पटना 07/09/2021 ! ” जीवन के विविध प्रसंगों को अभिव्यक्त करने में रशीद गौरी की कलाकृतियां, पूर्णत: सक्षम है, इसमें कोई दो मत हो ही नहीं सकता l साहित्य के इतिहास में,रशीद गौरी एक अमिट हस्ताक्षर के रूप में अंकित हो चुके हैं, जिनकी रचनाएं और रेखाचित्र अंतर्दृष्टि की व्यापक कैनवास पर चित्रित है l
भारतीय युवा साहित्यकार परिषद केतत्वाधान में, फेसबुक के” अवसर साहित्यधर्मी पत्रिका ” के पेज पर ऑनलाइन आयोजित ” हेलो फेसबुक संगीत एवं चित्रकला सम्मेलन ” की अध्यक्षता करते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार एवं चित्रकार सिद्धेश्वर ने उपरोक्त उद्गार व्यक्त किया !
संगीत सम्मेलन के संदर्भ में उन्होंने कहा कि.- ” निराशा और तनाव भरे मन को, अवसाद से बचाता है संगीत ! संगीत हमारे भीतर उत्साह का संचार निर्मित करता है ! लोकगीत हमारे परिवेश की संगीतमय प्रस्तुति है l” इस ऑनलाइन ” हेलो फेसबुक संगीत और चित्रकला सम्मेलन ” के मुख्य अतिथि थे, राजस्थान के वरिष्ठ साहित्यकार और चित्रकार डॉ रशीद गौरी l विशिष्ट अतिथि डॉ शरद नारायण खरे ने कहा कि – ” रशीद गौरी सधे और मंजे हुए चित्रकार हैं ! उनके रेखाचित्र दर्शक से संवाद करते हुए प्रतीत होते हैं ! इस चित्रकार के पास मौलिक दृष्टि और मौलिक चिंतन है, जो जीवन को अनेक गुणों से देखते हैं और अभिव्यक्त करते हैं !”
डॉ ऋचा वर्मा ने कहा कि -” चित्रकला मेरी समझ से उतनी ही पुरानी विधा है, जितनी पुरानी हमारी सृष्टि ! मात्र पेंसिल और क्रेयोन की मदद और ज्यादातर ज्यामितीय रेखाओं से, रशीद गौरी द्वारा बनाएं चित्र, मानवीय संवेदनाओं को बहुत ही गहराई में अभिव्यक्त करता है ! ” राज प्रिया रानी ने कहा कि -” रशीद गौरी के अनमोल रेखाचित्र, न जाने कितने सवालों को उकेर रखा है l ऐसे सक्षम लेखक ही संपूर्ण साहित्यकार बन सकते हैं, जो संपूर्ण कलाओं में भी निपुण हो ! उनके रेखाचित्र मूलभूत भावनाओं को आम लोगों के समक्ष रखने में सक्षम है !“
डॉ बी एल प्रवीण ( डुमरावं ) ने कहा कि -” राशीद की कलाकृतियां, निहायत सधे हुए हाथों से बनाई गई है l एक सुलझा हुआ कलाकार हैं रशीद गौरी l उनके चित्रों को देखकर पिकासो की याद आती है l
ऑनलाइन इस सम्मेलन का दूसरा सत्र संगीत को समर्पित था! गजानन पांडे (हैदराबाद ) ने -“पुकारता चला हूं मैं गली गली बहार की !”/मुकेश कुमार ठाकुर ने ” हमने तुझको प्यार किया है जितना कौन करेगा इतना !”/ मधुरेश नारायण ने -” याद न जाए बीते दिनों की, दिल क्यों भुलाए ?”/ मुजफ्फरपुर की डॉ आरती कुमारी और आस्था दीपाली ने -” सावन में आई मौसम की बौछार बालमा !” की सशक्त प्रस्तुति दीl
वहीं आस्था दीपाली (नई दिल्ली)ने कत्थक नृत्य की भी प्रस्तुति दी l आरती कुमारी ने -“रहे न रहे हम, महका करेंगे, बन के कली बन के हवा !”//सत्येंद्र संगीत ने फ़िल्मी लोकगीत -” लाली लाली होठवा से बरसे ला ललिया हो कि रस चुवेला !” सुनाया तो लोग झूम उठे !/सिद्धेश्वर ने -” जिस गली में तेरा घर ना हो बालमा !”/ नीतू कुमारी नवगीत ने पारंपरिक लोकगीत के तहत” पिपरा पतईया उड़ल जाला !” की यादगार प्रस्तुति दी ! नैनी ( इलाहाबाद )से कुमारी गर्विता का नृत्य अति मनमोहक रहा!”