मालंच नई सुबह

सच हार नही सकता

सम्पादकीय

कोरोना की तरह फैलता जा रहा है प्यार से शुरू होकर देह व्यपार तक का सफर

 

नीरव समदर्शी

जैसे जैसे हमारा समाज बाजारवादी संस्कृति में डूबता जा रहा हैवैसे वैसे ब्यूटी पार्लर साइबर कैफे और रेस्टोरेंट में हो रही छापेमारी के क्रम में काफी बड़ी संख्या में अच्छे घरों की लड़के लड़कियां आपत्तिजनक स्थिति में पकड़े जा रहे हैं। इनमें ऐसी लड़कियां भी होती हैं जिनके खुद के पास लैपटॉप या डेक्सटॉप उपलब्ध है। बावजूद इसके वह अपने पुरुष मित्र के साथ साइबर कैफे के बंद केबिन में पकड़ी जाती हैं। पार्लरों में पकड़ी जाने वाली लड़कियों के संदर्भ में एक हद तक माना जा सकता है कि ऐसी लड़कियां यह सब पेट के लिए कर रही है या फिर उन्हें किसी तरह ब्लैकमेल किया जा रहा है। रेस्टोरेंट में पकड़ी गई लड़कियों के संबंध में भी यह कहा जा सकता है कि वे सिर्फ दोस्तों के साथ मौज मस्ती कर रही थी।

उम्र है मजे तो करेंगी ही। कुछ गलत तो नहीं कर रही थी? किंतु साइबर कैफे के बंद केबिन में पाप कर रही लड़कियों का बाप क्या करें? समाज में अपना चेहरा कैसे दिखाएं? जिस बाप ने बेटी पर संपूर्ण विश्वास करके उसे अच्छी कैरियर के लिए महंगे शिक्षण संस्थानों में नामांकन करवाया, खुद की बहुत सारी जरूरतों को काटकर बेटी की हर जरूरत को पूरा किया। बेटी ने चंद घडी के सुख के लिए बाप की स्थिति पर तनिक भी विचार नहीं कर इतना बड़ा पाप कर डाला कि मां भाई सगे संबंधी सभी का  सर शर्म से झुक गया।दरसल तीनों जगह पर पकड़ी जा रही लड़कियां एक ही तरह पाप कर रही हैं ।

शहर के बाहर घूमने, डेटिंग के माध्यम से प्रारंभ होने वाला यह पाप रेस्टोरेंट साइबर कैफे होता हुआ पार्लर और होटल तक जाता है। 21वीं सदी में आकर इस गलाकाट प्रतियोगिता में गुजर रहे इस दौड़ में विकास की गति इतनी तेज हो गई है कि विकास की दिशा किस ओर है यह देखने की फुर्सत किसी को नहीं है। सभी लोगों का एकमात्र उद्देश्य अपने को आगे करना है। यह काम अपनी गति तेज करके हो या फिर आगे वाले की गति अवरुद्ध कर के हो। विकास के इस दौर में हम हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहे हैं। शिक्षा मनोरंजन पर्यटन यहां तक कि सेक्स के क्षेत्र में भी हम आगे बढ़ रहे हैं। ऊपर वर्णित इन सभी क्षेत्रों में आज सेक्स कॉमन होता जा रहा है। आज के इस बाजारवादी युग में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। सेक्स महिला और पुरुष के सहयोग से होता है। सेक्स दोनों की जरूरत भी है। इस बाजारवादी गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में जरूरत की हर चीज बिकती है खरीद-फरोख्त का तरीका कुछ भी हो। मेरे समझ से अपने कम जरूरत की चीजों को किसी दूसरे को देकर उससे अधिक उपयोगी वस्तु ले लेने को ही खरीद-फरोख्त कहते हैं। रूपया बेचकर किराना दुकान से सामान खरीदा जाए या सेक्स वर्कर द्वारा रईसजादों के हाथों अपना-अपना रुपया खरीदा जाए। आजकल इससे मिलता-जुलता एक नया बाजार खड़ा हो गया है इस बाजार में भी बिकता तो सेक्स ही है मगर फायदा रेस्टोरेंट साइबर कैफे और होटल संचालकों को भी होता है। आज के इस आधुनिक युग में पढ़ाई और प्रोजेक्ट बनाने के नाम पार्को, मंदिरों, मस्जिदों और पुराने खंडहरों में एक दूसरे से नजदीक आकर लड़कियों द्वारा लड़कों से रेस्टोरेंट एवं मोबाइल बिल तथा महंगा गिफ्ट लिया जाता है। यानी आज की लड़कियां लड़कों को उनके नजदीक से नजदीक तक आने की ललक को समझते हुए उसे लड़कों की जरूरत की तरह इस्तेमाल करने लगी है।  मतलब साफ है कि वह लड़कों की जरूरत पूरा करने के एवज में बहुत कुछ लेने को अपना अधिकार और अधिक वसूली को चतुराई समझने लगी हैं। चतुराई और वयव्सायिकता के इस खेल में इमोशन और प्यार बहुत पीछे छूटता जा रहा है। रह जाता है तो  सिर्फ और सिर्फ वसूली। यह बात अलग है कि संपूर्ण खेल प्यार के नाम पर ही खेला जाता है।

