वेदों की रक्षा के लिए जब भगवती दुर्गा अवतरित हुईं
हरिनारायण सिंह हरि
शिव महापुराण के उमासंहिता के अन्तर्गत पचासवें अध्याय में भगवती दुर्गा के आविर्भाव की कथा आयी है।कथा इस प्रकार है।प्राचीन काल में हिरण्याश के वंश में दुर्गम नामक असुर था। वह महाबली रुरु का पुत्र था और स्वयं भी अति बलशाली था।उसने ब्रह्मा जी की घोर तपस्या की,फलस्वरूप उसे उनके द्वारा एक अद्भुत वरदान की प्राप्ति हुई।उस वरदान के प्रभाव से उसने चारों वेदों को विश्व से विलुप्त कर दिया तथा अपने अजेय बल के द्वारा विश्व के प्राणियों पर अत्याचार करने लगा।उसके अत्याचार से देवता भी भयभीत हो गये। वेदों के लुप्त हो जाने से सम्पूर्ण धार्मिक आचार-विचार नष्ट हो गये और देवता समेत ब्राह्मण भी दुराचारी हो गये। अनावृष्टि के कारण घोर अकाल पड़ गया। नदी और तालाब तो सूख ही गये समुद्र भी सूखने लगे। सारे पेड़-पौधे और वनस्पतियाँ नष्ट हो गयीं।भोजन और पानी के अभाव में तीनों लोकों के प्राणि गण त्राहि-त्राहि करने लगे।इस महादुख को आया देख सारे देवतागण योगमाया महेश्वरी की शरण में गये।देवताओं ने जगतजननी की प्रार्थना करते हुए कहा, “हे महामाया!अपनी संपूर्ण प्रजा की रक्षा करिए ।हम पर दया करिए, नहीं तो सारे लोक नष्ट हो जाएंगे। माँ! जिस प्रकार आपने शुम्भ, निशुम्भ, ध्रूमाक्ष, चण्ड, मुण्ड, रक्तबीज, मधु-कैटभ तथा महिषासुर आदि दैत्यों को मारा है, उसी प्रकार इस दैत्य को भी शीघ्र मारकर हमलोगों की रक्षा कीजिए।
देवताओं के आर्त्त वचन सुनकर करुणामयी पार्वती जी प्रकट हो गयीं।वे अनंत अक्ष(आँख) वाली थीं।अन्न और जल के लिए व्याकुल जीवों को देखकर उन्हें बड़ी दया आयी।वे इस दुख से द्रवित हो नौ दिन और नौ रातों तक रोती रहीं।पुराणकार भगवान व्यास ने लिखा भी है,
तक रोती रहीं।पुराणकार भगवान व्यास ने लिखा भी है,
” न शताक्षीसमा काचिद् दलालुर्भुवि देवता।
दृष्ट्वारुदत् प्रजास्तप्ता या नवाहं महेश्वरी ।”
(शिवपुराण,उमासंहिता,अध्या- ५०)
अर्थात् इस पृथ्वी पर महेश्वरी माता शताक्षी के समान कोई दूसरादयालु हो ही नहींसकता। वे अपनेप्रजाजन का कष्ट देखकर नौ दिनों तक लगातार रोती रहीं।
उनके करुणार्द्र अनंत नेत्रों से सहस्रों जल धाराएं वर्षा के रूप में प्रवाहित होने लगीं, जिससे सारे जीव-जन्तु तृप्त हो गये । नदियों और समुद्रों में अगाध जल भर गया।संपूर्ण औषधियाँ, शाक, फल और फूल लहलहा उठे। गौओं के लिए कोमल-हरित घास और दूसरे प्राणियों के लिए यथोचित खाद्य -सामग्री उपलब्ध हो गया। समस्त प्राणियों सहित देवता,ब्राह्मण और मनुष्य सभी संतुष्ट और प्रसन्न हो गये।
इसके उपरांत देवी ने एकत्रित देवताओं से पूछा, ” अब तुम्हारा और क्या कार्य करूँ? “
