डॉ० पूनम सिन्हा श्रेयसी
हमारे पड़ोस में एक बुजुर्ग रहते हैं. उनके बारे एक कहावत मशहूर है कि ” चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए ” । एक दिन मेरे बेटे ने मुझसे पूछा कि ‘ चमड़ी ‘ के बारे में तो पता है लेकिन ये ‘ दमड़ी ‘ क्या बला है? यह सोलह आना सच है कि आज के युवा वर्ग को वाकई दमड़ी के बारे में कुछ नहीं पता है . फूटी कौड़ी , दमड़ी, आदि की बातें तो बस कहावत में ही रह गई .
तो आइए आज हम सबसे पहले प्राचीन भारतीय मुद्रा के बारे में कुछ बातें करे. हम आज भी बातचीत के दौरान अक्सर यह कहते है कि उसके पास फूटी कौड़ी भी नहीं है या वह फूटी कौड़ी भी नहीं देगा. यह भी कहा जाता है कि वह पाई -पाई का मोहताज है या वह पाई पाई का हिसाब रखता है. कंजूस के लिए तो यह सोलह आना सच साबित होता है. फूटी कौड़ी ,कौड़ी, दमड़ी, धेला, पाई, पैसा, आना आदि प्राचीन मुद्रा के ही नाम है जो चलन से पूरी तरह से बाहर हो गए है. ये सब इतिहास बन कर रह गए. इसीलिए तो युवा पीढी हमारी प्राचीन मुद्राओं के बारे में नहीं जानती . इनसे जुड़े मुहावरे ही ये जानते हैं। इन्हें कहाँ पता कि फूटी कौड़ी से कौड़ी , कौड़ी से दमड़ी , दमड़ी से धेला, धेला से पाई, पाई से पैसा, पैसा से आना, आना से रुपया बना कैसे. आइए इन्हें बताते
चले इनके बारे में -256 दमड़ी=192 पाई=128 धेला64 पैसा = 16 आना = रुपया3 फूटी कौड़ी = कौड़ी10 कौड़ी = दमड़ी2 दमड़ी = I धेला 1.5 पाई = ।
धेला3 पाई = पैसा ( पुराना)4 पैसा = । आना16 आना =1 रुपया
आशा है ,इसे पढ़ कर उनका ज्ञानवर्धन होगा.भारत विश्व की उन प्रथम सभ्याताओं में से है जहाँ सिक्कों का प्रचलन लगभग छठी सदी ईसा पूर्व में शुरू हुआ.भारतीय सिक्के टकसाल में बनते हैं. जहाँ सिक्कों को ढाला जाता है उसे मिंट भी कहा जाता है .
भारतीय सिक्के टकसाल में बनते हैं. जहाँ सिक्कों को ढाला जाता है उसे मिंट भी कहा जाता है .
वैदिक ग्रंथों मे ‘ निष्क ‘ और ‘ शतमान ‘शब्द का प्रयोग सिक्के के लिए होता था.
सिक्के सर्वप्रथम गौतम बुद्ध के समय प्रचलन में आए.भारत का सबसे प्राचीन सिक्का पंच चिन्हित सिक्के जिसे ,’ पुराण ‘, ‘ करशापन ‘ या ‘ पान ‘ कहा जाता था.
बुद्ध के समय ‘आहत सिक्के ‘ का चलन था। इन सिक्कों पर पेड़, मछली, साँड, हाथी की आकृति बनी होती थी। इसे ठप्पा मार कर बनाया जाता था इसलिए इन सिक्कों को ‘ आहत सिक्का ‘ कहा जाता था. प्राचीन सिक्के सोना , चाँदी, ताँबा, सीसा आदि धातु से बने होते थे. चार धातुओं सोना, चाँदी, ताँबा तथा सीसे के मिश्रण का कार्षापण सिक्का भी बनाया जाता था.650 ई. से 1000 ई. के बीच सोने के सिक्के प्रचलन से बाहर हो गये . सोने के गोलाकार सिक्के को ,’ दीनार ‘ या ‘ इलाही ‘ भी कहा जाता था ‘ जलाली ‘ चाँदी का चौकोर सिक्के को कहा जाता था .
ताँबे का सिक्का ‘ दाम ‘ ‘जीतल ‘,’ फूलुस ‘ या ‘ ‘ पैसा ‘ , ‘ निसार ‘ , ‘ मा पक ‘, ‘ काकण ‘ कहलाता था .
सिक्के पिछले राज्यों और शासकों के सामाजिक , राजनीतिक , सास्कृतिक और प्रशासनिक पहलुओं को समझने में सहायक होते हैं . वे तारीखों के निर्धारित करने में पुरातत्व में भी काफी मददगार साबित हुए हैं .अब तो आप मेरे पड़ोसी का शुक्रिया अदा कर दें क्यों कि उन्हीं के बहाने हम सबने’ फूटी कौड़ी ‘ ‘ ‘आना ‘, रुपया ‘ तक की चर्चा कर पाए .डॉ॰ पूनम सिन्हा श्रेयसी