मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

राजनीतिग्यो की सत्ता लोलुपता और टुकड़ों में विघटित भारतीय समाज

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में  1989 के बाद से 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनने के पूर्व तक एक भी स्पष्ट बहुमत की सरकार नहीं बन पाई। यहां यह बताना बहुत जरूरी है कि पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव के कार्यकाल के आखिरी समय में एक अविश्वास प्रस्ताव के सामना करते हुए मत विभाजन के क्रम में पूर्ण  बहुमत प्राप्त कर लिया था।  मगर बाद का काल अत्यधिक छोटा सा था। किसी भी देश की चौमुखी विकास के लिए एक स्थिर और सुदृढ सरकार का होना आवश्यक है। पिछले 20 वर्षों से केन्द्र सरकार की तक मिली जुली 18 और 23 टांगो की सरकार चलती रही। उस देश के राजकाज का तौर तरीका बिल्कुल कमजोर, दिशाहीन और लुंज पुंज हो चुकी होगी।देश की स्थिति का असर अगले 15 वर्षों तक कायम रहना अत्यधिक स्वभाविक हो सकती है 1989 से लेकर आज तक हमने जितना विकास किया हमें उससे कम से कम दुगनी  विकसित होनी चाहिए थी। सबसे आश्चर्यजनक स्थिति तो यह है कि इसे ठीक करने की कोशिश किसी भी वर्ग द्वारा नहीं की गई। इस बात को ठीक से समझने के लिए आजादी के बाद के सामाजिक संरचना और नेताओं की भूमिका को ठीक से समझना होगा। आजादी के बाद भारतीय राजनीति मुख्य 4 धाराओं में बंट गई कांग्रेस समाजवादी जनसंघ तस्था साम्यवादी। 20 वर्षों तक सत्ता की बागडोर पूर्ण रूप से कांग्रेस की मुट्ठी में रही। इस बीच सत्ता सुख के लिए शेष तीनों धाराओं के बहुत से छुट भैया नेता इधर से उधर पाला बदलते रहे। इस पूरे काल में कांग्रेस पार्टी में उन नेताओं का ही वर्चस्व बना रहा। जिसकी देश की आजादी में अहम भूमिका थी यह देश का अधिकतर व्यक्ति उनसे भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ था अतः इस काल की. कांग्रेसी की जीत भी कही जा सकती है। समय के साथ-साथ इस लहर में कमी आने लगी। फिर सत्ता बचाए रखने और प्राप्त करने के लिए रणनीति तय किए जाने लगे। यहीं से भारतीय चुनाव की दशा और दिशा बदलने लगी अब वोट मांगने से लेकर फुसलाने चुराने से लेकर छिनने का दौर आ गया।ऐसे में वोटों का पॉकेटबनना लाजमी था ।यानी नेताओं के लिए मतदाता एक प्रोडक्ट बनकर रह गए।आजादी के पूर्वसे हिंदू मुस्लिम के बीच अंग्रेजों द्वारा  पैदा की गई दूरी  के परिणाम स्वरुप  मुस्लिमों को न्याय के नाम पर पाकिस्तान बना कर अलग कर दिया गया। आजादी के बाद गांधी पाकिस्तान जाने की बात करने लगे। इसी वजह से उनकी हत्या कर दी गई।  इसलिए कांग्रेस  भाजपाईयों को मुस्लिम विरोधी और अपने को मुस्लिमों का हितैषी घोषित करने लगे। यानी वोटों के बहुत बड़े पॉकेट को अपने नाम करने की पक्की व्यवस्था ।मुस्लिम विरोधी आरोप क्षतिपूर्ति के लिए भाजपाई अपने को हिंदुओं के करीब लाने लगे। इस बीच साम्यवादी नक्सली आंदोलन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष सहारा लेकर बंगाल में अपना सिक्का जमा चुके। यानी भारत में जो यह समाज की गठन से आशंकित हो कर उस समय के कुशल समाजवादी नेता सामाजिक न्याय की बात करने लगे यह सब महान समाजवादी नेता लोहिया जी के समय से ही प्रारंभ हो गया। सामाजिक न्याय के नाम पर पिछड़ी जाति के लोगों कोआगे लाने के लिए सरकार द्वारा सुविधाएं देने की बात की जाने लगी। इस नाम पर अपने को पिछड़ी जाति का हितैषी बताने लगेगा आजादी के एक दशक बीतते बीतते नेता इन बातों का उपयोग चुनाव में करने लगे। जिन्हें बड़े नेताओं द्वारा पीछे से सहयोग दिया जाता रहा। आज के चुनावी रणनीति की आजादी के 20 वर्ष पूरा होते-होते भारतीय समाज को कई टुकड़ों में बांट दिया।फिर शुरू हुआ एक दूसरे के वोट पॉकेट में सेंध मारने का दौर। इसके लिए रुपए का खर्च किया जाने लगा। यानी चुनाव महंगा होने लगा। और छीनने की राजनीति में आगे निकलने के लिए अपराधियों से सहयोग लिया जाने लगा। इस तरह के सहयोग के लिए नेताओं के बीच एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ लग गई। कल जो अपराधी छवि के लोग राजनेताओं के किराए के वोट मैनेजर थे।  वह स्वयं के लिए वोट मैनेज कर देश के महापंचायत में पहुंचने लगे। यानी जिस राजनीति में अपराधियों को वोट मैनेज करने के लिए लाया गया। वहीं राजनीज्ञ पूरी तरह अपराध की दुनिया के चंगुल में फंसने लगी और कमजोर तथा मजबूर होने लगे।  इन सब का फायदा  उठाकर इस बीच कमजोर होते राजनेता अपने को कुछ क्षेत्र के जातीय और स्थानीय नेता बता कर समाज को और टुकड़ों में बांटने लगे। नतीजतन आम लोग भी नेताओं के चयन में निजी स्वार्थ पर ध्यान देने लगे। यानी राजनीतिज्ञों की सत्ता लोलुप्ता की वजह से भारतीय समाज खंड खंड में भी विघटित हो गया। और  समाज विकास के बजाय विनाश की ओर अग्रसर हो गया। हम अप संस्कृति ठगी,आतंक के दलदल में आकंठ डूब गए।

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