मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

ओ मुसाफिर !

विजय गुंजन

आज यह पल दिवस का
अन्तिम पहर है ।

ओ मुसाफिर रुक जरा
आराम कर ले ,
पाँव को कुछ बल मिले
थोड़ा ठहर ले ।

दूर जाना है , अभी लम्बा सफर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।

कण्टकों की योजना है
मग न तय हो ,
शुष्क हो रुत, टहनियों में
धुन न लय हो ।

पुनः सम पर विषम का बरपा कहर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।

राह दुर्गम, दूर तक
है धुंध पसरा ,
टिटहियों का दल अचानक
आन उभरा ।

थुकथुका ले अपशकुन ठहरा डगर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।

मोड़ना खुद को नहीं
है लक्ष्य गहना ,
व्यर्थ सी पाबन्दियों को
पार करना ।

हो दुखी मत , दुर्व्यवस्था का असर है ।
आज यह पल दिवस का अन्तिम पहर है ।।

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