शिक्षा विभाग के कर्मियों को शिक्षकों के पीछे लगा देने से सम्पूर्ण विभाग में गड़बड़ी और अफरातफरी की स्थिति है
शिक्षा विभाग के कर्मियों को शिक्षकों के पीछे लगा देने से सम्पूर्ण विभाग में गड़बड़ी और अफरातफरी की स्थिति है
शिक्षा विभाग का दो हिस्सा है और दोनो आपसी सामंजस से अब तक चलता रहा है। एक हिस्सा पठन -पाठन का है और दूसरा हिस्सा पठन-पाठन को सुचारु रूप से चलते रहने के लिए उससे जुड़े कर्मियों को वित्तीय एवम अन्य सुविधा मुहैया कराने एवं आंकड़ों तथा कार्यो को व्यवस्थित रखने का है। इसके अतिरिक्त इस विभाग के शिक्षकों का उपयोग राज्य सरकार जनगणना इत्यादि कार्य के सर्वे के लिए करती रही है। राज्य सरकार की इस नीति से शिक्षण कार्य बाधित होता है।
उच्च शिक्षा के अंतर्गत विश्वविद्यालयो का शिक्षा विभाग से बस इतना ही सम्बन्ध है कि राज्य सरकार हर वर्ष विश्वविद्यालयों को वित्तीय सहायता देती है। विश्वविद्यालय सम्पूर्ण रुप से स्वतंत्र संस्था के रूप में राज्यपाल यानी कुलाधिपति के देखरेख में चलता है।
यहां यह भी समझ लेना चाहिए कि शिक्षा विभाग के शिक्षण में जुड़े कर्मचारियों यानी शिक्षकों को सुविधा मुहैया करवाते रहने के लिए ही अन्य कर्मियों की जरूरत है।
विभाग के वरीय पदाधिकारियों द्वारा शिक्षण में कोताही बरतने वाले शिक्षकों के कार्यों को नियमित करने का अधिकार भी है।
के के पाठक जबसे शिक्षा विभाग के अपर मुख्यसचिव बने है शिक्षा विभाग के सभी कर्मचारियों को जैसे शिक्षके के पीछे दौड़ा दिया गया है। वो कब छुट्टी ले ,कब क्लास में घुसे कब परीक्षा लें, कब निकले क्या पढ़ाए, कैसे पढ़ाए इत्यादि। ऐसे मे सम्पूर्ण विभाग में उनका दैनिक कार्य बाधित है शिक्षक मानसिक यातना की स्थिति में असहज होकर छात्रों को बेहतर शिक्षा नही दे पा रहे है। आंकड़ा आदि संकलन एवम संयोजन का कार्य विभागीय कर्मी ठीक से नही कर पा रहे है परिणाम स्वरूप यू- डऐस पोर्टल में एन्ट्री नही होने से तकरीबन 5 लाख बच्चो के नामांकन पर आफत आ गया है।