डॉ.नीता चौबीसा,
बांसवाड़ा राजस्थान
आज फिर से पूरा देश शिक्षक दिवस मना रहा है। सही मायने में एक शिक्षक ही वो व्यक्ति होता है जो आपको हमेशा एक बड़े मुकाम पर देखना चाहता है। आज का दिन सिर्फ उन शिक्षकों के लिए नहीं होता जिन्होंने कक्षा कक्षो में शिक्षा दी हो बल्कि उन सभी का दिन होता है जिन्होंने आपको कभी भी जिंदगी में कुछ सिखाया हो क्योंकि शिक्षा का अर्थ ही है सीखना-सिखाना।आज शिक्षक दिवस के अवसर पर हम उस शख्सियत को स्मरण करते है जो देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक होने के बावजूद स्वयं को एक शिक्षक कहलाने में अधिक गर्व अनुभव करते थे और स्वयं भी अपने जीवन मे कभी अपने शिक्षकों का सम्मान करना कभी नही भूले और वो शख्सियत हैं भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम साहब।
अब्दुल कलाम साहब राष्ट्रपति से कहीं ज्यादा एक अध्यापक थे। वो हमेशा शिक्षकों के भांति देश और छात्रों का मार्गदर्शन करते रहे। उनकी एक बहुत प्रसिद्ध उक्ति है,-“शिक्षा का मकसद कौशल और विशेषज्ञता के साथ अच्छे इंसान बनाना है…शिक्षकों द्वारा प्रबुद्ध मनुष्य बनाये जा सकते हैं।”उन्होंने यह भी कहा था जो बताता है कि वो छात्र और शिक्षकों के बीच किस तरह का संवाद चाहते थे। उन्होंने कहा था-” किसी विद्यार्थी की सबसे ज़रूरी विशेषताओं में से एक है प्रश्न पूछना। विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने दीजिये।”मिसाइल मैन के नाम से मशहूर डॉ कलाम का एक कथन बार-बार याद आता है। कलाम साहब ने कहा था,-” शिक्षण एक बहुत ही महान पेशा है जो किसी व्यक्ति के चरित्र, क्षमता, और भविष्य को आकार देता है। अगर लोग मुझे एक अच्छे शिक्षक के रूप में याद रखते हैं, तो मेरे लिए ये सबसे बड़ा सम्मान होगा।” वो खुद की पहचान बतौर राष्ट्रपति नहीं बल्कि एक शिक्षक के तौर पर चाहते थे।यही कारण था कि अपनी 1999 में वैज्ञानिक सलाहकार पद से सेवानिवृत होने के बाद, उन्होने 100,000 छात्रों से संवाद करने को अपना लक्ष्य बनाया। उन्होने खास तौर पर हाई स्कूल के छात्रों से मुलाक़ात की। उनका उद्देश्य था इन बच्चों के मन में भारत के विकास की भावना को जगाना और यही सब करते हुए उन्होंने छात्रों को व्याख्यान देते हुए ही अपने प्राण भी त्यागे।
डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने शिक्षा की महत्ता को दर्शाते हुए लिखा था, -“असली शिक्षा एक इंसान की गरिमा को बढ़ाती है और उसके स्वाभिमान में वृद्धि करती है। यदि हर इंसान द्वारा शिक्षा के वास्तविक अर्थ को समझ लिया जाता और उसे मानव गतिविधि के प्रत्येक क्षेत्र में आगे बढ़ाया जाता, तो ये दुनिया रहने के लिए कहीं अच्छी जगह होती।”शिक्षकों का सम्मान उन्हें सर्वदा प्रिय रहा यह उनकी जीवनवृत से जाहिर होता है।जब उन्हें वाराणसी में आईटीआई के दीक्षांत समारोह में बुलाया गया तो उन्होंने देखा की स्टेज में पांच कुर्सियां लगी हुई हैं जिनमे बीच वाली कुर्सी बड़ी और उन सबसे ऊंची भी थी जिस पर उन्हें बैठने को कहा गया तो कलाम सर ने उस पर बैठने से मना कर दिया और कहा की मैं भी आप लोगों के बराबर का ही व्यक्ति हूँ। अगर सम्मान करना है तो इस पर कुलपति जी को बैठाइए वही इस सम्मान के असली हकदार है। इसके बाद अब्दुल कलाम सबके समान वाली कुर्सी पर ही बैठे।सादगी और त्याग का पर्याय थे कलाम साहब।उनके जीवन की दो घटनाओं से ज्ञात होता है कि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर जाने के बाद भी वे अपने शिक्षकों को कभी भूला नही पाए।प्रथम घटना का जिक्र स्वयं उन्होंने अपनी आत्मकथा में किया है।