहीं
है लक्ष्य गहना ,
व्यर्थ सी पाबन्दियों को
पार करना ।
हो दुखी मत , दुर्व्यवस्था का असर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।