नीतीश कुमार ने फिर वही किया जो अबतक करते रहे है
एक बार फिर नीतीश कुमार ने अपने बहुत नजदीकी नेता ललन सिंह को बाहर का रास्ता दिखा दिया ।
कल तक नीतीश कुमार की उपस्थिति में अध्यक्ष पद से इस्तीफे के प्रश्न पर लालन सिंह भड़क रहे थे। नीतीश कुमार ने भी कहा कि कार्यकारणी की मीटिंग तो होती ही है।पार्टी में कोई मतभेद नही है । जाहिर सी बात है कि नीतीश से लंबी मीटिंग बाद अगर ललन सिंह यह कहते हुए पत्रकारों पर भड़क रहे थे कि इस्तीफा देना होगा तो आप लोगो से आकर सलाह ले लूंगा। तो नेताओ में सहमति बन गयी होगी।फिर बाद में कार्यसमिति का चौथा प्रस्ताव यह तय किया गया कि टिकट बंटवारा से लेकर गठबंधनों के साथ संयोजन आदि का (लगभग सभी अध्यक्षीय अधिकार)नीतीश कुमार को दे दिया जाय।इस प्रस्ताव के तैयार होने से स्वभाविक रुप से ललन सिंह समझ गए थे कि अब वह पर्टी में कुछ नही रहे इस सब दांव पेंच के बाद कार्यसमिति की बैठक में चौथा प्रस्ताव रखे जाने के पूर्व ही उनहोंने अध्यक्ष पद छोड़ते हुए नीतीश कुमार का नाम अध्यक्ष के लिए प्रस्तावित कर दिया।
कुल मिलाकर नीतीश कुमार ने ललन सिंह को सम्मान पूर्वक बाहर का रास्ता दिखा दिया।
नीतीश कुमार ने ऐसा पहली बार नही किया। इसके पूर्व जॉर्ज साहब ,शरद यादव ,आर सीपी सिंह उपेंद्र कुशवाहा आदि अनेक बाहर का रास्ता दिखाए जाने वाले नेताओं की लंबी सूची नीतीश कुमार ने अपने राजनैतिक जीवन मे तैयार किए है।कभी लालू के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश लालू के धुर विरोधी बन कर भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बनने के बाद बीजेपी से अलग होकर उसी लालू के साथ मिलकर सरकार बना लिए तब भी उन्होंने अध्यक्ष पद अपने हाथ मे लिया था। एक वर्ष के अंदर पुनः भाजपा से गठबन्ध कर राजद से अलग हो गए थे। आज फिर स्थिति वैसी ही है राजद में रहते जदयू की टूट की पूरी सम्भावना बन चुकी है। इधर इंडिया गठबंधन में प्रधानमंत्री के कैंडिडेट उन्हें बनाए जाने में लालू से सहयोग नही मिली और आगे भी न्ही मिलेगी फिर बिना कुछ मिले मुख्यमन्त्री का पद से हंटने की मजबूरी साफ दिख रहा उन्हें।
इधर एनडीए के पुराने साथी छूट रहे है और विपक्ष गोलबंद हो रहा है ।यानी बीजेपी के वोट%में बिखराव और विपक्षी वोट%में जुड़ाव की स्थिति।ऐसे में बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की इस मजबूरी का लाभ लेकर नीतीश कुमार बहुत आसानी से एनडीए में वापसी कर सेफ रिटायरमेंट प्लान को अंजाम दे सकते हैं लेकिन क्या बराबर पलटी मार की कीच में लिपटे नीतीश की पुनः स्वीकार कर एनडीए अपने को उसी कीचड़ से बचा पाएगा ?क्या राज्य भाजपा पुनः नीतीश के साथ मिलकर जनता के बीच बेझिझक जा पाएगी ?
इन सब से बड़ा सवाल यह कि नीतीश से कई बार धोखा खा चुके मोदी या अमित शाह नीतीश को राज्यपाल या कोई अन्य पद का आश्वासन देकर उस।वादा को पूरा कर ही देंगे?क्या नीतीश किसी भी भविष्य के आश्वासन पर भरोसा कर पाएंगे।किसी भी तरह का नया समीकरण के निर्माण के रास्ते मे खड़े ऐसे अनेक प्रश्न नीतीश कुमार को आने वाले समय मे बेचैन रखेगा ।नीतीश कुमार अपने जीवन के मध्यकाल की कामयाबियां अंतिम पड़ाव की बेचैनियां से ही खरीदी है।