डॉ.नीता चौबीसा, बांसवाड़ा राजस्थान
पूरी पृथ्वी पर वनों में भड़कता दावानल इस वक्त चिंता और चिंतन का मुद्दा बना हुआ है।हाल ही में जंगल की आग से निकले काले धुएं से पूरे तुर्की का आसमान धुएं से ढक गया है ।लगभग वहां के 6 प्रांतों के 20 स्थानों पर फायरफाइटर्स लगातार आग बुझाने की कोशिश करते रहे किन्तु तुर्की का भूमध्यसागर से सटा इलाका और दक्षिणी हिस्सा आग से ज्यादा प्रभावित रहा औऱ तेज हवाओं की वजह से आग 40 अन्य स्थलों पर फैल गई
जिसे स्थानीय लोग और प्रशासन मिलकर बुझाने की कोशिश करते रहे किँतु काबू न पाया जा सका और लाखों लोगों को घर छोड़ कर और पर्यटकों को स्थल छोड़ कर भागने पर मजबूर होना पड़ा था।इससे कुछ पहले लम्बे अरसे तक ब्राजील के ‘विश्व के फेफड़े’ कहे जाने वाले अमेजन के जंगलों में गम्भीर दावानल भड़का जो कई महीनों तक लगातार चला और यह क्रम लगभग कुछ वर्षो से लगातार वहा बदस्तूर जारी है।
दरअसल अमेजन के जंगल में आग के पीछे का मुख्य कारण विकास की अंध दौड़ है। एक अनुमान के अनुसार पिछले पचास सालों में अमेजन के जंगलों का लगभग 17 प्रतिशत इलाका अब तक नष्ट हो चुका है। इसका मुख्य कारण वन्य भूमि पर खेती और खनन का बढ़ता लोभ व स्वार्थ है। ज्यादातर दक्षिण अमेरिकी देशों के आर्थिक हालात बहुत अच्छे नहीं है।हालांकि ब्राजील ने पेरिस समझौते के अंतर्गत अपने वनों को पृथ्वी के पारिस्थितिकी तंत्र की आवश्यकता समझते हुए अपनी बिगड़ती हालात के कारण बचाने की कवायद करने का प्रयास करते हुए बीते वर्षो में विकसित राष्ट्रों से आर्थिक मदद चाही थी किन्तु जब बात किसी ने नही सुनी तब मजबूरन उसे अपने जंगलो को आग लगानी पड़ी जिस पर काबू पाना बाद में स्वयं उसके लिए भारी पड़ गया।
ब्राज़ील स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस रिसर्च (INPE) के आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 2019 में ब्राज़ील के अमेज़न वनों ने कुल 74,155 बार आग का सामना किया था। साथ ही यह भी सामने आया था कि अमेज़न वन में आग लगने की घटना वर्ष 2019 में वर्ष 2018 से 85 प्रतिशत तक बढ़ गई थी। बीते वर्ष 2020 में जनवरी माह में ऑस्ट्रेलिया के जंगलों की आग में पचास करोड़ से ज़्यादा जानवरों की मौत हो गई।ये आग इतनी भयावह थी कि इस आग से लगभग एक लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र जलकर राख हो चुका था,हजारो वन्यजीव तबाह हो गए और कितने ही घर उजड़ गए थे।
दुनिया भर में वनाग्नि की घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं और भारत भी इन घटनाओं से खुद को बचा नहीं पाया है। भारत में भी प्रतिवर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में कई वनाग्नि की घटनाएँ देखने को मिलती हैं।भारत भी दावानल के मामलों में कही पीछे नही है।भारतीय वन सर्वेक्षण देहरादून द्वारा जारी भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2019 के अनुसार वर्ष 2019 तक देश के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 21.67% अर्थात लगभग 7,12,249 वर्ग किमी.भाग की वन के रूप में पहचान की गई है।इसमें वनस्पति कवरेज कुल भौगोलिक क्षेत्र का 2.89% अर्थात 95,027 वर्ग किमी.क्षेत्र है।पिछली आग की घटनाओं और रिकॉर्डों के आधार पर यह पाया गया कि पूर्वोत्तर तथा मध्य भारत के जंगल वनाग्नि के प्रति ज़्यादा सुभेद्य हैं।भारत मे वनाग्नि से सबसे अधिक प्रभावित होने वाले जंगलों के रूप में असम, मिज़ोरम और त्रिपुरा के जंगलों की पहचान गई।MoEFCC की वर्ष 2020-2021 की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य ओडिशा के साथ-साथ पश्चिमी महाराष्ट्र, दक्षिणी छत्तीसगढ़ और तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश के वन क्षेत्र अत्यंत संभावित ’वन फायर हॉटस्पॉट’ में बदल रहे हैं।भारत मे वर्ष 2021 में वनाग्नि के परिणाम अत्यंत भयंकर रहे है।