भले ही यह प्यार कई लड़कों के साथ क्यों ना हो। यह खेल  खुशामद और मान ममौवल से शुरू होता है। मगर अंत मोबाइल व अन्य खुफिया कैमरे से ली हुई तस्वीरें दिखाकर ब्लैकमेलिंग से होते हुए लड़कियों द्वारा ड्रक्स बेचवाने और अपराध करवाने तक जाता है। इन सारी बातों को कुछ इस तरह समझा जा सकता है। इस तेज रफ्तार में सभी अभिभावक अपने बच्चों को सबसे तेज देखना चाहते हैं। हर माता-पिता अपने बच्चों के आंखों से अपना सपना पूरा होते देखना चाहते ‌हैं। वह अपने सपनों को बच्चों के सपनों से जोड़ कर समाज में पहले ही प्रचारित कर देते हैं। इस तरह बच्चों से की जा रही अच्छे कैरियर की उम्मीद के बोझ से बच्चे दबाव अनुभव करने लगते हैं। फिर लड़के और लड़कियां अच्छी शिक्षा के लिए बड़े शहरों में जाकर शिक्षा ग्रहण करने लगते हैं। जहां ज्यादातर बच्चों के साथ उनके माता-पिता नहीं होते हैं इस नई परिस्थिति में लड़कियों को सामने पढ़ाई के साथ इंटरनेट के माध्यम से ग्लैमर और फैशन की दुनिया एवं उन फैशन परस्त सामानों की खरीदारी के लिए बड़ा बड़ा शॉपिंग मॉल उपलब्ध होता है। जब कभी भी युवा पीढ़ी कैरियर निर्माण के बोझ से लद कर बाजार की ओर रुख करते हैं  तो उनकी जेबे ढीले हो जाती हैं। अभिभावकों से मिलने वाला पैसा कम पड़ जाता है। इस कमी की पूर्ति के लिए भी वे अपने अभिभावकों से कई तरह की झूठी कहानियां सुनाकर अधिक रुपया मंगवा लेते हैं ।मगर इस तरह की झूठी कहानियां भी एक सीमा तक ही सुनाया जा सकता है। उनका खर्चा दिन-ब-दिन बढ़ता ही जाता है। फिर एक समय ऐसा भी आता है  जब वह और झूठ नहीं बोल सकते हैं। ऐसी स्थितियों में लड़के लड़कियां कोचिंग संस्थानों के लिए नामांकन करवाने तथा परीक्षाओं के प्रश्नपत्र लीक करवाने से धीरे धीरे आर्गनाइज क्राइम की ओर रुख कर लेते हैं। इस क्षेत्र में प्रवेश करने के बाद इनके पास अच्छा खासा रुपया रहने लगता है। इनका पहनावा और रहन सहन काफी आकर्षक हो जाता है। उनके इस बदलाव से अन्य लड़कियां भी ललचाई नजरों से उनके आसपास मंडराने लगती है। छोटे शहरों से बड़े शहरों में आई लड़कियां बड़े शहरों में अपने को अपटूडेट बनाने के चक्कर में अपना खर्चा बढा लेती हैं। उन्हें झूठ का सहारा लेना पड़ता है । बाद के दिनों में लड़कियां लगातार बढ़ते अपने खर्चे को कम करने के लिए लड़कों के साथ डेटिंग करना शुरू कर देती है। ऐसा करने से उनके बडे़ होटलों में खाने का शौक तो मुफ्त में ही पूरा हो जाता है। साथ में शॉपिंग मॉलों में घूमकर शॉपिंग करने का काम भी मुफ्त में हो जाता है। लड़कियां खासकर ऐसे लड़कों के डेटिंग करना पसंद करती है जिनके पास अनाप-शनाप रुपया हो। ऐसा लड़का लड़कियों पर खूब रुपया खर्च करता है। उन्हें शहरों के अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खिलाता है। महंगा महंगा गिफ्ट देता है वह जोड़ियां पार्कों में डेटिंग करते-करते साइबर कैफे के बंद केबिनों में जाने लगते हैं। जहां अश्लील फिल्में देखना शुरू करने के बाद सब कुछ कर बैठते हैं। एक बार के बाद लड़कियां यह सब करने के लिए मजबूर भी होने लगती है। इन सब में  उन्हें आनंद भी आने लगता है। इन लड़कियों को उनके तथा कथित प्रेमी होटलों में ठहरने वाले टूरिस्टों बड़े पदाधिकारियों, मंत्रियों और विधायकों के पास भेज कर जबरन मोटी कमाई करते हैं। और मोटी कमाई के कुछ हिस्से को फिर से उसी तरह लुटा कर अन्य लड़कियों को फंसाने में तन मन धन से जुट जाते हैं।

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