मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

साहित्य

अद्भुत और विरल व्यक्तित्व के धनी थे डॉक्टर रमेश नारायण दास

नीरव समदर्शी

डॉक्टर रमेश नारायण दास मैथली के साहित्यकार और ए0एन0 कॉलेज के हिंदी विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष थे।उनकी मैथली कथा संग्रह पाथरक नाव और उज्जर सपेत ग्राम्य जीवन पर आधारित है।आज मैं पितृ दिवस के अवसर पर उनके साहित्यिक जीवन की चर्चा नही करूँगा बल्कि उनके पिता की भूमिका और उदार प्रवृति तथा निस्वार्थ कार्य की बात करूँगा। उनकी मृत्यु पर मेरी छोटी बहन ने उनके ऊपर दो पंक्ति लिखी थी,’खो गया वट वृक्ष सा अद्भुत विरल व्यक्तित्व थे वह जिनके सरल आगोश में विपरीतता मिटती रही।’ यह दो पंक्तियां बाबूजी डॉक्टर रमेश नारायण दास के व्यक्तिव और कृतित्व को चरितार्थ करती हैं। तत्कालीन स्थानीय समाचार पत्रों ने इन्ही 2 पंक्तियों को हेडर के रूप में इस्तेमाल किया था।वह उदार हृदय मजबूत इरादा अदम्य साहस और निष्काम तथा निश्वार्थ कार्य मे कितनी ऊंचाई पर थे एक उदाहरण से आप सब को बताना चाहता हूँ।

बात 1995-96 की है मैं अपने प्रारंभिक व्यवसायी जीवन के भीषण संघर्ष से परेशान उदास बैठा था ।मुझे उदास देख बाबूजी ने कहा तुम परेशान क्यो होते हो “किया हुआ कार्य कभी व्यर्थ नही जाता है।वर्ष 1972-73 में मैं हिंदी विभाग में बैठा था तब एक व्यक्ति आकर मुझसे पाथरक नाव की 13 प्रतियां खरीदा पूछने पर बताया कि यह प्रतियां विश्व की 13 देशों में मांगी गई है । वहां के पुस्तकालयों में रखने के लिए।वह व्यक्ति अनुपम प्रकाशन का कोई पदाधिकारी था।मैं ने बाबूजी से कहा कि बाबूजी उन पुस्कालयो का नाम क्यो नही पूछ लिए अगली पीढ़ी को जानकारी होती।इसपर उन्होंने बहुत सहज भाव से कहा कि मुझे यह कोई महत्वपूर्ण बात नही लगी तुम्हे उदास देख हिम्मत दिलाने मात्र के लिए कह दिया।”तब मुझे लगा निश्वार्थ कर्म के मार्ग में मेरे बाबूजी  अनंत दूरी को छू चुके है।अनंत तो सर्वशक्तिमान होता है न?उसी दिन मुझे महशुस हुआ कि वह सिर्फ एक पिता या एक व्यक्ति नही रहे वह मेरे लिए ही नही इस समाज के लिए भी पूजनीय हो चुके है। उसी दिन से उन्ही की दी शक्ति से मैं परिवार और समाज से रत्तीभर यश की अभिलाषा के बैगैर विपरीत परिस्थितितो से लड़ते हुए अपना कार्य करते रहना सीख लिया हु।ऐसा करता हुआ मैं हरवक्त यह महशुस करता रहता हूं कि वह सिर पर हाथ रख कह रहे हों तुम ठीक कर रहे हो लड़ते रहो करते चलो ।हर बच्चा या व्यक्ति के पिता उसके हीरो या आदर्श होते हैं।

: बाबूजी भी मेरे उतने आदर्श तो थे ही।इसके अतिरिक्त उन्होंने मुझे भीषण से भीषण अभाव में भी सर उठाकर बिना बड़ा समझौता किए सच्चाई और ईमानदारी से चलने की जो अद्भुत शक्ति प्रदान की ।उस शक्ति  की कीमत उनके जाने के बाद समझ पाया।

गप शप में बताई उनकी छोटी छोटी बातें आज  जीवन संघर्ष में हमारे पास  अस्त्रों की तरह हैं।बाबूजी हमेशा कहा करते थे मानता हूं जीवन मे बहुत दुख है यह भी सत्य है कि जीवन मे बहुत कम सुख है।यहाँ यह समझने की बात  है कि घण्टा सिर्फ 24 है यदि हम उस 24 घण्टे को सुख चुनने में व्यय कर दे तो दुख कितना भी हो मुझ से दूर ही रहेगा।मेरे पास बताने को शब्द नही है कि उनकी इस बात से मुझे कठिन से कठिन स्थिति में अपने को खुश कर लेने को कितनी बड़ी युक्ति मिल गयी।

आज के दिन उनकी बहुत यादआ रही है।उन्हे भावपूर्ण श्रद्धांजलि ही दे सकता हूं अब !

LEAVE A RESPONSE

Your email address will not be published. Required fields are marked *