जनवरी में उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश ,कुल्लू घाटी,व नागालैंड,मणिपुर सीमा -जुकू घाटी क्षेत्र में लंबे समय तक वनाग्नि की घटनाएँ देखी गईं।ओडिशा के सिमलीपाल नेशनल पार्क में फरवरी के अंत और मार्च की शुरुआत के दौरान आग की एक बड़ी घटना घटित हुई।हाल ही में मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ फॉरेस्ट रिज़र्व और गुजरात में एशियाई शेरों तथा ग्रेट इंडियन बस्टर्ड के अभयारण्यों में भी वनाग्नि की घटनाएँ देखी गईं।हिमालय के जंगलों में प्रायः आग लगती ही रहती है जिससे पारिस्थितिकी तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि उत्तराखंड के जंगलों में जून 2018 से नवंबर 2019 के मध्य वनाग्नि की कुल 16 हजार घटनाएँ देखी गईं है।सीएएमएस के अनुसार केवल एक महीने की में उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से 0.2 मेगा टन कार्बन उत्सर्जन होता है।यह पृथिवी के लिए सबसे बड़ा खतरा है।जैसा कि हमे ज्ञात है वनों ने पृथ्वी के लगभग 9.5% भाग को घेर रखा है जो कुल भूमिक्षेत्र का लगभग 30% भाग है। यहीं वन्य क्षेत्र आज विश्व की करोड़ो प्रजातियों को अपने में समाहित किये पूरी खाद्य शृंखला को सम्भाले बैठे है। बहुमूल्य औषधियों के भंडारे किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में भी एक महत्वपूर्ण स्थान तो निभाते ही हैं, साथ ही इनके पर्यावरणीय महत्व तो हम सब जानते ही है। अतः इन्हें किसी भी प्रकार का नुकसान पूरे विश्व के विनाश के लिए काफ़ी है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होंगा की आज ऑस्ट्रेलिया, अमेज़न, उत्तराखंड, कर्नाटक जैसे हज़ारों जंगलों में लगी आग ने हजारों जीवों कि ना सिर्फ़ बलि ले ली है वरन् भविष्य में इन जीवों के अस्तित्व को भी ख़तरे में डाल दिया है। आज कोरोना की ही तरह विश्व भर में लगातार बढती वनाग्नि की घटनाएँ वैश्विक समाज के समक्ष बड़ी चिंता के रूप में उभर रही हैं।आखिर जंगलो में आग लगती क्यो व कैसे है?यह प्रश्न विचारणीय है।इसे फारेस्ट फायर या बुशफायर या जंगल की आग या दावानल भी कहा जाता है। इसे किसी भी जंगल, घास के मैदान या टुंड्रा जैसे प्राकृतिक संसाधनों को अनियंत्रित तरीके से जलाने के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे- हवा, स्थलाकृति आदि के आधार पर फैलता है।भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में वनाग्नि के अलग-अलग कारण होते हैं, जिसमें प्राकृतिक कारणों के साथ-साथ मानवीय कारण भी शामिल हैं।आकाशीय बिजली वनाग्नि के प्राकृतिक कारणों में सबसे प्रमुख है, जिसके कारण पेड़ों में आग लगती है और धीरे-धीरे आग पूरे जंगल में फैल जाती है। इसके अतिरिक्त उच्च वायुमंडलीय तापमान और कम आर्द्रता वनाग्नि के लिये अनुकूल परिस्थिति प्रदान करती हैं।वहीं विश्व भर में देखे जानी वाली वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ मानव निर्मित होती हैं। वनाग्नि को कृषि हेतु नए खेत तैयार करने के लिये वन क्षेत्र की सफाई, वन क्षेत्र के निकट जलती हुई सिगरेट या कोई अन्य ज्वलनशील वस्तु छोड़ देना जैसी मानवीय गतिविधियों द्वारा बढ़ावा दिया जाता है।उच्च तापमान,भयंकर सूखा, हवा की गति और दिशा तथा मिट्टी एवं वातावरण में नमी आदि कारक वनाग्नि को और अधिक भीषण रूप धारण करने में मदद करते हैं।जंगलों में लगने वाली आग के कारण उस क्षेत्र विशिष्ट की प्राकृतिक संपदा और संसाधन को काफी नुकसान का सामना करना पड़ता है।वनाग्नि के कारण जानवरों के रहने का स्थान नष्ट हो जाता है, जिसके कारण नए स्थान की खोज में वे शहरों की ओर जाते हैं और शहरों की संपत्ति को नुकसान पहुँचाते हैं।अमेज़न जैसे बड़े जंगलों में वनाग्नि के कारण जैव विविधता और पौधों तथा जानवरों के विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।