डॉ नीता चौबीसा बाँसबाडा,राजस्थान
न कोई चिंता, ना कोई फिक्र,खुले आसमान तले धींगा मस्ती ,उछलकूद, खेत खलिहानों और खुले बगीचों वनों में दौड़ते हुए तितली पकड़ना, एक निश्चिंत भरपूर जीवन का आनंद,यही होता है, बचपन।!किंतु कुछ बच्चों के बचपन में यह सब नही लिखा होता,लिखी होती है नसीब में लाचारी और गरीबी,
भुखमरी। और इस सबके चलते उन्हें स्वयं या परिजनों द्वारा ही झोंक दिया जाता है बाल श्रम मेँ ! जिस उम्र में हाथ मे स्लेट, कलम,किताबे होनी चाहिए तब वे या तो किसी ढाबे पर चाय के बर्तन साफ कर मालिक की झिड़कियां खा रहे होते है या कचरा बीन रहे होते है या मजदूरी कर रहे होते है या घरो में साफ सफाई या फिर कोयले या ऐसे ही किसी खतरनाक कारखानों मिलो में धुंआ पी कर अपने फेफड़े गलाते , जिंदगी दांव पर लगाते कम मजदूरी और प्रायः आधी दाडगी पर काम कर रहे होते है। यह बाल श्रम केवल भारत मे ही नही वरन् विश्व के लगभग तमाम देशों में किसी न किसी रूप में कमोबेश वर्तमान समय में बच्चों की मासूमियत के बीच अभिशाप बनकर सामने आता दृष्टव्य हो रहा है। स्थिति तब और भी भयावह हो जाती है जब लालच में अंधे हुए लोग मानवीयता को ताक पर रख कर ऐसे बाल श्रमिकों की तस्करी और देह शोषण तक से बाज़ नही आते और इस तरह इनका शोषण और व्यापार शुरू कर देते है। विकासशील देशों में तो यह स्थिति और भी बुरी है। हालांकि प्रत्येक देश ने बाल शोषण के विरूद्ध कानून बना रखे है।सारा विश्व 12 जून को विश्व बाल श्रम निषेध दिवस के रूप में मनाता है जिसका उद्देश्य 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से श्रम ना कराकर उन्हें शिक्षा दिलाने और आगे बढ़ने हेतु जागरूक करना है किंतु आंकड़े तो कुछ और ही बयां करते है जो अत्यंत भयावह है।
हाल ही में इंटरनेशल लेबर आर्गनाइजेशन और यूनीसेफ ने अपनी रिपोर्ट में दुनिया में बाल मजदूरी का जो चेहरा पेश किया है वह अत्यंत दयनीय व शोचनीय भी है। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया का हर दसवां बच्चा किसी न किसी तरह की मजदूरी करने पर मजबूर है। इन आंकड़ों में दुनिया में 16 करोड़ बच्चे मजदूर हैं,जिनमें से लगभग 6 करोड़ लड़कियां और दस करोड़ लड़के शामिल हैं।वर्तमान में भारत में 5 से 14 साल के बच्चों की कुल संख्या 25.96 करोड़ है. इनमें से 1.01 करोड़ बाल श्रमिक हैं यानी कामगार की भूमिका में हैं।आंकड़ों से पता चलता है कि 5 से 9 साल की उम्र के 25.33 लाख बच्चे काम करते हैं। 10 से 14 वर्ष की उम्र के 75.95 लाख बच्चे कामगार हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 2020 में बाल मजदूरी के मामलों में दुनिया में तकरीबन 84 लाख बाल मजदूरों की बढ़ोत्तरी हो गई है। कई सालों की गिरावट के बाद यह आंकड़ा एक बार फिर आश्चर्यजनक रूप से बढ़ने लगा है. इससे पहले बाल मजदूरी के आंकड़े लगातार कम हो रहे थे, जो कि सुखद था किंतु कोरोना काल मे बाल मजदूरी का यह आंकड़ा तकरीबन 16 करोड़ के पार पहुंच गया है। यह रिपोर्ट हमें चेतावनी देती है कि यदि अब भी ध्यान नहीं दिया गया तो तो कोविड-19 का यह 2022 तक दुनिया में 89 लाख बच्चों को और बाल मजदूरी के जाल में फंसा देगा! यह आशंका व्यक्त की गई है कि कि 2022 तक दुनिया में बाल मजदूरों की संख्या बढ़कर 20.6 करोड़ तक हो सकती है। कोरोना ने स्थिति को और भी बिगाड़ दिया है।
ऐसा नही है कि वैश्विक संगठन या सरकारें बाल श्रम को रोकने हेतु कुछ कार्य नही कर रही है।यूनिसेफ,
यूनेस्को,जैसी संस्थाए इस हेतु वैश्विक स्तर पर प्रतिबद्धता से कार्य कर रही है।सभी देशों ने भी अपने अपने स्तर पर सरकारी योजनाए भी चला रही है और कठोर कानून भी बना रही है किंतु फिर भी स्थिति सम्हल नही रही।जहां तक भारत का सवाल है ,भारतीय संविधान में ऐसी व्यवस्था की गई है जिससे बाल श्रम को रोक सके।भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 के अनुसार, किसी भी प्रकार का बलात् श्रम निषिद्ध है।अनुच्छेद 24 के अनुसार 14 साल से कम उम्र के बच्चे को कोई खतरनाक काम करने के लिये नियुक्त नहीं किया जा सकता है।अनुच्छेद 39 के अनुसार “पुरुष एवं महिला श्रमिकों के स्वास्थ्य और ताकत एवं बच्चों की नाजुक उम्र का दुरुपयोग नहीं किया जाता है।