देवताओं ने कहा,” हे देवि! आपने संपूर्ण विश्व को संतुष्ट किया ।अब कृपा कर इस दुष्ट दुर्गम से हमारी रक्षा करिए। इसने वेदों का अपहरण कर लिया है, जिससे धर्म लुप्त हो गया है और लोकों में अधर्म का राज हो गया है ।अतः, हे माता!इससे वेदों का उद्धार करिए ।”
देवी प्रसन्न हुईं ।उन्होंने कहा, ” हे देवगण!ऐसा ही होगा।अब तुमलोग अपने-अपने स्थान को लौट जाओ।”
देवतागण उन्हें अपना प्रणाम निवेदित कर अपने-अपने स्थान को लौट गये।देवी की कृपा से तीनों लोकों में आनंद छा गया।
जब यह बात दुर्गमासुर को मालूम हुई, तो वह बहुत क्रोधित हो उठा। उसने अपनी आसुरी सेना को इकट्ठा किया और देवलोक को घेर लिया।तब शिवा देवी-देवताओं एवं मनुष्यों की रक्षा के लिए अपने दिव्य तेजोमंडल से तीनों लोकों को व्याप्त कर घेरा बना, उनसे सुरक्षित कर दिया और स्वयं उस घेरे से बाहर आकर युद्ध के लिए सन्नद्ध हो खड़ी हो गयीं।
देवी को देखते ही असुरों ने उनपर आक्रमण कर दिया।उनमें घमासान युद्ध होने लगा।इसी बीच उसी देवी के दिव्य शरीर से सुन्दर रूप वाली – काली, तारा छिन्नमस्ता,श्रीविद्या, भुवनेश्वरी,भैरवी,बगला, धूम्रा, त्रिपुरसुन्दरी और मातंगी – दस महाविद्याएं अस्त्र-शस्त्रों सहित प्रकट हुईं। तदन्तर, वे असंख्य मातृकाएँ हो गयीं,जिनके माथे पर चन्द्रमा के मुकुट थे और वे बिजली के समान कांतिवाली थीं।इन मातृगणों से दैत्यों का भयंकर युद्ध होने लगा। इस युद्ध में देवियों ने देखते-ही-देखते दुर्गमासुर की सौ अक्षौहिणी सेना का संहार कर दिया ।पश्चात्, देवी ने अपने अपने तीखे त्रिशूल से दुर्गमासुर पर वार किया।दुर्गमासुर कटे हुए वृक्ष की तरह भूमि पर गिर पड़ा और उसके प्राण-पखेरू उड़ गये।इस प्रकार देवी ने दुर्गमासुर को मारकर चारों वेदों का उद्धार किया और उन्हें देवताओं को सौंप दिया।
देवताओं ने देवी का जय जयकार किया और कहा, “हे देवि!आपने अनंताक्षिमय रूप धारण किया है, इस कारण ऋषि-मुनी आपको शताक्षी कहेंगे। अपनी देह से उत्पन्न शाक से सब लोगों का पालन किया,इससे आपका शाकम्भरी नाम प्रसिद्ध होगा।वेदों की रक्षा — — — पृष्ठ -02
हे शिवे!आपने दुर्गम असुर को मारा है, इसलिए आपको सभी मनुष्य दुर्गा भगवती कहकर पुकारेंगे।स्वयं देवी ने भी श्रीदुर्गा सप्तशती में अपने नाम की प्रसिद्धि के बारे में कहा है —
“तत्रैव च वधिष्यामि दुर्गमाख्यं महासुरम्।
दुर्गा देवीति विख्यातं तन्मे नाम भविष्यति ।।”
( दुर्गासप्तशती,११/४९-५०)
तदन्तर, देवतागण माँ दुर्गा की अभ्यर्थना में सादर झुक गये।इस प्रकार भगवती दुर्गा का आविर्भाव हुआ, जिससे तीनों लोकों के समस्त प्राणियों का कल्याण हुआ ।