डॉ.नीता चौबीसा, बांसवाड़ा राजस्थान
देह व्यापार पूरी दुनिया में आज भी महिलाओं की दैहिक स्वतंत्रता पर एक बड़ा कलंक है। भारत जैसे सुसभ्य देश में जहां स्त्री़ को पूज्य माना गया है, वहां भी लंबे समय से महिलाएं देह व्यापार जैसे घिनौने धंधे में उतरने को मजबूर हैं। हालांकि 1956 में पीटा कानून के तहत वेश्यावृत्ति को कानूनी वैधता दी गई, पर 1986 में इसमें संशोधन करके कई शर्तें जोड़ी गईं, जिसमें सार्वजनिक सेक्स को अपराध माना गया और यहां तक कि इसमें सजा का प्रावधान भी रखा गया किन्तु इसे विडंबना कहें कि दुर्भाग्य, आज भी देश में कई ऐसे इलाके हैं, जहां लड़कियां जिस्मफरोशी को मजबूर हैं। भारत के लगभग दस ऐसे रेड लाइट एरिया है जिनकी एशिया में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में चर्चा होती है इनमे सोनागाछी कोलकाता और मुंबई के रेड लाइट एरिया कमाठीपुरा सर्वाधिक चर्चित है।हालांकि इन तमाम रेड लाइट एरियाज का घिनोन सच एक सार्वजनिक सर्वे से जिस तरह सामने आया उसने मानवता को शर्मसार कर दिया है।एक ओर जहां यह सच है कि यहां प्रायः लालच देकर लाई जाने वाली गरीब लड़कियों के साथ बेहद अमानवीय बर्ताव किया जाता है,वही दूसरी ओर यह भी वर्तमान का एक कड़वा सत्य है कि आज जल्दी और अधिक धनवान बनने के लालच में कुछ सिरफिरी विदेशी साइट्स के माध्यम से लडकिया अश्लीलता के इस धंधे को फिल्मीकरण के माध्यम से ले कर रेड लाइट एरिया को हमारे घरों तक ला चुकी है और ऐसे लोग गर्व के साथ इसे भी एक जॉब का नाम देते है क्योंकि कुछ नापाक देशो में इसकी छूट दे रखी है।हालांकि रेड लाइट एरिया में बेहतर जीवन के नाम पर उनको नशे का इंजेक्शन देकर कैद किया जाता है फिर जिस्मफरोसी के दलदल में उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया जाता है।एक एनजीओ प्रेरणा ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा करते हुए कहा कि वेस्ट बंगाल और बांग्लादेश की रहने वाली गरीब महिलाओं को बहला-फुसला कर लाया जाता है जिनमे से 30 प्रतिशत लडकिया नाबालिग होती है।उनको अच्छी नौकरी का लालच दिया जाता है। लेकिन यहां लाकर उनको नशे के इंजेक्शन और दवाएं दी जाती हैं।उनको जबरन कई ग्राहकों के सामने परोसा जाता है।इस घिनोने धंधे से मना करने पर इन लड़कियों की जबरदस्त पिटाई होती है।रिपोर्ट के मुताबिक
उनको कई कई दिनों तक कमरों में बंद कर दिया जाता है, कई दिनों तक भूखे-प्यासे रखा जाता है। इसके बाद अपनी हालत से टूटकर लड़कियां मजबूरन उनकी बातें मान लेती हैं। उन्हें नशीली दवाओं की इतनी लत पड़ जाती है कि वे उसके बिना परेशान हो जाती हैं।इनमे से कई लड़कियों की बाद में सीमा पार तस्करी कर दी जाती है। मानव तस्करी की यह घटनाए अधिकतर नेपाल या बांग्लादेश की सीमा से होती है।जानकारी के मुताबिक भारत-बांग्लादेश की चार हजार किमी लंबी सीमा पार कराकर तस्करों द्वारा मानव तस्करी की जाती है।यूएनओडीसी की एक रिपोर्ट में भी कहा गया है कि एशिया में मानव तस्करी का काम बहुत तेजी से बढ़ा है। यहां प्रति वर्ष करीब डेढ़ लाख लोगी की तस्करी की जाती है। भारत में यूपी, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से ज्यादा लड़कियां लाई और बेची जाती हैं।