उन्होंने लिखा है-अब्दुल कलाम अपने “एयरोस्पेस टेक्नोलॉजी” में आने के पीछे अपनी प्रेरणा पांचवी क्लास के टीचर सुब्रहमण्यम अय्यर को बताते थे। वो कहते थे, “वो हमारे अच्छे टीचर्स में से थे। एक बार उन्होंने क्लास में पूछा कि चिडिया कैसे उड़ती है? क्लास के किसी छात्र ने इसका उत्तर नहीं दिया तो अगले दिन वो सभी बच्चों को समुद्र के किनारे ले गए। वहां कई पक्षी उड़ रहे थे। कुछ समुद्र किनारे उतर रहे थे तो कुछ बैठे थे। वहां उन्होंने हमें पक्षी के उड़ने के पीछे के कारण को समझाया साथ ही पक्षियों के शरीर की बनावट को भी विस्तार पूर्वक बताया जो उड़ने में सहायक होता है। उनके द्वारा समझाई गई ये बातें मेरे अंदर इस कदर समा गई कि मुझे हमेशा महसूस होने लगा कि मैं रामेश्वरम के समुद्र तट पर हूं और उस दिन की घटना ने मुझे जिंदगी का लक्ष्य निर्धारित करने की प्रेरणा दी। बाद में मैंने तय किया कि उड़ान की दिशा में ही अपना करियर बनाउंगा। मैंने बाद में फिजिक्स की पढ़ाई की और मद्रास इंजीनियरिंग कॉलेज से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में पढ़ाई की।
दूसरा प्रेरणास्पद प्रसंग अब्दुल कलाम के जीवन का तब का है जब वे भारत के राष्ट्रपति बने।इससे ज्ञात होता है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन कहे जाने वाले अब्दुल कलाम अपने जीवन के प्रारंभिक शिक्षकों का कितना सम्मान करते थे ।वह मानते थे कि उनके जीवन को गढ़ने वाले उनके प्रारंभिक शिक्षा में पढ़ाने वाले शिक्षक ही रहे हैं अतः जब यह भारत के राष्ट्रपति चुने गए तब उन्होंने अपने शपथ ग्रहण समारोह में बड़े बड़े राजनेताओं और हस्तियों की अपेक्षा अपने प्रारंभिक शिक्षकों को आमंत्रित किया।जब शपथ ग्रहण समारोह की तिथि तय हो गई तो कलाम साहब से प्रोटोकॉल और व्यवस्था में लगे एक उच्च अधिकारी ने पूछा कि सर आप के शपथ ग्रहण समारोह में आपके परिवार और मित्रों में से किन किन को बुलवाना है कृपया सूची बनवा दीजिये ।तब कलाम साहब बोले -“नाम तो याद नहीं है पर जिन जिन शिक्षकों ने मुझे अब तक पढ़ाया है उन सभी को ससम्मान समारोह में बुलवाने की व्यवस्था की जाए!” फिर क्या था आनन-फानन में कलाम साहब जिन जिन स्कूलों में पढ़े-लिखे थे,वहां के रिकॉर्ड ढूंढे गए ,उनको पढ़ाने वाले शिक्षकों की खोज की गई और उनमें से जो जीवित थे उन्हें उनके संबंधित जिला कलेक्टर के साथ विशेष हेलीकॉप्टर अथवा वायुयान से उन्हें दिल्ली पहुंचाया गया और उन शिक्षकों के निजी सहायक के रूप में उन जिलों के जिला कलेक्टर साथ में स्वयं रहे। वे सभी शिक्षक सम्मान सम्मान पूर्वक शपथ ग्रहण समारोह में लाए गए और स्वयं राष्ट्रपति कलाम ने उनका आदर पूर्वक अतिथि सत्कार किया ।यह एक प्रेरणादाई प्रसंग है की किस भांति शिक्षकों का सम्मान किया जाता है और उच्च पद पर जाकर भी एक सच्चा शिष्य कभी अपने शिक्षक को नहीं भूल पाता क्योंकि शिक्षक ही माता पिता के बाद वह व्यक्ति होता है जो अपने शिष्य को स्वयं से आगे बढ़ते देखकर अत्यंत प्रसन्न होता है और यह हेतु जी जान से प्रयास भी करता है।किसी भी देश का बौद्धिक विकास उस देश के योग्य शिक्षकों पर ही निर्भर करता है ।यह शिक्षक वर्ग ही है जो समाज को परिवर्तित करने का माद्दा रखता है।वास्तव में जिस राष्ट्र में शिक्षकों का सम्मान ना हो उस देश का पतन निश्चित होता है। हमारे प्राचीन भारत में शिक्षकों का इतना सम्मान था जिसके उदाहरण शिक्षक शिष्य की कथाओं में भरे पड़े हैं ।उस का सबसे सटीक उदाहरण चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य के रूप में मिलता है जिसने प्रथम बार अखंड भारत की नीव रखी थी ।अतः वर्तमान में समाज में शिक्षकों की गिरते सम्मान की अवस्था अत्यंत ही चिंतनीय और निंदनीय विषय है यही कारण है कि आज का युवा इंजीनियर ,डॉक्टर सब कुछ बनना चाहता है किन्तु शिक्षक नहीं बनना चाहता! हमें इस पर विचार करना चाहिए और शिक्षक का सम्मान करना सीखना ही चाहिए तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाना सार्थक हो सकेगा।-