इसी तरह बाल श्रम अधिनियम (निषेध और विनियमन), 1986 के अनुसार, 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक उद्योगों और प्रक्रियाओं में काम करने से रोकता है।मनरेगा 2005, अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 और मध्याह्न भोजन योजना जैसे नीतिगत हस्तक्षेपों ने ग्रामीण परिवारों के लिये गारंटीशुदा मज़दूरी रोज़गार के साथ-साथ बच्चों के स्कूलों में रहने का मार्ग प्रशस्त किया है।इसके अलावा वर्ष 2017 में अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के कन्वेंशन संख्या 138 और 182 के अनुसमर्थन के साथ भारत सरकार ने खतरनाक व्यवसायों में लगे बच्चों सहित बाल श्रम के उन्मूलन के लिये अपनी प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया।इन सब प्रयासों के बावजूद स्थिति में अपेक्षित सुधार नही हुआ है।
भारत मे बाल मजदूरी और शोषण के अनेक कारण हैं।
जिनमें गरीबी, सामाजिक मापदंड, वयस्कों तथा किशोरों के लिए अच्छे कार्य करने के अवसरों की कमी, प्रवास और इमरजेंसी शामिल हैं। ये सब कारण नहीं वरन देखा जाए तो भेदभाव से पैदा होने वाली सामाजिक असमानताओं के परिणाम भी हैं।ग्रामीण क्षेत्र में तो स्थिति और भी बुरी है क्योंकि वहां कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था में जितने हाथ उतना काम का मूल मंत्र जड़े जमाए हुए है ऐसे में बच्चों का स्कूल जाना या तो प्रायः असम्भव हो जाता है या नामांकन करवा भी दिया जाए तो उनका विद्यालय में ठहराव सुनिश्चित नही हो पाता और वे बीच मे ही पलायन कर जाते हैं।बाल मजदूरी तथा शोषण की निरंतर मौजूदगी से देश की अर्थव्यवस्था को खतरा होता है और इसके बच्चों पर गंभीर अल्पकालीन और दीर्घकालीन दुष्परिणाम होते हैं जैसे शिक्षा से वंचित हो जाना और उनका शारीरिक व मानसिक विकास ना होने देना और वयस्क बेरोजगारी बढ़ती है।बाल तस्करी भी बाल मजदूरी से ही जुड़ी है जिसमें हमेशा ही बच्चों का शोषण होता है ।बाल तस्करी बच्चों के लिए हिंसा, यौन उत्पीड़न तथा एच आई वी संक्रमण (इंफेक्शन) का खतरा पैदा करती है।देश मे बच्चों को असमय या तो ऐसे बच्चों को अपराध जगत की ओर धकेल दिया जाता है या फिर उन्हें भिखारी बना दिया जाता है।
इन सब परिस्थितियों से उबरने के लिए केवल दिवस मना लेना या सरकारी प्रयास ही पर्याप्त नही होंगे।इस बालश्रम और शोषण रूपी बीमारी को रोकने हेतु समाज और सरकार को सम्मिलित प्रयास करने होंगे।एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से रोके जा सकते हैं जो बाल सुरक्षा प्रणाली को मज़बूत बनाने के साथ-साथ गरीबी तथा असमानता जैसे मुद्दों, गुणात्मक शिक्षा के बेहतर अवसरों, और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए जन सहयोग जुटाने में मदद करना आदि से ही बाल श्रम से घुटता बचपन और लीलते जीवन को बचाया जा सकता है।आवश्यकता है कि हम स्वयं अपनी जिम्म्मेदारी समझे और समझाए किबाल श्रम गरीबी नहीं, बल्कि गरीबों के शोषण की देन है। कहा कि बाल श्रम गरीबी को कम नहीं करता बल्कि गरीबी और बढ़ाता है।बाल श्रम रोजगार नहीं देता, वयस्कों की बेरोजगारी बढ़ाता है। बाल श्रम नियोजकों की दया नहीं, सस्ता श्रम और शोषण की देन है। इस लिए आज हम सभी को बाल श्रम रोकने के लिए संकल्प लेना होगा। बाल श्रम रोकना केवल श्रम विभाग का ही दायित्व नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज का दायित्व भी है। इसे सिर्फ जनजागरण और जागरूकता के जरिए ही रोका जा सकता है। इसके लिए स्कूली बच्चों के, श्रम विभाग, समाज कल्याण विभाग सहित इस कार्य में लगे एनजीओ को रैलियों और गोष्ठियों के जरिए जागरूकता पैदा करने की आवश्यकता है। बाल श्रमिकों को जब तक समाज की मुख्य धारा से नहीं जोड़ा जाएगा तब तक बाल श्रम की समस्या बनी रहेगी। जरूरत है जनजागरण और जागरूकता की। जहां भी बाल श्रमिक दिखाई दे,पहले तो स्वयं उसे रोकने का प्रयास करे, उसके बाद इसकी जानकारी श्रम विभाग को दें। 6 से 14 साल के बच्चों को श्रम करने से रोकने के लिए समाज के सभी वर्गो को कंधे से कंधा मिलाकर एक जुट हो कर लड़ना होगा।केवल जनजागरण और जागरूकतात के माध्यम से ही लूटते बचपन को बचाया जा सकता है।–