वेश्यावृत्ति के प्रति समाज का दोहरा रवैया है।समाज में दिखावे के लिए ऊपरी तौर पर तो सब वेश्यावृत्ति के खिलाफ नजर आते हैं लेकिन बंद कमरों के पीछे वेश्यावृत्ति को फैलाने में वही समाज ही सहायक है। समाज में आज वेश्यावृत्ति इस कदर बस चुकी है कि लोग इसे कानूनी जामा पहनाने को तैयार नही हैं।इस दौड़ में आज भारत भी शामिल है।भारत में भी वेश्यावृत्ति काफी समय से चली आ रही है और समाज में इसकी पकड़ बहुत जबरदस्त बन चुकी है।वेश्यावृत्ति की पकड़ भारत में गांवो से लेकर मेट्रो तक बनी हुई है और इसकी गिरफ्त में हर उम्र के लोग आते रहे हैं।बड़ी-बड़ी पार्टियों में जहां यह एक स्टेटस सिंबल की तरह भोजन के रुप में परोसा जाता है तो वहीं रेड लाइट एरिया में एक बाजार के रुप में बिकता है।सभ्यता और संस्कृति के विकास के साथ वेश्यावृत्ति भी पूरी दुनिया में चरम पर पहुंच चुकी है। पोस्ट मॉडर्न सोसाइटी में वेश्यावृत्ति के अलग-अलग रूप भी सामने आए हैं। रेड लाइट इलाकों से निकल कर वेश्यावृत्ति अब मसाज पार्लरों एवं एस्कार्ट सर्विस के रूप में भी फल-फूल रही है। देह का धंधा कमाई का एक गरिमाहीन जरिया बन चुका है। गरीब और विकासशील देशों जैसे भारत, थाइलैंड, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि में सेक्स पर्यटन का चलन शुरू हो चुका है। जिस्मफरोशी दुनिया के पुराने धंधों में से एक है लेकिन आज जिस तरह से सोशल साइट्स पर खुले आम धड़ल्ले से यह सब चल रहा है यह सभ्यता और संस्कृतियों पर सीधा आक्रमण है।इक तरह से यह पतन की पराकाष्ठा ही कही जाएगी जहाँ रेड लाइट एरिया अब हर घर मे पहुच चुका है और अपरिपक्व बच्चों की पहुच में आकर एक गंदी, भौंडी ,वाहियात व आपराधिक मानसिकता को जन्म दे रहा है।यदि इस पर समय रहते लगाम नही कसी गई तो हर संस्कृति तबाह होगी और आने वाली पीढ़ियों का हश्र क्या होगा, यह विचारणीय है?जितनी शोचनीय व नारकीय जिस्मफरोशी के धंधे में फंसी लड़कियों का जीवन होता है, उससे भी अधिक विचारणीय सोशल साइट्स पर गन्दी व अश्लीलता फैलाने वाली रेड लाइट फिल्मो के दर्शकों की बुरी ,सड़ी मानसिकता व उससे उत्तपन्न आपराधिक वृति भी है ,जो अनावश्यक सामाजिक कचरे को जन्म दे रही है,
दोनों पर कानूनी लगाम कसनी जरूरी है।यह अत्यंत शोचनीय प्रश्न है कि पुलिस,सरकार,बुद्दिजीवीयो,समाज सभी ऐसे रेड लाइट एरियाज को अवांछित मानते है फिर भी बाजारों,बस्तियों और कई बार तो धार्मिक स्थलों जैसे पवित्र स्थलों के इर्द गिर्द ही ये फलते फूलते देखे जाते है और क्या वजहें है,क्या मजबूरियां है कि सब कुछ होते हुए भी आजादी के पचहत्तर वर्षो बाद भी हम इस सिलसिले को नही रोक पाए है और न ही कम कर पाए है?कहीं हमारे समाज के मानदंड और चरित्र ही तो दोहरे नही हो गए है ?, हमे इसका आकलन करना होगा ।