जंगलों में लगने वाली आग न केवल जंगलों को तबाह करती है, बल्कि इसके कारण मानवीय जीवन और मानवीय संपत्ति को भी काफी नुकसान होता है।वनाग्नि के प्रभावस्वरूप वनों की मिट्टी में मौजूद पोषक तत्त्वों में भारी कमी देखने को मिलती है, जिन्हें वापस प्राप्त करने में काफी लंबा समय लगता है।चूँकि वनाग्नि की अधिकांश घटनाएँ काफी व्यापक पैमाने पर होती हैं, इसलिये इनके कारण आस-पास के तापमान में काफी वृद्धि होती है।वृक्षो के खत्म होने से वर्षा में कमी,प्राणवायु की कमी और मिट्टी के तकव की समस्याएं पैदा हो जाती है।हालांकि विश्लेषकों के अनुसार वनाग्नि के चंद सकारात्मक पक्ष भी है किंतु यह नुकसान की तुलना में अत्यल्प हैं।विश्लेषकों का मत है कि वनाग्नि जंगलों में पाई जाने वाली कई प्रजातियों निष्क्रिय बीजों को पुनर्जीवित करने में मदद करती है। कई अध्ययनों में यह सामने आया है कि वनाग्नि के कारण जंगलों में पाई जाने वाली अधिकांश आक्रामक प्रजातियाँ नष्ट हो जाती हैं। उदाहरण के लिये कुछ समय पूर्व कर्नाटक में आदिवासी समुदायों ने प्रचलित ‘कूड़े में लगाई जाने वाली आग’ की केई परंपरा का बहिष्कार कर दिया था, जिसके कारण क्षेत्र विशिष्ट में लैंटाना प्रजाति की वनस्पति इतनी ज़्यादा बढ़ गई कि उसने वहाँ के स्थानिक पौधों का अतिक्रमण कर लिया था।किँतु पारस्थितिकी तंत्र व जलवायु पर पड़ने वाले असर की तुलना में यह सब नगण्य ही है।निष्कर्ष के तौर पर हम कह सकते है कि समय के साथ वनाग्नि से संबंधित घटनाएँ वैश्विक स्तर पर एक गंभीर चिंता का रूप धारण करती जा रही हैं।वैज्ञानिकअध्ययनो में यह ज्ञात हुआ है कि ब्राज़ील के अमेजन वनों,आस्ट्रेलिया के गहन जंगलो जैसे विश्व स्तर पर आग के बढ़ते मामलों ने पृथ्वी के जलवायु परिवर्तन को प्रभावित किया है।वनाग्नि की लंबी अवधि, बढ़ती तीव्रता, उच्च आवृत्ति आदि को जलवायु परिवर्तन से जोड़ा जा रहा है।अतः अब यह वैश्विक चिंतन का विषय होनी चाहिए।पूरे विश्व व भारत में भी लगातार बढ़ रही वनाग्नि की घटनाओं ने नीति निर्माताओं को पर्यावरण संरक्षण, आपदा प्रबंधन और वन्य जीवों तथा वन्य संपदा के संरक्षण की दिशा में विमर्श करने हेतु विवश किया है। आवश्यक है कि देश औऱ विश्व में वनाग्नि प्रबंधन के लिये विभिन्न नवीन विचारों की खोज की जाए, इस संबंध में वनाग्नि प्रबंधन को लेकर विभिन्न देशों द्वारा अपनाए जा रहे मॉडल की समीक्षा की जाए और उन्हें भारतीय ही नही वरन वैश्विक परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तित किया जाना चाहिए , और वनों को बचाने के लिए जागरूकता के साथ सामाजिक भागीदारी निभाते हुए सभी देश सम्मिलित व सार्थक प्रयास करे,यही वर्तमान की प्राथमिक आवश्यकता है।आज इस विश्व व्यापक समस्या पर गंभीरता से विचार करें व वनाग्नि को जलवायु परिवर्तन का एक महत्त्वपूर्ण आयाम मानते हुए इससे निपटने के लिये वैश्विक स्तर पर नीति निर्माण की आवश्यकता को समझें, जो वनाग्नि और उससे संबंधित विभिन्न महत्त्वपूर्ण पहलुओं को संबोधित करती हो।वनाग्नि प्रबंधन के संबंध में कई देशों द्वारा कुछ विशेष मॉडल प्रयोग किये जा रहे हैं, आवश्यक है कि अन्य देश भी इन्हें अपने भौगोलिक व पारिस्थितिकी के अनुसार परिवर्तित कर प्रयोग में लाएँ व भविष्य में वनाग्नि का पता लगाने के लिये रेडियो-ध्वनिक साउंड सिस्टम और डॉप्लर रडार,फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाया जाना चाहिये।अब वक्त आ गया है कि बढ़ते दावानल से बचाने के लिए राष्ट्रीय नही अंतरराष्ट्रीय योजनाओं की कार्ययोजना पर कार्य करना आवश्यक है।आज पुनःअधिकारों की बजाय अपने कर्त्तव्यों पर ध्यान देते हुए उपरोक्त कार्यों पर गंभीरता से विचार करने का समय आ गया है। साथ ही हम सभी समझें पृथ्वी के यह हरे भरे वन ही असल उत्तराधिकारी हैं हम उनके बारे में सोचे ताकि आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य मिल सके