मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

अनुपम जिसका वेष

अनुपम जिसका वेष
———विजय गुंजन

निखिल विश्व में हैं सब कहते इसको भारत देश ।

जहाँ योग-तप-ध्यान सिद्ध
योगी विचरण करते हैं ,
बाँच जागरण मंत्र , भाव मङ्गल
जग में भरते हैं ।

जहाँ ज्ञान की किरणों का होता नितदिन उन्मेष ।
निखिल विश्व में हैं सब कहते इसको भारत देश ।।

तपोनिष्ठ निःस्वार्थ चेतना
जहाँ पनपती हरपल ,
सेवा की भावना और हित-साधन
जिसका है बल ।

सदाचार-सादगी-शान्ति का अनुपम जिसका वेष ।
निखिल विश्व में हैं सब कहते इसको भारत देश ।।

इसकी मिट्टी की रग-रग की
शक्ति समाहित सबमें ,
यही शक्ति पौरुष बन-बनकर
चमक रही है नभ में ।

दमक रहा विज्ञान-क्षितिज पर बनकर यह अखिलेश ।
निखिल विश्व में हैं सब कहते इसको भारत देश ।।

विविधायुध परमाणु बमों से
हुआ आज यह युक्त ।
है संकल्प न करना पहले
अरि पर इसे प्रयुक्त ।

करनी परिक्रमा जग-जय की है बन यहाँ गणेश ।
निखिल विश्व में हैं सब कहते इसको भारत देश ।।
– विजय गुंजन

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