झूठी शान का दिखावा, बाहरी संस्कार ओढ़े भीतर निरंतर गिरती सोच, पश्चिमीकृत दुष्विचारो को आधुनिकता के नाम का आवरण पहना कर हमारा ये समाज जो नारीवाद ,नारी सशक्तिकरण ,नारी उत्पीड़न से उन्मूलन के नाम पर आखिर कब तक पुरुस्कार बटोरता रहेगा ?,जबकी सच तो यह है कि देवी दुर्गा को माँ के रूप में पूजने वाले यह लोग अंधेरे में अपनी कामुकता पूर्ण सोच पर ही लगाम नही लगा पाते और उनके कदम कभी ऐसे रेड लाइट एरियाज में गुज़रते है तो कभी अश्लील वेबसाइट्स की खोज में स्वयं को खो देते हैं। यह एक अति गंभीर और विचारणीय प्रश्न है पाठको कि आखिर क्यों इतनी नारीवादी संस्थाए होने के बावजूद भी ऐसे रेड लाइट्स एरियाज, जहाँ सरेआम लड़कियों की तस्करी ,बलात्कार, व्याभिचार उत्पीड़न किया जाता है , पर क्यों पाबंदी नही लगाई जा रही? भारत मे ऐसे रेड लाइट एरियाज लीगल नही है व्याभिचार करना अवैध है फिर भी पुलिस प्रशासन ,सरकार क्या इतनी कमजोर है कि ऐसे रेड लाइट एरियाज को उखाड़ कर फेंक नही सकती? प्रश्न यह भी है कि क्या एक स्त्री ने अपने स्त्री होने का महत्व खो दिया है या इतनी अशक्त हो गयी है कि स्व सम्मान के गूढ़ अर्थ को खो कर भौतिकी एकत्रीकरण हेतु कुछ स्त्रियां स्वयं ही खुद को ऐसी आग में झोंक रही है? और एक प्रश्न हमे स्वयं से भी करना होगा कि आखिर कब तक हम इस वैश्यावृत्ति को मजबूरी का आवरण चढ़ा केवल उन स्त्रियों को “बेचारी” संबोधित कर अपना पल्लू झाड़ते रहेंगे ?क्या पुरातन ‘स्व’ की जगह ‘पर’ की भावना वाला हमारा ये समाज आज इतना गिर गया है कि समाज मे फेल रही ये दुशवृत्ति को स्वंय उखाड़ कर नही फेक सकता या फिर करुणा ,प्रेम ,संस्कार संस्कृति की बात करने वाले हमारे इस समाज की कही जड़े ही तो खोखली नही होती जा रही? क्या उन वैश्यावृत्ति में लिप्त स्त्रियों की हृदय विदीर्ण कर देने वाली चीत्कार सुन ने में ये समाज असक्षम है ? आखिर क्यों तस्करी से लाई मार पीट बलात्कार ओर न जाने क्या क्या सहती उन स्त्रियों के साथ साथ उनके अश्रुओं पीड़ाओं को भी अस्पृश्य मान लिया गया है? आज उस अंधे कुएं में गिरी वो स्त्रिया जो अपने बाहर आ पाने के सपने को त्याग चुकी है जो कभी उन्मुक्त गगन में आपकी ओर हमारी भांति ही उज्वल भविष्य की कामना करती होंगी जो कुछ दुष्चरित्र मनुष्यो के प्रभाव में आ समय की खाई में आज अपना अस्तित्व ढूंढ रही है ,वो अब स्वयं को अब उन अंधेरो से निकलने का प्रयास तक नही कर पाती और समय के आगे समर्पण कर चुकी हैं। हमे ये नही भूलना चाहिए कि उनकी इस स्थिति का कारण कहीं न कही हम भी हैं ,यह मूक बना समाज भी है,जो ना ही उनको अंधेरे से निकाल पा रहे है और बाहर आने की चाह रखने वाली उन लड़कियों को जीने का नया मौका नई पहचान दिलवाने का सामर्थ्य रखते हुए भी उनके लिए कुछ नही कर रहे है ।कुछ संस्थाए इसके लिए कार्यरत भी है परंतु इन वैश्यालयों ओर रेड लाइट एरियाज को हटाने की जो तत्परता सरकार और लोगो मे होनी चाहिए उसका अभाव स्पष्ट रूप से नज़र आता है। सरकार वीमेन चाइल्ड ट्रैफिकिंग पे तो कार्य कर ही रही है परंतु ऐसे रेड लाइट एरियाज पे भी कार्यवाही करने में द्रुत गति दिखानी होगी। यह न केवल नैतिकता, मूल्य और नीति की बात है और ना ही केवल सामाजिक सुधार या नारीवाद की वरन जो मॉडल हमारे संविधान निर्माता प्रस्तुत करना चाहते थे जिनके लिए असंख्य क्रांतिकारियों ने उच्च बलिदान दिये, ये बात हैं उन “अधिकारों” की “न्यायोचीत व्यवहार” की और “आत्म सम्मान” से सभी को “जीने के अधिकार की”अतः हमें इस ओर ध्यान देना ही होगा और समाज पर कलंक इन रेड लाइट एरियाज को हटा कर इन दलदल में गिरी लड़कियों को सम्मानजनक तरीके से जीने के दूसरे हल ढूंढने ही होंगे तभी हम देश को सही मायनों विकसित कर पाएंगे