–अनिल सिंह, वाराणसी
भटिण्डा/ हुसैनीवाला के षड्यन्त्रकारियों को एक बात के लिए तो श्रेय देना ही होगा: उन्होंने वह सोच लिया जो कोई सोच भी नहीं सकता था कि कोई सोच सकता है। जैसे 9/11 के समय अमेरिका की सुरक्षा-एजेन्सियों को इस बात की सूचना तो थी कि इस्लामी आतंकवादी अमेरिका पर कोई बड़ा हमला करने की योजना बना रहे हैं, पर वह हमला कब और किधर से होगा, इसकी उन्हें भनक तक नहीं थी। अनेक विद्वानों ने बाद में माना कि वह चाहे जितना दिमाग लगा लेते, वह यह कभी नहीं सोच सकते थे कि ओसामा बिन लादेन ने अमेरिकी विमानों को अपहृत करके उन्हें अमेरिकी आर्थिक और सामरिक शक्तियों के प्रतीकों पर गिराने की योजना बना रखी थी। भटिण्डा के षड्यन्त्रकारियों की योजना भी दुस्साहसिकता की दृष्टि से 9/11 की योजना के समकक्ष रखी जा सकती है। प्रधानमन्त्री, जो विश्व के सर्वाधिक सुरक्षा-प्राप्त व्यक्तियों में से एक हैं, को उनके साथ चल रहे एसपीजी के कवच के बावजूद भी सड़क पर घेर कर विवश किया जा सकता है- यह सोच किसी साधारण दिमाग की उपज नहीं हो सकती।
ओसामा बिन लादेन ने 9/11 के हमलों की रूपरेखा हमें के कम से कम दो साल पहले बना ली थी, और एक निश्चित योजना के अन्तर्गत उसने अपने चुने हुए आदमियों को अमेरिका में हवाई जहाज उड़ाने का प्रशिक्षण लेने के लिए भेजा। क्या यह हो सकता है कि भटिण्डा के षड़यंत्रकारियों ने अपनी योजना अकस्मात् बनायी हो? क्या यह सम्भव है कि जब उन्हें सूचना मिली कि प्रधानमन्त्री अमुक मार्ग से निकलने वाले हैं, तभी आनन-फानन में उन्होंने उन्हें घेरने की योजना बनायी? अवश्य ही प्रधानमन्त्री को किसी सड़क पर घेरने की उनकी योजना पहले से बनी होगी, और उसमें उच्चपदस्थ सरकारी अधिकारी भी संलिप्त थे, प्रधानमन्त्री कब और किस मार्ग से निकलने वाले हैं, इसकी समय से सूचना देना जिनकी प्राथमिक जिम्मेदारी थी। जैसे ही इन अधिकारियों ने षड्यन्त्रकारियों को यह सूचना दी, वह हरकत में आ गये। पञ्जाब-सरकार का देर तक एसपीजी को उलझाये रखना, मार्ग के निरापद होने की गलत सूचना उन्हें देना, भीड़ को घटनास्थल से हटाने का कोई प्रयास न करना, एक साथ कई महत्त्वपूर्ण लोगों का कोरोना-ग्रस्त हो जाना, और सङ्कट के चरम बिन्दु पर सभी शीर्षस्थ अधिकारियों का सम्पर्क-विवर्जित (incommunicado) हो जाना प्रथमदृष्टया यह सङ्केत करते हैं कि षड्यन्त्र कितना गहन था, और पञ्जाब-सरकार किस सीमा तक उसमें संलिप्त थी। घटना की जाँच के लिए केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाया गया जाँच-दल हुसैनीवाला के ओवरब्रिज पर जाकर पूछताछ कर रहा है, जबकि उसे सबसे पहले यह पता लगाना था कि प्रधानमन्त्री-स्तर के व्यक्तियों के दौरों के समय राज्य सरकार के लिए बनायी गयी मानक प्रक्रियाओं (Standard Operating Procedures) का पालन राज्य-सरकार द्वारा किया गया या नहीं, और यह केवल एक दिन का काम था। एक दिन में जाँच का यह पक्ष भी पूरा न होना इस बात का सूचक है कि जाँच या तो कभी पूरी नहीं होगी, या इसमें कुछ मिलेगा नहीं। मामले को उलझाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में भी एक याचिका डाल दी गयी है, जो यह सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त है कि सत्य बाहर न आ सके। यह कहना तो कठिन है कि पञ्जाब-सरकार (और कांग्रेस आलाकमान) का उद्देश्य प्रधानमन्त्री की हत्या कराना था; भले ही षड्यन्त्रकारियों का उद्देश्य प्रधानमन्त्री को लज्जित करना मात्र रहा हो, पर यदि परिस्थिति का नियन्त्रण यदि भीड़ के हाथ में चला जाता, तो बात यहीं आकर रुकती। निश्चित रूप से षड्यन्त्रकारियों ने ऐसे काण्ड की योजना बनाने का साहस विरोधियों से केवल गाँधीगिरी के अस्त्र से ही निपटने के उनके स्वभाव से उत्साहित होकर किया। यदि सङ्कट के समय एसपीजी ने भी गाँधीगिरी से काम लिया होता, तो आज हम प्रधानमन्त्री जी की तस्वीरों पर हार चढ़ा चुके होते।