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सच हार नही सकता

सम्पादकीय

सिर्फ एनडीए में गए ही नही है मोदी की कार्य शैली भी अपना लिए है नीतीश कुमार

सिर्फ एनडीए में गए ही नही है मोदी की कार्य शैली भी  अपना लिए है नीतीश कुमार

      

   — नीरव समदर्शी

 

इस बार जब से  नीतीश कुमार एनडीए के हिस्सा बने हैं उन्होंने नरेंद्र मोदी की कार्य शैली को भी पूरी तरह अपना लिया है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर भाई मोदी के कई अच्छे कार्यों के बावजूद भारत के अनेकानेक बुद्धिजीवी और ईमानदार लोग  मोदी और उनकी लॉबी के घोर विरोधी हैं इसकी सबसे बड़ी वजह है नरेंद्र मोदी की कार्य नीति और रणनीति ।
मोदी काल में सत्ता पक्ष के द्वारा अपनी जरूरत से विशेष काल में विशेष व्यक्ति के विरुद्ध ही ईडी और सीबीआई को लगाया जाता है  वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध ईडी बहुत सक्रिय होती है। वह विरोधी पक्ष से अगर अपने पक्ष में आ जाए तो उसके विरुद्ध चल रही कार्यवाही शून्य या अत्यधिक धीमी हो जाती है। और नरेंद्र दामोदर भाई मोदी की यह कार्य नीति सिर्फ राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध ही नही होती है होती है बल्कि आम जीवन में अपने अपने दम पर जीवन व्यतीत कर रहे आम लोगों के साथ भी वैसे ही व्यवहार किए जाते हैं जो थोड़ा सा भी सत्ता की विपरीत जाते दिखते हैं ।इसके दो प्रमुख उदाहरण है लोक गायिका नेहा सिंह राठौड़ और शिक्षा विद विकास दिव्यकीर्ति।
साहित्य समाज का दर्पण है। स्वाभाविक तौर पर साहित्यकारों का यह काम है कि सत्ता पक्ष की या समाज की  जो कमी रहती है उसे अपनी गीतों और कविताओं में प्रदर्शित करें। ऐसे ही कार्य नेहा सिंह राठौड़ ने जो बेरोजगारी और अन्य समस्याओं से जूझ रहे आमजन की पीड़ा को अपनी व्यंग्य रचना यूपी में का बा बिहार में का बा इत्यादि में वर्णित किया ।तब नेहा सिंह राठौड़ पर अनेकानेक मुकदमा दर्ज  कर दिया गया। लगातार पुलिस उनके ससुराल और मायके में उनके घर पर पहुंचने लगी।
दूसरा उदाहरण है  विकास दिव्यकीर्ति और खान सर जैसे शिक्षा विद अपने शिक्षण कार्य के क्रम में और अपने यूट्यूब  से अपने विचारों की अभिव्यक्ति के क्रम में उनकी कुछ बात सत्ता पक्ष के विचारधारा के विपरीत होते ही भारत सरकार सरकार कोचिंग संस्थानों की कार्यशैली और उनके द्वारा अपने संस्थान के प्रचार-प्रसार के विरुद्ध हाथ धोकर पड़ गई।
कहा जाने लगा कि झूठी प्रचार किए जाते हैं ,पोस्ट में होल्डिंग बोर्ड पर झूठी कामयाबी दिखाई जाती है कोचिंगों के द्वारा।
निश्चित तौर पर किसी भी झूठ का विरोध होनी चाहिए सख्त कानूनी कार्यवाही भी  होनी चशिए, लेकिन चुनाव प्रचार के क्रम में या अन्य अनेक अवसरों पर नेताओं द्वारा अपने भाषण में बोले गए झूठ की   जांच भी फौरन होनी चाहिए।अगर ऐसी कार्यवाही ईमानदारी से की गई तो वर्तमान से लेकर पूर्व के अनेक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सलाखों के पीछे नजर आएंगे ।यह करेंट एफेयर्स की तैयारी झरने वाला कोई साधारण परीक्षार्थी भी कह सकता है।   ऐसे में खास समय में खास व्यक्ति पर केंद्रित होकर कानूनी कार्यवाही की जाने की नीति अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने की निरंकुश नीति ही कही जाएगी।
इस बार नीतीश कुमार जब से एनडीए के हिस्सा बने हैं तब से प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर भाई मोदी की इस नीति को पूरी तरह अपना अपना चुके हैं। उन्होंने न सिर्फ कार्यनीति  ही नही अपनायी है बल्कि विधानसभा में भी खुले तौर पर इस तरह के बयान देने लगे हैं।
10 तारीख से 12 तारीख तक के  फ्लोर टेस्ट में जगह-जगह  अपने और विपक्षी विधायकों को पुलिस तंत्र के सहारे उठाकर उनके बाल बच्चों  को गिरफ्तार करवा कर जीत की कार्य नीति तो सब ने देखा ही । जिसके दो  मुख्य उदाहरण है ।झारखंड से आने के क्रम में फ्लोर  से टेस्ट के ठीक 1 दिन पूर्व विधायक डॉ संजीव को नवादा पुलिस के द्वारा गिरफ्तार किया जाना और तेजस्वी यादव के घर से देर रात पुलिस द्वारा बलवती चेतन आनंद को उठाकर और फ्लोर टेस्ट के वक्त तक सत्ता पक्ष में बिठाकर अनेक दवाबो के बीच अपने पक्ष में मतदान करवा लिया जाना मोदी शैली के अंतर्गत ही आता है।
सहज अनुमान लगा जा सकता है किअगर इतनी निर्लज्जता के साथ इतनी बड़ी  घटना साफ तौर पर दिखती रही और सरकार उसी शैली में   कार्य करती रही तो ऐसे कितने  दबाव के खेल होंगे जो पर्दा के पीछे खेले जाते रहे होंगे। फ्लोर टेस्ट के दिन और कल विधानसभा और विधान परिषद में अपने भाषण के क्रम में मुख्यमंत्री ने तल्ख आवाज में विधान पार्षद सुनील कुमार को कहा कि अगर मैं चाह लूंगा तो बर्बाद हो जाओगे ।
फिर उन्होंने कहा कि विपक्ष के कई लोगों ने गड़बड़ियों की है उन सब की फाइल खुलवाई जाएगी जांच किया जाएगा और हम किसी को नहीं छोड़ेंगे। हमने पुलिस को मजबूत किया है। यह शैली पूर्ण रूप से केंद्रीय सत्ता की है। खास समय में खास प्रतिद्वन्दी  के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही किए जाने की शैली।
ये नेतागण ऐसा सिर्फ इसिलए इतनी निर्लज्जता से कर पाते है कि वह जानते आम मतदाताओं की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर होती है।थोड़े ही समय के अंदर कोई धार्मिक और जातीय मुद्दा आते ही वह उसी बहाव में बह जाते हैं।
इस शैली के हिमायती को समझना चाहिए कि यह नीति आज उसके तो कल मेरे विरुद्ध जाएगी यह नीति। इसी तत्कालीन रजसो और आमजन द्वारा इसतथ्य को नजरअंदाज करने की कझ से हिटलर तना शाह के उदाहरण बने और हम भारतवासी को 200 वर्षों तक अंग्रेजो की गुलामी करनी पड़ी

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